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डेटा पॉइंट: स्वच्छ गंगा मिशन, क्या कहते हैं आँकड़े

  • 22 Jan 2019
  • 4 min read

संदर्भ


पिछले वर्ष नवंबर-दिसंबर के दौरान सरकार के आदेशानुसार गंगा किनारे स्थित 92 शहरों का एक स्वतंत्र अध्ययन किया गया। इस अध्ययन में देश के पाँच राज्यों से होकर गुज़रने वाली गंगा के किनारे स्थित कस्बों की स्वच्छता, ठोस कचरा प्रबंधन और नालों को शामिल किया गया है।

प्रमुख बिंदु

  • इस अध्ययन में 5 अन्य कस्बों को भी शामिल किया जाना था किंतु इनके आँकड़े उपलब्ध नहीं हो सके।
  • इस अध्ययन में कहा गया है कि गंगा के किनारे स्थित 39% कस्बों में स्वच्छता, ठोस अपशिष्ट प्रबंधन और नालों (नालियों) की देख-भाल के तरीके में समग्र सुधार की आवश्यकता है।

शहरों की ग्रेडिंग

  • इस अध्ययन में गंगा किनारे अवस्थित शहरों को तीन ग्रेड में वर्गीकृत किया गया है-

♦ ग्रेड A: घाट क्षेत्र में और उसके आसपास अच्छी सफाई और ठोस अपशिष्ट प्रबंधन सेवाएँ। अधिकांश नाले गंदा पानी साफ करने के संयंत्र (Sewage Treatment Plants-STP) से जुड़े थे।
♦ ग्रेड B: घाटों के आसपास आंशिक सफाई। ठोस अपशिष्ट प्रबंधन सेवाओं में सुधार की आवश्यकता है।
♦ ग्रेड C: साफ-सफाई, ठोस अपशिष्ट प्रबंधन सेवाओं और नालों के निर्माण के साथ-साथ बुनियादी ढाँचे में समग्र सुधार की आवश्यकता है।


शहरों का प्रदर्शन

  • बिहार और पश्चिम बंगाल के आधे से अधिक शहरों (जिनसे होकर गंगा प्रवाहित होती है) को ग्रेड C दिया गया है, जिसका अर्थ है कि उन्हें समग्र सुधार की आवश्यकता है।
  • राज्यवार शहरों के प्रदर्शन के बारे में और जानकारी के लिये नीचे दिये गए ग्राफ का अवलोकन करें।

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नदियों में कचरा

  • आमतौर पर सभी राज्यों के शहरों को नाले के माध्यम से गंगा में कचरा बहाते हुए पाया गया। बिहार के शहरों में नदी के आस-पास कचरा फेकने के लिये उचित स्थल भी पाए गए।
  • नदियों के किनारे कचरा प्रबंधन और डंपिंग के बारे में विस्तृत जानकारी के लिये नीचे दिये गए ग्राफ का अवलोकन करें।

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जनसंख्या का प्रभाव

  • एक लाख से अधिक आबादी वाले केवल तीन कस्बों को ग्रेड A में श्रेणीबद्ध किया गया। A ग्रेड प्राप्त करने वाले अधिकांश कस्बों की आबादी बहुत कम है। अर्थात् आबादी बढ़ने के साथ-साथ कचरा प्रबंधन और स्वच्छता संबंधी मामलों में शहर पिछड़ने लगता है।

grade

आवंटित निधि के उपयोग में दक्षता

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  • स्वच्छ गंगा मिशन के लिये आवंटित धन के विश्लेषण से पता चलता है कि 2017-18 के बजट की केवल आधी राशि जारी/खर्च की गई थी, जबकि 2015 में केवल 8.33 प्रतिशत राशि जारी/खर्च की गई थी।

स्रोत-द हिंदू

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