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भारतीय राजनीति

निर्वाचन आयोग का निर्णय

  • 04 Mar 2020
  • 5 min read

प्रीलिम्स के लिये:

निर्वाचन आयोग

मेन्स के लिये:

चुनावी प्रक्रिया के संदर्भ में गठित विभिन्न समितियों की सिफारिशें

चर्चा में क्यों?

हाल ही में निर्वाचन आयोग ने राजनीतिक दलों को चुनाव के दौरान मिलने वाली सरकारी फंडिंग/मदद के बारे में अपना मत व्यक्त करते हुए, इसका विरोध किया है।

मुख्य बिंदु:

  • आयोग का मानना है कि इससे यह तय करने में कठिनाई होती है कि चुनाव के दौरान किस राजनीतिक उम्मीदवार द्वारा कितना पैसा खर्च किया गया है।
  • आयोग का यह भी मानना है कि इससे उम्मीदवारों के खर्च पर नियंत्रण रख पाने में मुश्किल उत्पन्न होती है।

सरकार के प्रयास:

चुनावों के दौरान राजनीतिक दलों को मिलने वाली नकद मदद में पारदर्शिता लाने तथा चुनाव में काले धन के इस्तेमाल से बचने के लिये सरकार द्वारा समय-समय पर कुछ कदम उठाए गए जो इस प्रकार हैं-

  • सरकार ने राजनीतिक दलों को मिलने वाले चंदे में पारदर्शिता लाने और नकद लेन-देन को हतोत्साहित करने के लिये आयकर कानून में बदलाव किया गया है।
  • अज्ञात स्रोतों से मिलने वाले चंदे की सीमा अब 2000 रुपए निर्धारित कर दी गयी है।
  • वर्ष 2018 में चुनावी बाॅण्ड स्कीम की शुरुआत की गई जो राजनीतिक दलों को मिलने वाले चंदे में पारदर्शिता लाने के उद्देश्य से शरू की गई थी। इस योजना के क्रियान्वयन से राजनीतिक दलों को मिलने वाले चंदे की ऑडिटिंग में आसानी होगी।
  • आयकर विभाग द्वारा नॉन-फिलर्स मानीटरिंग सिस्टम ( Non-Filers Monitoring System -NMS) को लागू किया गया है इसके तहत अन्य स्रोतों के माध्यम से ऐसे लोगों के बारे में जानकारी प्राप्त की जाती है जिन्होंने कोई बड़ा वित्तीय लेन-देन किया हो परंतु आय कर रिटर्न नहीं भरा हो।

इस दिशा में अन्य समितियाँ एवं रिपोर्ट्स :

  • इन्द्रजीत गुप्त समिति (1998)-
    • चुनावी प्रणाली में व्यापक सुधार लाने के उद्देश्य से वर्ष 1998 में इस समिति का गठन किया गया।
    • इस समिति द्वारा राजनीतिक दलों को सरकारी खर्च पर चुनाव लड़ने का समर्थन करने की बात कही गई।
    • समिति द्वारा सुझाव दिया गया कि केंद्र सरकार द्वारा 600 करोड़ रुपए के योगदान से एक अलग चुनाव कोष का निर्माण किया जाए तथा कोष में सभी राज्यों की उचित भागीदारी सुनिश्चित की जाए।
    • समिति द्वारा सरकारी खर्च पर चुनाव लड़ने के लिये राजनीतिक दलों के लिये दो सीमाएँ निर्धारित की गईं-
      1. चुनाव लड़ने के लिये सरकारी मदद (चंदा) उन्हीं राष्ट्रीय एवं क्षेत्रीय दलों को प्राप्त हो जिन्हें चुनाव चिह्न आवंटित किया गया हो।
      2. अल्पकालीन स्टेट फंडिंग के तहत मान्यता प्राप्त राजनीतिक दलों एवं उम्मीदवारों को यह मदद अन्य सुविधाओं के रूप में दी जाएगी।
    • समिति द्वारा निर्दलीय उम्मीदवार को यह खर्च न देने की बात कही गई।
  • लाॅ कमीशन की रिपोर्ट (1999)-
    • वर्ष 1999 में प्रकाशित लाॅ कमीशन की रिपोर्ट में राज्यों को आंशिक फंडिंग की बात कहीं गई।
    • रिपोर्ट में सरकारी खर्च पर चुनाव तभी करने की बात कही गई है जब राजनीतिक दलों की किसी अन्य स्रोत से धन प्राप्ति पर पाबंदी हो।
  • संविधान समीक्षा आयोग (2001)-
    • वर्ष 2001 में संविधान समीक्षा आयोग द्वारा सरकारी खर्च पर चुनाव के विचार को पूरी तरह नकार दिया गया।
    • आयोग द्वारा 1999 में प्रकाशित लाॅ कमीशन की उस सिफारिश पर विचार करने की बात की गई जिसमें स्टेट फंडिंग पर विचार करने से पहले राजनीतिक दलों को उपयुक्त नियामक तंत्र के दायरे में लाए जाने का प्रावधान है।
  • प्रशासनिक सुधार आयोग (2008)-
    • वर्ष 2008 में गठित द्वितीय प्रशासनिक सुधार आयोग द्वारा अनैतिक एवं अनावश्यक फंडिंग को कम करने के उद्देश्य से आंशिक रूप से सरकारी खर्च पर चुनाव कराने की बात कही गई।

निर्वाचन आयोग:

निर्वाचन आयोग एक सवैधानिक निकाय है।

सविधान का अनुच्छेद-324 निर्वाचन आयोग से संबंधित कार्यों का वर्णन करता है।

स्रोत: द हिंदू

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