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सामाजिक न्याय

विमुक्त, घुमंतू और अर्द्ध-घुमंतू जनजातियाँ

  • 27 Dec 2022
  • 9 min read

प्रिलिम्स के लिये:

विमुक्त, घुमंतू और अर्द्ध-घुमंतू जनजातियाँ, संबंधित आयोग एवं समितियाँ, विमुक्त, घुमंतू और अर्द्ध-घुमंतू जनजातियों  (DWBDNC) के लिये विकास और कल्याण बोर्ड, DNT के लिये योजनाएँ।

मेन्स के लिये:

अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति से संबंधित मुद्दे, सरकारी नीतियाँ और हस्तक्षेप, भारत में विमुक्त, घुमंतू और अर्द्ध-घुमंतू जनजातियों की स्थिति।

चर्चा में क्यों?

सामाजिक न्याय और अधिकारिता पर संसदीय पैनल ने सरकार से SC/ST/OBC सूची के तहत विमुक्त, घुमंतू और अर्द्ध-घुमंतू जनजातियों के वर्गीकरण के कार्य में तेज़ी लाने को कहा है क्योंकि इसमें देरी से इन समुदायों की समस्याएँ बढ़ेंगी और वे कल्याणकारी योजनाओं से वंचित रह जाएंगे।

विमुक्त, घुमंतू और अर्द्ध-घुमंतू जनजातियाँ:

 ये ऐसे समुदाय हैं जो सबसे सुभेद्य और वंचित हैं।

  • विमुक्त ऐसे समुदाय हैं जिन्हें ब्रिटिश शासन के दौरान वर्ष 1871 के आपराधिक जनजाति अधिनियम से शुरू होने वाली कानूनों की एक शृंखला के तहत 'जन्मजात अपराधी' के रूप में 'अधिसूचित' किया गया था।
    • इन अधिनियमों को स्वतंत्र भारत सरकार द्वारा वर्ष 1952 में निरस्त कर दिया गया और इन समुदायों को ‘विमुक्त’ कर दिया गया था।
  • इनमें से कुछ समुदाय जिन्हें विमुक्त के रूप में सूचीबद्ध किया गया था, वे भी खानाबदोश थे।
    • खानाबदोश और अर्द्ध-घुमंतू समुदायों को उन लोगों के रूप में परिभाषित किया जाता है, जो हर समय एक ही स्थान पर रहने के बजाय एक स्थान से दूसरे स्थान पर जाते हैं। 
  • ऐतिहासिक रूप से घुमंतू और विमुक्त जनजातियों की कभी भी निजी भूमि या घर के स्वामित्व तक पहुँच नहीं थी।
  • अधिकांश विमुक्त समुदाय, अनुसूचित जाति (SC), अनुसूचित जनजाति (ST) और अन्य पिछड़ा वर्ग (OBC) श्रेणियों में वितरित हैं, जबकि कुछ विमुक्त समुदाय SC, ST या OBC श्रेणियों में से किसी में भी शामिल नहीं हैं। 
  • आज़ादी के बाद गठित कई आयोगों और समितियों ने इन समुदायों की समस्याओं का उल्लेख किया है।
    • इनमें संयुक्त प्रांत (अब उत्तर प्रदेश) में गठित आपराधिक जनजाति जाँच समिति, 1947 भी शामिल है।
    • वर्ष 1949 की अनंतशयनम आयंगर समिति (इसी समिति की रिपोर्ट के आधार पर आपराधिक जनजाति अधिनियम को निरस्त किया गया था)।
    • काका कालेलकर आयोग (जिसे पहला ओबीसी आयोग भी कहा जाता है) का गठन वर्ष 1953 में किया गया था।
    • वर्ष 1980 में गठित बीपी मंडल आयोग ने भी इस मुद्दे पर कुछ सिफारिशें की थीं।
    • संविधान के कामकाज़ की समीक्षा हेतु राष्ट्रीय आयोग (NCRWC) ने भी माना था कि विमुक्त समुदायों को अपराध प्रवण के रूप में गलत तरीके से कलंकित किया गया है और कानून-व्यवस्था एवं सामान्य समाज के प्रतिनिधियों द्वारा शोषण के अधीन किया गया है।
      • NCRWC की स्थापना न्यायमूर्ति एम.एन. वेंकटचलैया की अध्यक्षता में हुई थी।
  • एक अनुमान के अनुसार, दक्षिण एशिया में विश्व की सबसे बड़ी यायावर/खानाबदोश आबादी (Nomadic Population) निवास करती है।
    • भारत में लगभग 10% आबादी विमुक्त और खानाबदोश है।
    • जबकि विमुक्त जनजातियों की संख्या लगभग 150 है, खानाबदोश जनजातियों की जनसंख्या में लगभग 500 विभिन्न समुदाय शामिल हैं।

