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राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग के स्वरुप में बदलाव एवं इसका महत्त्व

  • 09 Oct 2017
  • 4 min read

चर्चा में क्यों?

  • सरकार केंद्रीय मानवाधिकार आयोग में होने वाली नियुक्तियों के संबंध में कुछ बदलाव लाना चाहती है और इसके लिये वह आवश्यक संशोधन के लिये भी तैयार दिख रही है। विदित हो कि हाल ही में केन्द्रीय गृह मंत्रालय ने इस आशय से केन्द्रीय मंत्रिमंडल को अवगत करा दिया है।

क्या होंगे बदलाव?

  • प्रस्तावित संशोधनों में कहा गया है कि सुप्रीम कोर्ट के सेवानिवृत्त न्यायाधीश को राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग का अध्यक्ष बनाया जा सकता है, जो वर्तमान में सुप्रीम कोर्ट के पूर्व मुख्य न्यायाधीशों के ही लिये आरक्षित है।
  • साथ ही आयोग के सदस्य पद पर नियुक्ति के लिये हाई कोर्ट के सेवानिवृत्त मुख्य न्यायाधीशों को चुना जा सकता है। वर्तमान में सुप्रीम कोर्ट के एक सेवारत या सेवानिवृत्त न्यायाधीश को ही इस पद के लिये चुना जाता है।

क्या होगा प्रभाव?

  • विदित हो कि इन संशोधनों की कवायद राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग की सिफारिशों के आधार पर ही की जा रही है।  चूँकि सुप्रीम कोर्ट के सेवानिवृत न्यायाधीशों की संख्या सुप्रीम कोर्ट के पूर्व मुख्य न्यायधीशों से काफी अधिक है, अतः हमारे पास पर्याप्त विकल्प उपलब्ध होंगे।

राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग से संबंधित महत्त्वपूर्ण तथ्य

  • राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग की स्थापना वर्ष 1993 में मानवाधिकार संरक्षण अधिनियम, 1993 के तहत की गई थी।
  • आयोग में एक अध्यक्ष जो कि सुप्रीम कोर्ट का सेवारत अथवा पूर्व मुख्य न्यायाधीश होता है, सदस्य के तौर पर एक सुप्रीम कोर्ट के सेवारत अथवा पूर्व न्यायाधीश, एक अन्य सदस्य के तौर पर हाई कोर्ट के सेवारत अथवा पूर्व मुख्य न्यायाधीश शामिल होते हैं।
  • साथ ही मानवाधिकार के क्षेत्र में विशेष जानकारी रखने वाले दो व्यक्तियों को भी सदस्य के तौर पर नियुक्त किया जाता है। विदित हो की प्रधानमंत्री की अध्यक्षता वाली छह सदस्यीय समिति की सिफारिशों पर राष्ट्रपति द्वारा अध्यक्ष और सदस्य नियुक्त किये जाते हैं।
  • लोक संहिता प्रक्रिया, 1908 (code of civil procedure, 1908) के अधीन आयोग को सिविल न्यायालय की समस्त शक्तियाँ प्राप्त हैं।
  • आयोग किसी पीड़ित अथवा उसकी ओर से किसी अन्य व्यक्ति द्वारा दायर किसी याचिका पर स्वयं सुनवाई एवं कार्यवाही कर सकता है।
  • इसके अलावा आयोग न्यायालय की स्वीकृति से न्यायालय के समक्ष लम्बित मानवाधिकारों के प्रति हिंसा सम्बन्धी किसी मामले में हस्तक्षेप कर सकता है।
  • आयोग सम्बन्धित अधिकारियों को पूर्वसूचित करके किसी भी कारागार का निरीक्षण कर सकता है। आयोग मानवाधिकारों से सम्बन्धित संधियों इत्यादि का अध्ययन करता है तथा उन्हें और अधिक प्रभावी बनाने हेतु आवश्यक सुझाव भी देता है।
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