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एडिटोरियल

भारतीय अर्थव्यवस्था

नगरीय रोज़गार और COVID-19 महामारी

  • 17 Sep 2020
  • 10 min read

यह संपादकीय विश्लेषण लेख “Urban employment as the focal Point” पर आधारित है, जिसे 15 सितंबर 2020 को ‘द हिंदू’ में प्रकाशित किया गया था। इसमें वर्तमान समय में रोज़गार परिदृश्य के बारे में बात की गई है।

संदर्भ:

COVID -19 महामारी के कारण अर्थव्यवस्था के संकुचन ने शहरी क्षेत्रों में रोज़गार की स्थिति पर चिंताओं में वृद्धि की है। हालाँकि जून 2020 में शुरू किया गया ‘गरीब कल्याण रोज़गार अभियान’ एक तात्कालिक राहत हो सकती है, लेकिन 50,000 करोड़ रुपए की यह रोज़गार योजना समुचित शहरी रोज़गार के लिये उपयुक्त विकल्प नहीं हो सकती है। इसके अतिरिक्त, महामारी एवं इससे संबद्ध नीतिगत प्रतिक्रियाओं (अनियोजित लॉकडाउन) ने इन शहरी नौकरियों की भेद्यता को उजागर किया है। इस प्रकार, समग्र अर्थव्यवस्था को बनाए रखने के लिये , शहरी रोज़गार सृजन को पुनर्जीवित करने के लिये नीतिगत हस्तक्षेपों की आवश्यकता है।

रोज़गार का संकट

  • प्रमुख रोज़गार सृजन क्षेत्र में मंदी: संकुचित होते क्षेत्र जो सबसे अधिक प्रभावित हुए हैं: निर्माण (-50%), व्यापार, होटल एवं  अन्य सेवाएँ (-47%), विनिर्माण (-39%) और खनन (-23%)। ये वे क्षेत्र हैं जो अर्थव्यवस्था में अधिकतम नौकरियों का सृजन करते हैं।
  • रिवर्स माइग्रेशन: आर्थिक मंदी के परिमाण का उदाहरण लॉकडाउन के शुरुआती चरण के दौरान बड़े पैमाने पर रिवर्स माइग्रेशन की लहर के रूप में दिया जा सकता है, जिससे शहरों में आजीविका चले जाने  के कारण लाखों श्रमिक अपने गृह राज्यों में लौट गए थे।
  • कमज़ोर अनौपचारिक क्षेत्र: अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन के अनुसार, वर्ष 2019 में भारत में 535 मिलियन नौकरियों में से 398.6 मिलियन खराब गुणवत्ता वाली नौकरियाँ हैं। इसके अलावा, लॉकडाउन ने शहरी अनौपचारिक नौकरियों में असुरक्षित रोज़गार की स्थिति को उजागर कर दिया है।
    • अपर्याप्त आय, कम उत्पादकता एवं  काम की कठिन परिस्थितियाँ सुभेद्य रोज़गार की विशेषताएँ हैं जो श्रमिकों के मूल अधिकारों को क्षीण करती हैं।
    • उच्च एवं स्थायी सुभेद्य रोज़गार संरचनात्मक परिवर्तन प्रक्रिया की प्रकृति का प्रतिबिंब है,  जहाँ पूंजी और श्रम को उच्च मूल्यवर्द्धित क्षेत्रों में परिवर्तित किया जाता है।
    • हालाँकि, भारत में पूंजी और श्रम उच्च मूल्यवर्द्धित गतिविधियों में नहीं निम्न मूल्यवर्द्धित गतिविधियों में एक क्षेत्र से दूसरे क्षेत्र में स्थानांतरित होते रहे हैं।
    • यह एक ऐसी स्थिति की ओर ले जाता है जहाँ सृजित नौकरियों का एक बड़ा अनुपात खराब गुणवत्ता का होता है।
  • कामकाजी गरीबों की बढ़ती संख्या: हाल के वर्षों में अधिक आर्थिक विकास के बावज़ूद, भारत में कामकाजी ग़रीबों की संख्या में वृद्धि हो रही है।
    • हाल के वर्षों में सेवा क्षेत्र की अगुवाई वाली वृद्धि ने इसे तीव्र कर दिया है क्योंकि कुछ सूचना और संचार प्रौद्योगिकी (आईसीटी) -गहन सेवाओं में सुदृढ़ रोज़गार सृजन का सह-अस्तित्व है।
    • हालाँकि, एक महत्त्वपूर्ण संख्या में ये नौकरियाँ पारंपरिक कम मूल्यवर्द्धित सेवाओं में सृजित हो रही हैं, जहाँ अनौपचारिकता और रोज़गार सुभेद्यता प्रमुख हैं।
    • नौकरियों की खराब गुणवत्ता एवं अधिक अनौपचारिकता "कामकाजी गरीबों" के उच्च स्तर का प्रमुख कारण हैं। कामकाजी गरीब ऐसे कामकाजी लोग हैं जिनकी आय कम आय वाली नौकरियों और कम पारिवारिक आय के कारण गरीबी रेखा से नीचे होती है।

