इंदौर शाखा: IAS और MPPSC फाउंडेशन बैच-शुरुआत क्रमशः 6 मई और 13 मई   अभी कॉल करें
ध्यान दें:

डेली अपडेट्स


जैव विविधता और पर्यावरण

हवाई जहाज के कंट्रेल से ग्लोबल वार्मिंग में वृद्धि

  • 02 Jul 2019
  • 6 min read

चर्चा में क्यों?

हाल ही में एक अध्ययन से यह पता चला है कि एयरक्राफ्ट की तुलना में वायु-यानों द्वारा निकलने वाले कंट्रेल (Contrails)/(वायु-यान के धुएँ से निर्मित कृत्रिम बादल) अत्यधिक कार्बन डाइ ऑक्साइड (CO2) उत्सर्जन करते हैं जो ग्लोबल वार्मिंग के लिये ज़िम्मेदार है।

प्रमुख बिंदु

  • अध्ययनकर्त्ताओं के अनुसार, वायु-यानों से उत्सर्जित धुएँ के प्रभाव से होने वाला जलवायु परिवर्तन वर्ष 2006 की तुलना में वर्ष 2050 तक तीन गुना हो जाएगा। इसके निम्नलिखित कारण हैं:
  • आधुनिक विमान अपने पूर्ववर्तियों की तुलना में अधिक तेज़ उड़ान भरते है, जिससे उष्णकटिबंधीय क्षेत्र पर संवेदी बादल बनने की संभावना बढ़ जाती है।
  • हवाई यातायात में वृद्धि।
  • ईंधन की दक्षता में सुधार
  • अध्ययन के अनुसार, वायुमंडल पर कंट्रेल बादलों के कारण पड़ने वाले दुष्प्रभाव से उत्तरी अमेरिका और यूरोप सर्वाधिक प्रभावित होगा क्योंकि ये विश्व के सबसे व्यस्त हवाई यातायात क्षेत्र हैं।
  • हालांकि, एशिया में भी इसका दुष्प्रभाव पडेगा क्योंकि इस क्षेत्र में भी हवाई यातायात में वृद्धि हो रही है।
  • कंट्रेल का ऊष्ण प्रभाव अल्पकालिक होता है, क्योंकि यह ऊपरी वायुमंडल में होता है, लेकिन यह स्पष्ट नहीं है कि यह वास्तव में यह तापान्तर पृथ्वी की सतह की तुलना में कितना है।

कंट्रेल्स

  • अत्यधिक ऊंचाई पर वाष्प दबाव और तापमान बहुत कम होने के कारण जेट इंजन से निकलने वाली नम अपशिष्ट गैसें वातावरण में मिल जाती है।
  • जेट विमानों से उत्सर्जित अपशिष्ट गैसों में निहित जल वाष्प, संघनित हो कर जम जाती है एवं इसी प्रक्रिया के द्वारा कंट्रेल बादलों का निर्माण होता है।
  • इनमें से अधिकांश कंट्रेल बादल शीघ्र ही से लुप्त हो जाते हैं, लेकिन अनुकूल परिस्थितियों में वे घंटों तक रह सकते हैं, और जब ऐसा होता है तो वे पृथ्वी द्वारा उत्सर्जित तापीय विकिरण को अवशोषित करके वातावरण को गर्म कर देते हैं।

प्रभाव

  • जेट इंजन से उत्सर्जित अपशिष्ट गैसों में कार्बन डाइऑक्साइड, सल्फर और नाइट्रोजन के ऑक्साइड, अधजला ईंधन, कालिख और कुछ धातु के कण, साथ ही जल वाष्प भी होती हैं।
  • जिसमें कालिख जल वाष्प को संघनन स्थल प्रदान करती है तथा हवा में मौजूद अन्य कण अतिरिक्त सहायक की भूमिका निभाते हैं।
  • एक विमान की ऊंचाई, वातावरण का तापमान और आर्द्रता, कंट्रेल की मोटाई की सीमा और अवधि में भिन्न हो सकती हैं।
  • जेट कंट्रेल की प्रकृति और दृढ़ता का उपयोग मौसम की भविष्यवाणी हेतु भी किया जा सकता है।
  • अत्यधिक ऊंचाई पर एक पतली, अल्पकालिक कंट्रेल कम नमी वाली हवा को इंगित करता है, जो उचित मौसम का संकेत देता है, जबकि एक मोटी, लंबे समय तक चलने कंट्रेल उच्च ऊंचाई पर आर्द्र हवा को दर्शाता है और एक तूफान का शुरुआती संकेतक हो सकता है।

महत्व

  • विमानन का पहले से ही जलवायु पर एक महत्वपूर्ण प्रभाव रहा है। वर्ष 2005 में, वायु यातायात ने जलवायु परिवर्तन पर मनुष्यों के प्रभाव का लगभग 5 प्रतिशत योगदान दिया है।
  • प्रत्येक 15 वर्ष के अंतराल पर हवाई यातायात लगभग दोगुना हो जाता है। वायु-यानों के कंट्रेल, विमानन उद्योग के सबसे बड़े जलवायु प्रदूषक हैं
  • लेकिन विमानन क्षेत्र की जलवायु परिवर्तन को कम करने के लिए नीतियां CO2 उत्सर्जन पर ध्यान केंद्रित करती हैं, परंतु कंट्रेल के प्रभाव को अनदेखा कर देती हैं।
  • अतः अध्ययनकर्त्ता यह सुझाव देते है कि कंट्रेल जलवायु परिवर्तन का प्रमुख कारक है जिसे ध्यान में रखकर जलवायु नीतियों का निर्माण करना चाहिये।

उपाय

  • क्लीनर द्वारा विमान उत्सर्जन समस्या को हल किया जा सकता है, इसकी सहायता से विमान इंजनों द्वारा उत्सर्जित कालिख कणों की संख्या को कम करके कंट्रेल में संघनित बर्फ के क्रिस्टल की संख्या घट जाती है और इसका तात्पर्य है कि कंट्रेल सिरस का जलवायु प्रभाव भी कम हो जाएगा।
  • हालांकि, कालिख (Soot) के प्रभाव को कम करने से भले ही यह 90 प्रतिशत तक कम हो गया हो लेकिन कंट्रेल, वर्ष 2006 की तुलना में वर्ष 2050 में ऊष्णता को तेज़ी से बढ़ाएगा।

स्रोत: टाइम्स ऑफ इंडिया

close
एसएमएस अलर्ट
Share Page
images-2
images-2