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भारतीय अर्थव्यवस्था

घरेलू प्रणालीगत महत्त्वपूर्ण बैंक

  • 21 Jan 2021
  • 8 min read

चर्चा में क्यों?

भारतीय रिज़र्व बैंक (RBI) ने भारतीय स्टेट बैंक, ICICI बैंक और HDFC बैंक को ‘घरेलू प्रणालीगत महत्त्वपूर्ण बैंकों’ (D-SIBs) के रूप में बनाए रखा है।

प्रमुख बिंदु

प्रणालीगत महत्त्वपूर्ण बैंक (SIBs) 

  • कुछ बैंक अपने आकार, क्रॉस-ज्यूरिडिक्शनल गतिविधियों, कार्यान्वयन संबंधी जटिलता की कमी, प्रतिस्थापन और परस्पर जुड़ाव के कारण प्रणालीगत रूप से काफी महत्त्वपूर्ण हो जाते हैं।
  • ये बैंक अपनी विशेषताओं के परिणामस्वरूप इतने महत्त्वपूर्ण हो जाते हैं कि आसानी से विफल नहीं हो सकते हैं। इसी धारणा के चलते संकट की स्थिति में सरकार द्वारा इन बैंकों पर समर्थन किया जाता है। 
    • प्रणालीगत महत्त्वपूर्ण बैंक (SIBs) प्रणालीगत जोखिमों और उनके द्वारा उत्पन्न नैतिक जोखिम से निपटने के लिये अतिरिक्त नीतिगत उपायों के अधीन होते हैं यानी संकट की स्थिति में ये बैंक अतिरिक्त नीतिगत उपायों को अपना सकते हैं।
    • प्रणालीगत जोखिम को किसी कंपनी, उद्योग, वित्तीय संस्थान या संपूर्ण अर्थव्यवस्था की विफलता या विफलता से जुड़े जोखिम के रूप में परिभाषित किया जा सकता है।
    • नैतिक जोखिम एक ऐसी स्थिति है, जिसमें एक पक्ष यह मानकर जोखिमपूर्ण घटना में शामिल होता है कि वह जोखिम से सुरक्षित है और जोखिम की लागत किसी दूसरे पक्ष द्वारा वहन की जाएगी।
  • इन बैंकों की विफलता के कारण बैंकिंग व्यवस्था द्वारा उपलब्ध कराई जाने वाली आवश्यक सेवाएँ भी बाधित हो सकती हैं, जिससे इनकी संपूर्ण आर्थिक गतिविधियों पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता है।

पृष्ठभूमि 

  • G-SIBs: वित्तीय स्थिरता बोर्ड (FSB) द्वारा बैंकिंग पर्यवेक्षण पर बेसल समिति (BCBS) और अन्य राष्ट्रीय प्राधिकरणों से परामर्श के बाद वर्ष 2011 से वैश्विक-प्रणालीगत महत्त्वपूर्ण बैंक (G-SIBs) की पहचान की जा रही है।
    • वित्तीय स्थिरता बोर्ड (FSB) एक अंतर्राष्ट्रीय निकाय है, जो वैश्विक वित्तीय प्रणाली के बारे में सिफारिशें करता है। इसकी स्थापना वर्ष 2009 में हुई थी। भारत इस अंतर्राष्ट्रीय निकाय का सदस्य है।
    • बैंकिंग पर्यवेक्षण पर बेसल समिति (BCBS) द्वारा G-SIBs के आकलन और पहचान करने के लिये कार्यप्रणाली अपनाई जाती है।

      बैंकिंग पर्यवेक्षण पर बेसल समिति (BCBS) वैश्विक स्तर पर बैंकों का विवेकपूर्ण नियमन करती है। भारतीय रिज़र्व बैंक इसका सदस्य है। 

  • G-SIIs: वित्तीय स्थिरता बोर्ड (FSB) इंटरनेशनल एसोसिएशन ऑफ इंश्योरेंस सुपरवाइज़र्स (IAIS) और अन्य राष्ट्रीय प्राधिकरणों के परामर्श से वर्ष 2013 से वैश्विक- प्रणालीगत महत्त्वपूर्ण बीमाकर्त्ताओं (G-SII) की पहचान कर रहा है।

घरेलू-प्रणालीगत महत्त्वपूर्ण बैंक (D-SIBs)

