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नवीकरणीय ऊर्जा क्षेत्र में महिलाओं हेतु नौकरियों की संभावना

  • 16 May 2018
  • 8 min read

संदर्भ
हाल ही में मैककिंसे ग्लोबल इंस्टीट्यूट द्वारा किये गए एक अध्ययन के अनुसार ऐसी संभावना व्यक्त की गई है कि यदि भारत अपने कर्मचारियों के रूप में महिलाओं की भागीदारी को और अधिक सक्षम बनाता है, तो वर्ष 2025 तक अपने जीडीपी को 60% तक बढ़ा सकता है। इसी संदर्भ में वर्तमान भारत के नवीकरणीय ऊर्जा क्षेत्र को महिला रोज़गार की संभावित क्षमताओं की दृष्टि से और अधिक विकसित करने पर ज़ोर दिया जा रहा है।  

महिलाओं की कम भागीदारी के कारण 

  • भारत में महिलाओं की कम श्रम भागीदारी से संबंधित समस्याएँ और अवसर एक दूसरे जुड़े हुए हैं अर्थात् इसमें स्पष्ट कार्य-कारण सिद्धांत कार्य करता है।
  • भारत में महिला भागीदारी की कमी का प्रमुख कारण गरीबी है।
  • विश्व बैंक की एक रिपोर्ट के अनुसार भारत में 270 मिलियन से अधिक लोग गरीबी में रहते हैं।
  • इसके अलावा, एक स्वायत्त अंतर सरकारी संगठन, अंतर्राष्ट्रीय ऊर्जा एजेंसी द्वारा किए गये अध्ययन से पता चलता है कि भारत में 240 मिलियन लोग बुनियादी बिजली सेवाओं की कमी में जीवन यापन करते हैं।
  • गौरतलब है कि सरकार ने वर्ष 2022 तक अक्षय ऊर्जा के 175 गीगावाट क्षमता को स्थापित करने का महत्त्वाकांक्षी लक्ष्य रखा है और इनमें से कई प्रतिष्ठान ग्रामीण इलाकों में स्थापित किए जाएंगे जहाँ बड़ी संख्या में गरीब रहते हैं।
  • अब प्रश्न यह है कि क्या स्थापित किये जाने वाले ये प्रतिष्ठान महिलाओं की भागीदारी को लक्षित करेंगे।
  • वर्तमान में, भारत में अन्य क्षेत्रों के साथ ही नवीकरणीय ऊर्जा उद्योग क्षेत्र में, महिलाओं की भागीदारी कम है। विश्व बैंक के मुताबिक महिला श्रम बल भागीदारी के मामले में 131 देशों में 120 महिलाएँ ही कार्यरत हैं।
  • वर्तमान में नवीकरणीय ऊर्जा क्षेत्र में कार्यरत अधिकांश महिलाएँ परियोजना स्थल पर सिविल चिनाई जैसे कार्य करती हैं, जो भविष्य में विकास के लिये अस्थायी और श्रम-केंद्रित साधन है।
  • इसके अलावा, कई साइटों पर काम करने की स्थितियाँ हमेशा महिलाओं के लिये उपयुक्त नहीं होती हैं, क्योंकि वे सुरक्षा और समर्थन प्रणाली जैसी मूलभूत सुविधाओं से रहित हैं।
  • इसके साथ ही जहाँ अधिक कुशल या अर्द्ध कुशल श्रम की आवश्यकता है वहाँ औपचारिक शिक्षा और प्रशिक्षण के मौजूदा बाधाओं के कारण बहुत कम महिलाएँ अपनी भागीदारी दे पाती हैं।
  • एक प्रमुख समस्या यह भी है कि तकनीकी प्रशिक्षण संस्थान उन आवेदकों का आवेदन स्वीकार नहीं करते हैं, जिन्होंने कक्षा 12 या स्नातक नहीं किया है और यहाँ तक कि जब वे प्रशिक्षण संस्थानों में प्रवेश की पूर्व शर्तों को पूरा भी करती हैं तो, प्रशिक्षण संस्थान दूर कस्बों और शहरों में स्थित होते हैं, जिससे ग्रामीण महिलाओं का प्रभावी ढंग से भाग लेना मुश्किल हो जाता है।
  • खासकर यह समस्याएँ तब और बढ़ जाती हैं, जब उनसे अन्य घरेलू ज़िम्मेदारियों को पूरा करने की भी उम्मीद होती है।
  • परिणामतः नवीकरणीय ऊर्जा क्षेत्र में उत्पादन, सुविधाओं तथा संचालन और रखरखाव की भूमिका में बहुत कम महिलाएँ ही भागीदारी निभा पाती हैं।

मौजूदा प्रणाली को कैसे बेहतर बनाया जाए?