आगे की राह

  • स्थानीकृत संसाधनों को जुटाना: शहरीकरण के पैमाने को देखते हुए, शहरी रोज़गार सृजन कार्यक्रमों पर ध्यान स्थानीय सरकारों के केंद्र में होना चाहिये।
    • इसके लिये स्थानीय स्तर पर कर्ताओं को अधिक संसाधन के व्यवस्थापन की आवश्यकता होगी।
    • चुने हुए प्रतिनिधियों, ट्रेड यूनियनों, उद्यमियों और सामुदायिक समूहों को शामिल करके स्थानीय गठबंधनों के गठन से संसाधन जुटाए जा सकते हैं।
    • यह शहरों के सामने आने वाली अन्य समस्याओं को हल करने में भी महत्त्वपूर्ण सिद्ध हो सकता है।
  • स्थानीयकृत रोज़गार-गहन निवेश नीतियाँ: रोज़गार-गहन निवेश नीतियों को डिज़ाइन और कार्यान्वित करने के लिये प्रमुख स्थानीय पहलों की आवश्यकता है। इसके लिये:
    • प्रौद्योगिकी और उत्पादकता वृद्धि से जुड़े मुद्दों पर श्रमिकों और उद्यमियों के लिये हितों को कवर करने के लिये स्थानीय उद्यम निर्माण को रणनीति का एक अभिन्न अंग बनाने की आवश्यकता है।
    • इसके अलावा, लघु और सूक्ष्म उद्योग जो औद्योगिकीकरण का आधार हैं, श्रम और पूंजी के मध्य हितों को संतुलित करने के लिये अतिरिक्त सहायता की आवश्यकता है क्योंकि दोनों में ही सामूहिक सौदेबाजी की शक्तियाँ नहीं हैं।
    • शहरी अवसंरचना को प्राथमिकता देना: शहरी अवसंरचना को प्राथमिकता देना आवश्यक है क्योंकि यह समग्र अर्थव्यवस्था में कुल निवेश के एक बड़े हिस्से के लिये उत्तरदाई होती है।
    • नगरीय बुनियादी ढाँचे के निर्माण के लिये एक श्रम-साध्य दृष्टिकोण, पूंजी गहन-दृष्टिकोण का एक लागत-प्रभावी विकल्प हो सकता है क्योंकि मज़दूरी की दरें कम हैं।
    • अवसंरचना निवेश रोज़गार उत्पन्न करेगा, आय उत्पन्न करेगा और छोटे उद्यम निर्माण में योगदान देगा।
    • कम लागत वाले आवास का निर्माण एक अन्य गतिविधि है जिसे शहरी निवासियों के लिये पर्याप्त संपार्श्विक लाभ प्रदान करते हुए, श्रम-गहन तरीकों का उपयोग करके किया जा सकता है।
  • शहरी रोज़गार योजना का शुभारंभ: संपूर्ण भारत के शहरों और कस्बों में बड़े पैमाने पर चिकित्सा, स्वास्थ्य और स्वच्छता बुनियादी ढाँचे के निर्माण की दिशा में उन्मुख एक शहरी रोज़गार योजना के तत्काल शुभारंभ की आवश्यकता है।
    • बजटीय आवंटन बढ़ाने और काम के दिनों की न्यूनतम संख्या की गारंटी में वृद्धि कर शहरी क्षेत्रों के लिये मनरेगा का विस्तार किया जा सकता है।
    • राज्य और स्थानीय सरकारों के कल्याणकारी हस्तक्षेप के रूप में अन्य रोज़गार सृजन तत्काल आवश्यक सेवाओं के नेटवर्क का विस्तार करने के लिये हो सकता है।
  • प्रवासन को कम करने के लिये प्रोत्साहन में वृद्धि: ग्रामीण क्षेत्रों में रोज़गार के अवसरों को बढ़ाने और शिक्षा, स्वास्थ्य, बिजली, पानी एवं स्वच्छता जैसी सेवाओं में वृद्धि करके ग्रामीण विकास पर ध्यान केंद्रित करना ग्रामीण से शहरी प्रवासन को नियंत्रित करने के लिये प्रभावी साधन है।

निष्कर्ष

आर्थिक संकुचन को देखते हुए, शहरी क्षेत्रों में समुचित वेतन और रोज़गार की सुरक्षा प्रदान करके अधिक रोज़गार उत्पन्न करने एवं सुभेद्यता को कम करने की आवश्यकता है। इस प्रकार, वर्तमान संकट शहरी रोज़गार के मुद्दे से निपटने के लिये एक बहु-आयामी रणनीति का आह्वान करता है।

मुख्य परीक्षा प्रश्न: COVID-19 महामारी के कारण नगरीय रोज़गार पर पड़ने वाले प्रभावों की चर्चा कीजिये तथा इन प्रभावों से निपटने हेतु सरकार द्वारा किये गए प्रयासों और नवाचारों का उल्लेख कीजिये।

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