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एडिटोरियल

भारतीय अर्थव्यवस्था

वित्तीय समावेशन में महिलाएँ

  • 29 Apr 2021
  • 8 min read

यह एडिटोरियल दिनांक 24/04/2021 को द हिंदुस्तान टाइम्स में प्रकाशित लेख “Women are key to financial inclusion” पर आधारित है। इसमें वित्तीय समावेशन में लिंग-आधारित बाधाओं पर चर्चा की गई है।

समावेशी आर्थिक विकास में वृद्धि करने एवं गरीबी में कमी लाने के लिये आर्थिक रूप से वंचित वर्गों तक गुणवत्तापूर्ण वित्तीय उत्पादों एवं सेवाओं की पहुँच बढ़ाना आवश्यक है। इसे देखते हुए वित्तीय समावेशन में महिलाओं की भागीदारी बढ़ाना बेहद महत्त्वपूर्ण है क्योंकि महिलाएँ तुलनात्मक रूप से अधिक गरीबी, श्रम के असमान वितरण और आर्थिक संसाधनों पर नियंत्रण की कमी का अनुभव करती हैं।

आधार से जुड़े e-KYC (इलेक्ट्रॉनिक-नो योर कस्टमर) से आँकड़ों के संग्रहण और प्रमाणीकरण के प्रभावी कार्यान्वयन ने औपचारिक वित्तीय प्रणाली में महिलाओं के प्रवेश की बाधाओं को कम किया है। जनधन-आधार-मोबाइल (JAM) के जरिये 230 मिलियन महिलाओं को औपचारिक वित्तीय सेवा पारिस्थितिकी तंत्र में लाने की कोशिश की गई है।

डिजिटल प्रौद्योगिकियों और सरकार की पहल के बावजूद वित्तीय समावेशन में महिलाओं की भागीदारी बढ़ाने में आने वाली बाधाओं को पूर्णतः समाप्त नहीं किया जा सका है।

महिलाएँ और वित्तीय समावेशन 

  • वित्तीय लचीलापन: कम आय वाले घरों में खर्च और बचत का निर्णय महिलाएँ लेती हैं। इस प्रकार वे पुरुषों की तुलना में अधिक प्रतिबद्ध और अनुशासित बचतकर्त्ता हैं।
    • कई शोधों से पता चला है कि जब भी उचित अवसर मिलता है तो महिलाएँ बचत करती हैं और ऐसा करके वित्तीय लचीलेपन को बढ़ावा देती हैं। अतः बैंकों के लिये महिलाओं को लक्षित करना आर्थिक रूप से अधिक व्यवहार्य है।
  • सामाजिक पूंजी में वृद्धि: वित्तीय संस्थानों के साथ महिलाओं के जुड़ने से, ऐसे संस्थानों में कार्य में महिलाओं की भागीदारी एवं ऋण प्राप्त करने से उनकी क्षमता बढ़ने से सामाजिक पूंजी में बढ़ोतरी होगी।
    • इस प्रकार 230 मिलियन महिला जन-धन ग्राहकों को आर्थिक रूप से सशक्त बनाने से 920 मिलियन लोगों (यदि एक परिवार में औसतन चार सदस्य हों तो) के जीवनस्तर में सुधार संभव है।
  • महिलाओं के सशक्तीकरण और गरीबी में कमी के लिये: कम आय वाली महिलाओं को बचत करने, उधार लेने, भुगतान करने और प्राप्त करने के लिये प्रभावी और सस्ता वित्तीय साधन प्रदान करना तथा जोखिम का प्रबंधन करना महिला सशक्तीकरण के साथ-साथ गरीबी में कमी दोनों उद्देश्यों के लिये महत्त्वपूर्ण है।
  • वित्तीय समावेशन में लैंगिक अंतराल: वर्ष 2017 के ग्लोबल फाइनडेक्स डेटाबेस के अनुसार, भारत में 15 वर्ष से अधिक आयु के 83% पुरुष जबकि, केवल 77% महिलाओं का खाता किसी वित्तीय संस्थान में खुला हुआ है।

माॅंग आधारित बाधाएँ:

आपूर्ति आधारित बाधाएँ:

कानूनी और नियामक बाधाएँ:

