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शिक्षागत समस्याओं पर केंद्रित ‘वर्ल्ड डेवलपमेंट रिपोर्ट’ 2018

  • 26 Oct 2017
  • 7 min read

वर्ल्ड डेवलपमेंट रिपोर्ट 2018 के पृष्ठ संख्या 115 पर दी गई उपरोक्त तस्वीरें अत्यंत ही महत्त्वपूर्ण हैं। विश्व बैंक की पहली बार शिक्षा पर केंद्रित इस नई रिपोर्ट में दोनों छवियाँ इसलिये महत्त्वपूर्ण हैं क्योंकि ये शिक्षा और कुपोषण के मध्य अंतर्निहित प्रवृत्तियों के एक महत्त्वपूर्ण पक्ष को उज़ागर करती हैं।

दरअसल ये बांग्लादेश के ढाका में रहने वाले एक ही आयु के दो बच्चों के मस्तिष्क की एमआरआई इमेजेज़ (MRI image) हैं। चित्र ‘a’ यानी पहली तस्वीर एक ऐसे शिशु के मस्तिस्क की है जिसका विकास अच्छे से हुआ है (never-stunted child) जबकि चित्र ‘b’ यानी दूसरी तस्वीर एक ऐसे बच्चे की है जिसका कि विकास कुपोषण के कारण अवरुद्ध रहा है।

दोनों तस्वीरों में साफ तौर पर यह देखा जा सकता है कि भलीभाँति विकसित बच्चे के मस्तिष्क के फाइबर ट्रैक्ट्स अल्प-विकसित बच्चे के दिमाग के फाइबर ट्रैक्ट्स की तुलना में अधिक सघन हैं। यह दिखाता है कि तीव्र वंचना और कुपोषण किस प्रकार से बच्चों के मानसिक विकास को प्रभावित कर सकते हैं। इस लेख में हम विश्व बैंक की इस रिपोर्ट द्वारा सतह पर लाई गई समस्याओं एवं आगे की राह के संबंध में चर्चा करेंगे।

क्यों महत्त्वपूर्ण है यह रिपोर्ट?

  • विश्व बैंक की ‘वर्ल्ड डेवलपमेंट रिपोर्ट 2018: लर्निंग टू रियलाइज एजुकेशन प्रॉमिस’ शिक्षा पर केंद्रित है और जहाँ तक विश्व बैंक की वार्षिक डेवलपमेंट रिपोर्ट का सवाल है तो 4 दशकों में ऐसा पहली बार हुआ है जब विश्व बैंक ने अपनी रिपोर्ट में शिक्षा का ज़िक्र किया है।
  • इस रिपोर्ट से संबंधित सबसे महत्त्वपूर्ण बात यह है कि इसमें बच्चों के शारीरिक और मानसिक विकास पर गरीबी और कुपोषण के दूरगामी प्रभाव की चर्चा की गई।

रिपोर्ट में व्यक्त चिंताएँ

  • रिपोर्ट में बताया गया है कि कम-आय वाले देशों में पाँच वर्ष से कम उम्र के बच्चों में स्टंटिंग की दर समृद्ध देशों की तुलना में तीन प्रतिशत अधिक है। बचपन के स्टंटिंग के शिकार यानी अल्प-वृद्धि का प्रभाव वयस्कता में भी बना रहता है।
  • साथ ही रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि इस बात के पक्ष में कोई मज़बूत तर्क नहीं दिया जा सकता कि निजी स्कूल सार्वजनिक स्कूलों की तुलना में बच्चों को सिखाने की दृष्टि से बेहतर हैं।
  • ग्रामीण भारत में तीसरी कक्षा के तीन चौथाई और पाँचवीं कक्षा के आधे से ज़्यादा छात्र दो अंकों के जोड़-घटाने वाला मामूली सवाल हल करने में सक्षम नहीं हैं। निम्न और मध्यम आय वाले 12 वैसे देशों की सूची जहाँ शिक्षा व्यवस्था की हालत दयनीय है, में भारत दूसरे नंबर पर है।

आगे की राह

  • रिपोर्ट में स्कूलों में इस्तेमाल करने योग्य शौचालयों के अभाव को लड़कियों के स्कूल छोड़ने का प्रमुख कारण माना गया है। दरअसल, स्कूलों में बड़ी संख्या में शौचालयों का निर्माण किया गया है, लेकिन ख़राब निर्माण एवं अन्य बुनियादी आवश्यकताओं के अभाव में इनका प्रयोग नहीं किया जा रहा है। हमारे नीति-निर्माताओं को इस संबंध में ध्यान देना होगा।
  • गौरतलब है कि प्राथमिक शिक्षा की बदहाली का मुख्य कारण शिक्षा पर होने वाले खर्च में भारी असमानता है। विदित हो कि केरल में प्रति व्यक्ति शिक्षा पर खर्च लगभग 42,000 रुपए है, वहीं बिहार समेत देश के अन्य राज्यों में यह रकम 6000 रुपए या इससे भी कम है।
  • जनसंख्या के लिहाज़ से देश के सबसे बड़े राज्य उत्तर प्रदेश में गरीबी रेखा के निचे जीवन यापन करने वाले 70 प्रतिशत बच्चे पाँचवीं तक ही शिक्षा ग्रहण कर पाते हैं। ज़ाहिर है हमें यह असमानता दूर करनी होगी और इसके लिये नीतिगत कदम उठाने होंगे, जैसे:

♦ शिक्षा क्षेत्र में प्रौद्योगिकी को बढ़ावा देना।
♦ शिक्षकों के प्रशिक्षण की व्यवस्था करना।
♦ सरकारी खर्च को बढ़ाना।
♦ समावेशी शिक्षा प्रणाली पर ज़ोर देना।
♦गुणवत्ता की शिक्षा को बढ़ावा देना।
♦ शिक्षा क्षेत्र में ढाँचागत विकास हेतु ‘पीपीपी मॉडल’ को अपनाना।
♦ शिक्षा नीति को समावेशी बनाना।

निष्कर्ष

  • विश्व बैंक की यह रिपोर्ट निश्चित भारत के लिये आँखें खोलने वाली होनी चाहिये, हालाँकि ऐसा नहीं है कि इससे पहले हम सुधारों की दशा और दिशा के बारे में अनजान थे।
  • गौरतलब है कि शिक्षा व्यवस्था में सुधार लाने हेतु गठित ’टी.आर. सुब्रह्मण्यम समिति’ ने शिक्षा क्षेत्र के लिये एक नया सिविल सर्विस कैडर बनाने, यूनिवर्सिटी ग्रांट कमीशन (UGC) का उन्मूलन, कक्षा-V तक नो डिटेंशन पालिसी जारी रखने और प्राथमिक विद्यालय स्तर पर अंग्रेज़ी की शिक्षा देने जैसे अनेक महत्त्वपूर्ण सुझाव दिये थे। चिंताजनक यह है कि इस समिति के प्रावधानों को सरकार द्वारा अभी तक लागू नहीं किया गया है।
  • बच्चों के भविष्य को सही राह दिखाने एवं देश में समावेशी विकास को बढ़ावा देने हेतु यह आवश्यक है कि शिक्षा व्यवस्था को चुस्त-दुरुस्त किया जाए। अत: हमें अन्य सुधारों के साथ-साथ उचित प्रशासन मानकों, सरकार द्वारा पर्याप्त प्रोत्साहन और चेक और बैलेंस की नीति अपनाने की ज़रूरत है।
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