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जैव विविधता और पर्यावरण

शीत-रक्त प्रजातियाँ

  • 19 Feb 2020
  • 4 min read

प्रीलिम्स के लिये:

'रेट ऑफ लिविंग' सिद्धांत

मेन्स के लिये:

जलवायु परिवर्तन और प्रजातियाँ

चर्चा में क्यों?

हाल ही में किये गए एक अध्ययन से पता चला है कि जलवायु परिवर्तन के कारण शीत-रक्त प्रजातियाँ (Cold-Blooded Species) तेज़ी से विलुप्त हो रही हैं।

शीत-रक्त प्रजातियाँ:

जानवरों द्वारा उपयोग किये जाने वाले ऊर्जा स्रोत के आधार पर जानवरों को दो समूहों में विभाजित किया जाता है:

1. शीत-रक्त प्रजातियाँ 2. गर्म-रक्त वाली प्रजातियाँ शीत-रक्त वाले जानवरों के शरीर का तापमान आंतरिक रूप से नियंत्रित नहीं रहता अपितु उनका तापमान अस्थिर होता है और वह वातावरण के अनुसार बदलता रहता है।

मुख्य बिंदु:

  • यह अध्ययन क्वीन्स यूनिवर्सिटी बेलफास्ट (Queen’s University Belfast ) और तेल अवीव विश्वविद्यालय (Tel Aviv University) के शोध पर आधारित है।
  • इस अध्ययन को ग्लोबल इकोलॉजी एंड बायोग्राफी (Global Ecology and Biogeography) जर्नल में प्रकाशित किया गया।
  • अध्ययन में दुनिया भर से 4,100 भूमि कशेरुक (Vertebrate) प्रजातियों के उपापचय क्रियाओं का विश्लेषण किया गया।

अध्ययन के मुख्य निष्कर्ष:

  • इस अध्ययन में ‘रेट ऑफ लिविंग’ (Rate of Living) सिद्धांत और जीवनकाल (Lifespan) के बीच कोई संबंध नहीं पाया गया।
  • जबकि अध्ययन में सरीसृप (Reptiles) और उभयचर (Amphibians) जैसे शीत-रक्त प्रजातियों की जीवन प्रत्याशा पर ग्लोबल वार्मिंग का बहुत विपरीत प्रभाव पाया गया।

रेट ऑफ लिविंग :

  • “उम्र का बढ़ना उपापचय की दर से संबंधित होता है, शरीर जितना तेजी से कार्य करेगा उतनी ही कम आयु में संतानोत्पत्ति क्षमता होगी और प्रजातियों का जीवनकाल उतना ही कम अवधि का होगा।”
  • 100 साल से अधिक पुराने इस सिद्धांत का परीक्षण वैश्विक स्तर पर सभी भूमि कशेरुकों के साथ नहीं किया गया था और इस सिद्धांत का जिन प्रजातियों पर परीक्षण किया गया उनकी भी अनेक प्रजातियों के साथ अनेक सीमाएँ थीं।
  • गर्म जलवायु ने वास्तव में ऐसी प्रजातियों के जीवनकाल को छोटा कर दिया है जिसके कारण इन प्रजातियों के तेज़ी से विलुप्त होने का खतरा उत्पन हो गया है।
  • शोधकर्त्ताओं ने अब 'रेट ऑफ लिविंग' के लिये एक वैकल्पिक परिकल्पना प्रस्तावित की है: “वातावरण जितना अधिक गर्म होगा, ‘रेट ऑफ लिविंग’ उतनी ही तेज़ होगी, जिससे अधिक तेज़ी से उम्र बढ़ेगी और जीवनकाल छोटा होगा।”

शोध का महत्त्व:

  • दुनिया भर में जैव विविधता में गिरावट की स्थिति में इस शोध के निष्कर्ष, विलुप्त होते जीवों के पीछे के कारकों को समझने में मदद करेंगे।
  • शीत-रक्त वाली प्रजातियाँ ग्लोबल वार्मिंग के कारण अब और अधिक असुरक्षित हैं। क्योंकि तापमान बढ़ने से इन जीवों की आयु कम हो जाती है तथा इन प्रजातियों पर विलुप्त होने का खतरा मंडरा रहा है, अतः इन जीवों को अधिक संरक्षण उपायों की आवश्यकता होगी।

स्रोत: द हिंदू

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