  • यह सर्वविदित है कि नौकरियाँ किस प्रकार गरीबी के टैग को दूर करती हैं किन्तु अहम यह है कि कैसे मौजूदा प्रणालियों में रोज़गार सृजित किये जाएँ।
  • यदि इस दृष्टिकोण से देखें तो विकेंद्रीकृत नवीकरणीय ऊर्जा क्षेत्र तथा ऑफ-ग्रिड ऊर्जा क्षेत्र के विकास के साथ ही विशेष रूप से कार्यबल में स्थानीय महिलाओं को शामिल करने की मह्त्त्वपूर्ण संभावना है।
  • यदि सरकार, स्वच्छ ऊर्जा उद्यम प्रशिक्षण संस्थान और नागरिक समाज को मिलकर काम करते हैं, तो भारत अच्छी गुणवत्ता वाले रोज़गार के अवसर पैदा कर सकता है जो अधिक श्रमबल में महिलाओं की अधिक भागीदारी को सुमिश्चित कर सकते हैं।
  • लेकिन इस प्रकार की पहल से पूर्व ज़रूरी है कि महिलाओं को केंद्र में रखते हुए व्यापक रूपरेखा तय की जाए।
  • इसके साथ ही प्रशिक्षण संस्थान प्रवेश हेतु पूर्व शर्तों को कम कर सकते हैं, जिससे कम औपचारिक रूप से शिक्षित महिलाओं को नए कौशल सीखने और प्रशिक्षण प्राप्त करने की अनुमति मिल सकेगी।
  • इसके अलावा प्रशिक्षण को विशिष्ट आवश्यकताओं जैसे कि स्थान, व्यस्तता के घंटे, सम्मान के लिये सुरक्षा और स्वच्छता को सुनिश्चित किया जाना चाहिए।
  • दूरस्थ प्रशिक्षण क्षेत्रों में महिलाओं के छोटे समूहों को प्रशिक्षित करने हेतु मोबाइल प्रशिक्षण मॉड्यूल विकसित किए जा सकते हैं।
  • प्रशिक्षण संस्थानों और नागरिक समाज संगठनों को प्रशिक्षित महिलाओं की सहायता हेतु स्वच्छ ऊर्जा उद्यमों के साथ सहयोगात्मक संबंधों को अधिक मज़बूत करना चाहिए।महिलाओं की विशिष्ट ज़रूरतों के प्रति उनकी संवेदनशीलता नवीकरणीय कार्यबल में महिलाओं की भागीदारी में वृद्धि करने में मदद कर सकती है। यदि सार्वजनिक और निजी क्षेत्र महिलाओं को ऐसी नौकरियाँ में, खासकर गरीब समुदायों में, लाने के लिये एक साथ मिलकर काम करते हैं, तो भारत में स्वच्छ ऊर्जा के द्वारा महिलाओं और उनके परिवारों के लिये जीवन की गुणवत्ता में सुधार हो सकता है।

निष्कर्ष
भारत में महिलाओं की स्थिति में सुधार आवश्यक है। सरकार के वर्ष 2022 तक अक्षय ऊर्जा के 175 गीगावाट क्षमता को स्थापित करने के महत्त्वाकांक्षी लक्ष्य के साथ महिला रोज़गार की संभावनाएँ तलाशना सही दिशा में उठाया गया एक मह्त्त्वपूर्ण कदम है क्योंकि इससे गरीबी, रोज़गार, स्वच्छता तथा सशक्तीकरण संबंधी तमाम समस्यायों को एक साथ साधा जा सकता है। परंतु इसके साथ ही यह भी सुनिश्चित करना होगा कि उनके साथ किसी भी प्रकार का भेदभाव न हो तथा वे स्वयं को भारतीय समाज से विलग न समझकर इसका ही एक हिस्सा समझें। उल्लेखनीय है कि भारतीय समाज में आज भी कई ऐसी महिलाएँ हैं जो कुशल होने के बावजूद भी हर क्षेत्र में पिछड़ जाती है। अतः आवश्यकता इस बात की है कि इन महिलाओं को परिवर्तन की मुख्यधारा में लाया जाए और भारत को श्रेष्ठ से श्रेष्ठतम बनाया जाए।

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