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विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी

मंगल ग्रह पर सबसे बड़े जल भंडार की खोज

  • 24 May 2019
  • 5 min read

चर्चा में क्यों

वैज्ञानिकों ने मंगल (Mars) ग्रह पर अब तक के सबसे बड़े जल भंडार का पता लगाया है। मंगल ग्रह पर यह जल भंडार बर्फ की परत के रूप में सतह से एक किलोमीटर नीचे पाया गया है। यह एक ऐसी खोज है जो इस बात का रहस्योद्घाटन कर सकती है कि अतीत में मंगल ग्रह (Red Planet) रहने योग्य था अथवा नहीं।

प्रमुख बिंदु

  • ऑस्टिन में टेक्सास विश्वविद्यालय और अमेरिका में एरिज़ोना विश्वविद्यालय की टीम का अनुमान है कि अगर बर्फ की ये परत पिघल जाती है, तो इस ग्रह के जलमग्न होने की स्थिति बन सकती है क्योंकि यह पिघला हुआ जल  5 फीट(1.5 मीटर) की लंबाई को धारण किये होगा जो इस ग्रह को आच्छादित करने के लिए पर्याप्त है।
  • शोधकर्त्ताओं ने नासा के मार्स रिकॉनेनेस ऑर्बिटर (Mars Reconnaissance Orbiter) पर शैलो राडार (Shallow RADAR- SHARAD) द्वारा एकत्र किये गए डेटा का उपयोग कर यह खोज की है।
  • SHARAD ऐसी राडार तरंगों का उत्सर्जन करता है जो मंगल की सतह के 1.5 मील नीचे तक प्रवेश कर सकती हैं।
  • जियोफिजिकल रिसर्च लेटर्स (Geophysical Research Letters) पत्रिका में प्रकाशित इस निष्कर्ष के अनुसार, बर्फ की परतें मंगल ग्रह की अतीत की जलवायु का रिकॉर्ड/प्रमाण ठीक उसी तरह से रखती हैं जैसे कि वृक्ष वलय (Tree Rings) पृथ्वी पर अतीत के जलवायु का रिकॉर्ड रखता हैं।
  • शोधकर्त्ताओं ने कहा कि इन परतों की ज्यामिति और संरचना का अध्ययन वैज्ञानिकों को बता सकता है कि मंगल ग्रह पर जलवायु की परिस्थितियाँ अतीत में अनुकूल थीं या प्रतिकूल।
  • इस खोज में प्राप्त बर्फ की परतें शुद्ध बर्फ की न होकर रेत मिश्रित हैं हालाँकि कुछ जगहों पर इस मिश्रण में 90% जल भी पाया गया।
  • शोधकर्त्ताओं के अनुसार, मंगल पर विगत हिम युगों के दौरान ध्रुवों पर बर्फ जमा होने से इन परतों का निर्माण हुआ होगा। ग्रह का तापमान बढ़ने पर बर्फ की परत का अवशेष रेत से ढंक गया होगा जिसके कारण वाष्पीकरण की प्रक्रिया अवरुद्ध हुई होगी।

मार्स रिकॉनेनेसेंस (टोही) ऑर्बिटर (Mars Reconnaissance Orbiter-MRO)

  • MRO का प्रक्षेपण 2005 में हुआ जिसका लक्ष्य इस साक्ष्य का पता लगाना था कि एक लंबे समय-अंतराल तक मंगल ग्रह पर जल की उपलब्धता रही होगी।
  • MRO में कई प्रकार के उपकरण होते हैं जैसे कैमरा, स्पेक्टोमीटर और राडार जिनका प्रयोग मंगल ग्रह के प्राकृतिक भू-अवस्थिति, स्ट्रेटिग्राफी, खनिज और बर्फ के विश्लेषण हेतु किया जाता है।

शैलो राडार (Shallow Radar-SHARAD):

  • यह मंगल की सतह के नीचे 4 किलोमीटर तक भूगर्भीय सीमाओं की तलाश करता है।
  • शैलो राडार वांछित रीज्योलूशन प्राप्त करने हेतु 15-25 मेगाहर्ट्ज़ आवृत्ति वाली राडार तरंगों का उपयोग करते हुए सतह की छानबीन करता है।
  • राडार द्वारा छोड़ी गई तरंगे परावर्तित होकर वापस आएंगी जिन्हें SHARAD एंटीना द्वारा कैप्चर किया जाएगा। ये तरंगे चट्टान, रेत सतह और उपसतह में मौजूद जल की विद्युत-परावर्तन विशेषताओं में होने वाले परिवर्तन के प्रति संवेदनशील होती हैं। जल किसी उच्च घनत्व वाली चट्टान की तरह बहुत संवहनीय होता है और राडार द्वारा छोड़ी गई तरंगों को अच्छी तरह परावर्तित करता है।
  • SHARAD इटालियन स्पेस एजेंसी (Italian Space Agency-ASI) द्वारा प्रदान की गई थी।       

स्रोत: टाइम्स ऑफ़ इंडिया

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