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जैव विविधता और पर्यावरण

क्लासिकल स्वाइन बुखार

  • 24 Apr 2020
  • 4 min read

प्रीलिम्स के लिये:

क्लासिकल स्वाइन बुखार, अफ्रीकी स्वाइन बुखार, लैपिनाइज़्ड वैक्सीन

मेन्स के लिये:

क्लासिकल स्वाइन बुखार से संबंधित मुद्दे 

चर्चा में क्यों?

हाल ही में, पूर्वी असम के कुछ ज़िलों में क्लासिकल स्वाइन बुखार (Classical Swine Fever) के कारण एक सप्ताह के भीतर 1300 से अधिक सूअरों की मृत्यु हुई है।

प्रमुख बिंदु:

  • गौरतलब है कि क्लासिकल स्वाइन बुखार को हॉग हैजा (Hog Cholera) के नाम से भी जाना जाता है। यह एक संक्रामक बुखार है जो सूअरों के लिये जानलेवा साबित होता है।
    • अफ्रीकी स्वाइन बुखार एक अन्य प्रकार का स्वाइन बुखार है।
  • स्वाइन फ्लू से मनुष्य संक्रमित होते हैं, जबकि इसके विपरीत क्लासिकल स्वाइन बुखार से केवल सूअर ही संक्रमित होते हैं। समय रहते सूअरों के उचित टीकाकरण से ही इसे नियंत्रित किया जा सकता है।

अफ्रीकी स्वाइन बुखार:

  • अफ्रीकी स्वाइन बुखार एक गंभीर संक्रामक रोग है जो घरेलू और जंगली सूअरों को प्रभावित करता है।
  • यह रोग जीवित या मृत सूअरों, घरेलू या जंगली और इनसे बने मांस उत्पादों द्वारा फैलता है।
  • इस रोग का कोई एंटीडोट या वैक्सीन उपलब्ध नहीं है।

रोकथाम और नियंत्रण:

  • संक्रमित सूअरों के शवों को 3-4 फीट गहरे गढ़े में दफनाया या जलाया जाना चाहिये।
  • CSF के प्रकोप को रोकने हेतु सख्त और कठोर स्वच्छता उपचार लागू करना चाहिये।

आर्थिक पहलू:

  • 20 वीं पशुधन जनगणना, 2012-2019 के अनुसार, असम में सबसे अधिक सूअर पाले जाते हैं।
    • असम में पॉर्क (सूअर का कच्चा मांस) का वार्षिक बाज़ार मूल्य 1 बिलियन डॉलर है। 
    • देश में उत्पादित 4.26 लाख मीट्रिक टन पोर्क में से  65% से अधिक पोर्क की खपत असम तथा उत्तर-पूर्वी राज्यों में होती है।
  • क्लासिकल स्वाइन बुखार की वजह से देश को लगभग 4.299 बिलियन रुपए का वार्षिक नुकसान होता है।

लैपिनाइज़्ड क्लासिकल स्वाइन बुखार वैक्सीन:

  • भारत में इस बीमारी को नियंत्रित करने के लिये वर्ष 1964 से यूके आधारित एक लैपिनाइज़्ड क्लासिकल स्वाइन बुखार वैक्सीन का उपयोग किया जा रहा है।
  • इस वैक्सीन का निर्माण बड़ी संख्या में खरगोशों को मार कर किया जाता है।
  • देश में लैपिनाइज़्ड क्लासिकल स्वाइन बुखार वैक्सीन की प्रति वर्ष 22 मिलियन खुराक की जरूरत हैं वहीं लैपिनाइज़्ड वैक्सीन का उत्पादन प्रति वर्ष सिर्फ 1.2 मिलियन खुराक ही हो पाता है।
  • हाल ही में भारत में भी क्लासिकल स्वाइन बुखार से बचाने हेतु ‘एक स्वास्थ्य पहल’ (One Health Initiative) के तहत एक नई वैक्सीन विकसित की गई है।

स्रोत: द हिंदू

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