  • बैंकिंग पर्यवेक्षण पर बेसल समिति (BCBS) ने अक्तूबर 2012 में D-SIBs से संबंधित अपनी रूपरेखा को अंतिम रूप दिया था। D-SIBs फ्रेमवर्क इस बात पर ध्यान केंद्रित करता है कि बैंकों की विफलता का प्रभाव घरेलू अर्थव्यवस्था पर न पड़े।
  • G-SIBs फ्रेमवर्क के विपरीत D-SIBs फ्रेमवर्क राष्ट्रीय अधिकारियों द्वारा किये गए मूल्यांकन पर आधारित होता है।
  • भारतीय रिज़र्व बैंक (RBI) ने वर्ष 2014 में D-SIBs से संबंधित रूपरेखा जारी की थी। D-SIBs की रूपरेखा के मुताबिक, रिज़र्व बैंक के लिये घरेलू बैंकों को घरेलू- प्रणालीगत महत्त्वपूर्ण बैंक (D-SIBs) के रूप में नामित करना और उनके प्रणालीगत महत्त्वपूर्ण स्कोर (SISs) के आधार पर उपयुक्त श्रेणी में रखना आवश्यक है।
    • मूल्यांकन के लिये जिन संकेतकों का उपयोग किया जाता है उनमें बैंक का आकार, परस्पर संबंध, प्रतिस्थापन की स्थिति और कार्यकारी जटिलता आदि शामिल हैं।
    • उनके प्रणालीगत महत्त्वपूर्ण अंकों के आधार पर बैंकों को विभिन्न समूहों में रखा जाता है। घरेलू-प्रणालीगत महत्त्वपूर्ण बैंकों (D-SIBs) से अपेक्षा की जाती है कि वे रिस्क वेटेड एसेट्स (RWAs) के 0.20 प्रतिशत से 0.80 प्रतिशत के बीच अतिरिक्त सामान्य इक्विटी टीयर 1 (CET1) पूंजी आवश्यकता को बनाए रखें।
      • CET1, पूंजी की वह मात्रा होती है, जिसकी उपस्थिति में किसी भी जोखिम का प्रबंधन आसानी से किया जा सकता है। यह एक पूंजीगत उपाय है, जिसे वर्ष 2014 में वैश्विक स्तर पर एक सुरक्षात्मक साधन के रूप में प्रस्तुत किया गया था, ताकि अर्थव्यवस्था को वित्तीय संकट से बचाया जा सके।
    • यदि भारत में किसी विदेशी बैंक की शाखा एक वैश्विक-प्रणालीगत महत्त्वपूर्ण बैंक (G-SIBs) के रूप में स्थित है, तो उसे भारत में उसके रिस्क वेटेड एसेट्स (RWAs) के अनुपात में G-SIBs के रूप में लागू अतिरिक्त CET1 कैपिटल सरचार्ज को बनाए रखना होगा।

घरेलू-प्रणालीगत महत्त्वपूर्ण बीमाकर्त्ता (D-SII) 

  • भारतीय बीमा विनियामक और विकास प्राधिकरण (IRDAI) द्वारा वर्ष 2020-21 के लिये भारतीय जीवन बीमा निगम (LIC), जनरल इंश्योरेंस कॉरपोरेशन ऑफ इंडिया और न्यू इंडिया एश्योरेंस कंपनी को घरेलू-प्रणालीगत महत्त्वपूर्ण बीमाकर्त्ताओं के रूप में पहचाना गया है।
  • ये बड़े आकार, बाज़ार महत्त्व और घरेलू तथा वैश्विक परस्पर-संबंध वाले ऐसे बीमाकर्त्ता हैं, जिनकी विफलता के कारण घरेलू वित्तीय प्रणाली के समक्ष गंभीर संकट उत्पन्न हो सकता है।
  • IRDAI द्वारा मार्च 2019 में IL&FS संकट, जिसकी विफलता के कारण वित्तीय बाज़ारों में व्यापक पैमाने पर तरलता संकट पैदा हो गया था, के बाद बीमा कारोबार में ऐसी कंपनियों की पहचान की जा रही है।
  • इंटरनेशनल एसोसिएशन ऑफ इंश्योरेंस सुपरवाइज़र्स (IAIS) ने सभी सदस्य देशों को घरेलू- प्रणालीगत महत्त्वपूर्ण बीमाकर्त्ताओं से संबंधित एक नियामक ढाँचा तैयार करने को कहा है।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस

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