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भारतीय अर्थव्यवस्था

पेंशन तथा बीमा पॉलिसी में बदलाव हेतु सिफारिशें

  • 05 Nov 2018
  • 3 min read

चर्चा में क्यों?

हाल ही में एक पैनल द्वारा बीमा नियामक एवं विकास प्राधिकरण (Insurance Regulatory and Development Authority) को पेंशन तथा बीमा प्लांस में कई तरह के बदलाव करने की पेशकश की गई है। इन बदलावों से बीमाधारकों को फायदा होने की उम्मीद है।

प्रमुख बिंदु

  • बीमा नियामक को की गई सिफारिशों में कहा गया है कि किसी स्वास्थ्य बीमा पॉलिसी की शुरुआत के बाद, होने वाली सभी स्वास्थ्य संबंधी परिस्थितियों को पॉलिसी के तहत शामिल किया जाना चाहिये, इन्हें स्थायी रूप से बहिष्कृत नहीं किया जा सकता है।
  • इस रिपोर्ट में कहा गया है कि पॉलिसी की शुरुआत के बाद की सभी स्वास्थ्य परिस्थितियों को, इसके अंतर्गत उन स्थितियों को शामिल नहीं किया जाएगा जो पॉलिसी अनुबंध (जैसे बांझपन और मातृत्व) के अंतर्गत शामिल हैं, पॉलिसी के तहत कवर किया जाना चाहिये।
  • अर्थात पॉलिसी की शुरुआत के बाद अल्जाइमर, पार्किंसंस, एड्स/एचआईवी संक्रमण, विकृत मोटापे आदि जैसी अनुबंधित बीमारियों का बहिष्कार नहीं किया जा सकता है।
  • पैनल ने सिफारिश की है कि किसी भी विशिष्ट बीमारी की स्थिति के लिये पॉलिसी के शब्दों में कोई स्थायी बहिष्करण नहीं होना चाहिये, चाहे वह बीमारी शारीरिक हो, अपजनन संबंधी हो अथवा पुरानी कोई बीमारी हो।
  • इन सिफारिशों में 17 स्थितियों का वर्णन किया गया है। इसके अंतर्गत मिर्गी, दिल की जन्मजात बीमारी, हृदय रोग और वाल्वुलर हृदय रोग, पुराने यकृत रोग, सुनने में परेशानी, एचआईवी और एड्स, अल्जाइमर, पार्किंसंस आदि को शामिल किया गया है।
  • इसके अतिरिक्त यह भी कहा गया है कि बीमाकर्त्ताओं को किसी भी विशिष्ट बीमारी की स्थिति में अधिकतम 4 वर्षों तक की प्रतीक्षा अवधि (अवधि जब दावा स्वीकार्य नहीं है) को शामिल करने की अनुमति दी जा सकती है। उच्च रक्तचाप, मधुमेह, हृदय संबंधी स्थितियों के लिये 30 दिनों से अधिक समय की अनुमति नहीं दी जा सकती है।

इस रिपोर्ट में अनुशंसित परिवर्तनों से बीमा पॉलिसी के मूल्य प्रभावित होने  की संभावना बढ़ गई है। साथ ही नियामक को भी बहिष्कृत परिस्थितियों के संबंध में भी स्पष्ट परिभाषा देनी होगी ताकि भविष्य में किसी प्रकार के विवाद से बचा जा सकें तथा सभी के लिये बेहतर स्वास्थ्य सुविधाएँ सुनिश्चित की जा सकें।

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