घर के भीतर सौदेबाजी की शक्ति (Bargaining Power) का अभाव।

समय की कमी या सामाजिक मानदंडों के कारण वित्तीय गतिशीलता में कमी।

खाता खुलवाने में आवश्यक प्रमाण पत्र जो महिलाएँ आसानी  से प्राप्त नहीं कर सकती है।

ऐसी आर्थिक गतिविधियों में निवेश करना जो कम फायदेमंद है।

उत्पाद डिज़ाइन और विपणन के लिये लिंग-आधारित नीतियों और प्रथाओं का अभाव।

औपचारिक पहचान प्राप्त करने में बाधाएँ।

महिलाओं के अवैतनिक घरेलू काम में संलग्नता।

अनुचित वितरण चैनल।

संपत्ति और अन्य संपार्श्विक के स्वामित्व और विरासत प्राप्त होने में आने वाली कानूनी बाधाएँ।

ऋण लेने हेतु संपार्श्विक (Collateral) के लिये संपत्ति की कमी।

डिजिटल समावेशन की दर में कमी।

लिंग-समावेशी क्रेडिट रिपोर्टिंग सिस्टम का अभाव।

आगे की राह 

  • लिंग-आधारित आँकड़े: वित्तीय सेवा प्रदाताओं को ऐसी रणनीतियों को अपनाने की आवश्यकता है, जो लिंग आधारित आँकड़ों का उपयोग करके जन-धन में महिला खातों पर अधिक ध्यान केंद्रित कर सके।
    • उन्हें महिलाओं को लक्षित करना चाहिये। उनके साथ संवाद स्थापित कर वित्तीय उत्पादो और प्रक्रियाओं को महिला केंद्रित बनाना चाहिये।
    • नीतिगत स्तर पर कम आय वाली महिलाओं के लिये उत्पादों और सेवाओं के निर्माण के लिये लिंग-आधारित आँकड़ों को एकत्र करना एवं उनका विश्लेषण करना महत्त्वपूर्ण है।
  • डिज़ाइन में परिवर्तन: वित्तीय सेवा प्रदाताओं को वित्तीय उत्पादों को महिलाओं की आवश्यकताओं और वरीयताओं के अनुसार डिज़ाइन करना चाहिये। साथ ही उन उत्पादों का प्रभाव महिलाओं की निवेश करने की क्षमता पर अनुकूल रूप से पड़ना चाहिये।
    • ऐसे वित्तीय उत्पाद, जो महिलाओं को अपने आय और खर्च पर नियंत्रण के साथ-साथ अधिक-से-अधिक गोपनीयता प्रदान करते हैं, महिलाओं को आकर्षित करते हैं।
  • वित्तीय साक्षरता को प्रोत्साहित करना: वित्तीय साक्षरता प्रदान करना वित्तीय समावेशन की कुंजी है।
    • इस संदर्भ में, भारतीय रिज़र्व बैंक ने वित्तीय साक्षरता परियोजना शुरू की है।
    • परियोजना का उद्देश्य विभिन्न लक्षित समूहों, जिनमें स्कूल और कॉलेज जाने वाले बच्चे, महिलाएँ, ग्रामीण एवं शहरी, रक्षा कर्मी तथा वरिष्ठ नागरिक शामिल हैं, तक केंद्रीय बैंक और सामान्य बैंकिंग अवधारणाओं के बारे में जानकारी पहुँचाना है।

निष्कर्ष

महिलाओं को लक्षित कर वित्तीय समावेशन में उनकी भागीदारी सुनिश्चित कर ऋण की उपलब्धता एवं काम के अवसरों तक महिलाओं की पहुँच बढ़ाने से महिलाओं का सशक्तीकरण तो होगा ही साथ ही, घरेलू स्तर पर आर्थिक लचीलापन भी बढ़ेगा, जो किसी भी आर्थिक संकट (उदाहरण स्वरूप महामारी में बेरोज़गारी का संकट) के समय पतवार की तरह कार्य करेगा।

अभ्यास प्रश्न: डिजिटल तकनीकों और सरकार की कई पहलों के बावजूद, वित्तीय समावेशन में महिलाओं की भागीदारी बढ़ाने में आने वाली बाधाओं को समाप्त नहीं किया जा सका है। चर्चा कीजिये।

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