खानाबदोश/घुमंतू जनजातियों के समक्ष चुनौतियाँ:

  • बुनियादी अवसंरचना सुविधाओं का अभाव: इन समुदायों के सदस्यों के पास पेयजल, आश्रय और स्वच्छता आदि संबंधी बुनियादी सुविधाएँ उपलब्ध नहीं हैं। इसके अलावा ये स्वास्थ्य देखभाल और शिक्षा जैसी सुविधाओं से वंचित हैं।
  • स्थानीय प्रशासन का दुर्व्यवहार: विमुक्‍त, घुमंतू और अर्द्ध-घुमंतू समुदायों के संबंध में प्रचलित गलत और अपराधिक धारणाओं के कारण आज भी उन्हें स्थानीय प्रशासन और पुलिस द्वारा प्रताड़ित किया जाता है।
  • सामाजिक सुरक्षा कवर का अभाव: चूँकि इन समुदायों के लोग प्रायः यात्रा पर रहते हैं, इसलिये इनका कोई स्थायी ठिकाना नहीं होता है। नतीजतन उनके पास सामाजिक सुरक्षा कवर का अभाव होता है और उन्हें राशन कार्ड, आधार कार्ड आदि भी नहीं जारी किया जाता है। 
  • इन समुदायों के बीच जाति वर्गीकरण बहुत स्पष्ट नहीं है, कुछ राज्यों में इन समुदायों को अनुसूचित जाति में शामिल किया जाता है, जबकि कुछ अन्य राज्यों में उन्हें अन्य पिछड़े वर्ग (OBC) के तहत शामिल किया जाता है।
    • इन समुदायों के अधिकांश लोगों के पास जाति प्रमाण पत्र नहीं होता और इसलिये वे सरकारी कल्याण कार्यक्रमों का लाभ नहीं उठा पाते हैं। 

विमुक्‍त, घुमंतू और अर्द्ध-घुमंतू समुदायों से संबंधित योजनाएँ:

  • DNT के लिये डॉ. अंबेडकर प्री-मैट्रिक और पोस्ट-मैट्रिक छात्रवृत्ति:
    • यह केंद्र प्रायोजित योजना वर्ष 2014-15 में विमुक्‍त, घुमंतू और अर्द्ध-घुमंतू जनजाति (DNT) के उन छात्रों के कल्याण हेतु शुरू की गई थी, जो अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति या अन्य पिछड़ा वर्ग (OBC) श्रेणी के अंतर्गत नहीं आते हैं।
    • यह योजना विमुक्‍त, घुमंतू और अर्द्ध-घुमंतू समुदायों के बच्चों विशेषकर बालिकाओं के बीच शिक्षा के प्रसार में सहायक है।
  • DNT बालकों और बालिकाओं हेतु छात्रावासों के निर्माण संबंधी नानाजी देशमुख योजना: 
    • वर्ष 2014-15 में शुरू की गई यह केंद्र प्रायोजित योजना, राज्य सरकारों/ केंद्रशासित प्रदेशों/केंद्रीय विश्वविद्यालयों के माध्यम से लागू की गई है।
    • योजना का उद्देश्य अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति या अन्य पिछड़ा वर्ग (OBC) श्रेणी के अंतर्गत न आने वाले DNT छात्रों को छात्रावास की सुविधा प्रदान कर उन्हें उच्च शिक्षा प्राप्त करने में सक्षम बनाना है। 
  • DNT के आर्थिक सशक्तीकरण के लिये योजना:  
    • इसका उद्देश्य मुफ्त प्रतियोगी परीक्षा कोचिंग, स्वास्थ्य बीमा, आवास सहायता और आजीविका पहल प्रदान करना है।
    • यह वर्ष 2021-22 से अगले पाँच वर्षों में 200 करोड़ रुपए का खर्च सुनिश्चित करेगा।
    • गैर-अधिसूचित, घुमंतू और अर्द्ध-घुमंतू जनजातियों (DWBDNC) के लिये विकास और कल्याण बोर्ड को इस योजना के कार्यान्वयन का काम सौंपा गया है।
  • DWBDNC: 
    • कल्याण कार्यक्रमों को लागू करने के उद्देश्य से सामाजिक न्याय और अधिकारिता मंत्रालय के तत्त्वावधान में सोसायटी पंजीकरण अधिनियम, 1860 के तहत DWBDNC की स्थापना की गई थी।
    • DWBDNC का गठन 21 फरवरी, 2019 को भीकू रामजी इदते की अध्यक्षता में किया गया था।

स्रोत: द हिंदू 

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