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एडिटोरियल

अंतर्राष्ट्रीय संबंध

पश्चिम एशिया में राजनीतिक खेल

  • 30 Oct 2018
  • 9 min read

संदर्भ

हाल ही में सऊदी के पत्रकार जमाल खशोगी की हत्या ने विश्व के समक्ष सऊदी अरब शासन की क्रूर प्रकृति को स्पष्ट रूप से उजागर किया है। सऊदी अरब द्वारा जमाल खशोगी की हत्या इस्तांबुल स्थित वाणिज्य दूतावास में कर दी गई थी। उल्लेखनीय है कि खशोगी सऊदी क्राउन प्रिंस मोहम्मद बिन सलमान की नीतियों के कटु आलोचक थे। इसके साथ ही इस संपूर्ण प्रकरण ने विश्व राजनीति में सऊदी अरब के अन्य देशों के साथ संबंधों को मुख्य पृष्ठ पर ला दिया है।

संपूर्ण प्रकरण

  • जमाल खशोगी की हत्या के मामले में सऊदी अरब ने अपने उप खुफिया प्रमुख अहमद अल-असिरी और शाही अदालत के मीडिया सलाहकार सौद अल-काहतानी को बर्खास्त कर दिया क्योंकि ये दोनों मोहम्मद बिन सलमान के शीर्ष सहायक थे और खशोगी की हत्या के मामले में बढ़ते दबाव का सामना कर रहे थे।
  • सऊदी अरब खशोगी की हत्या से लगातार इनकार करता आ रहा था और उसके सबसे बड़े समर्थक अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने पत्रकार की हत्या की पुष्टि होने पर उस पर प्रतिबंध लगाने की चेतावनी भी दी थी।
  • इस हत्या के बाद तुर्की-सऊदी प्रतिद्वंद्विता का भी खुलासा हुआ जो अब तक सार्वजनिक रूप से छिपा हुआ था।
  • दरअसल, पिछले कुछ हफ्तों में तुर्की प्रेस ने इस हत्या के बारे में सबसे ग़लत विवरण सार्वजनिक किये हैं जो यह स्पष्ट करते हैं कि इस हत्या में सऊदी क्राउन परिवार का हाथ था।

उल्लेखनीय है कि उपर्युक्त प्रकरण में दो कारक अहम हो जाते हैं जो इस प्रकार है –

अमेरिकी कारक

  • पिछले कुछ वर्षों में अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप द्वारा दिये गए स्पष्ट संदेशों ने तुर्की की आशंका को और बढ़ाया है खासकर रियाद को अपनी पहली विदेश यात्रा हेतु चुनना इसकी एक प्रमुख वज़ह है क्योंकि इसके बाद से सऊदी अरब पश्चिम एशिया में अमेरिका की नीतियों का अगुआ बन गया था।
  • तुर्की-यू.एस. के संबंधों में गिरावट के बाद से अमेरिका ने सऊदी अरब के लिये अपना समर्थन और बढ़ा दिया था।
  • दरअसल, सीरियाई कुर्दों के दृष्टिकोण में प्रमुख मतभेदों के चलते यू.एस. के साथ तुर्की के संबंध लगातार तनावपूर्ण होते चले गए।
  • उल्लेखनीय है कि अमेरिका ने इस्लामी राज्य के खिलाफ लड़ाई में कुर्द YPG मिलिटीया का सैन्य समर्थन किया, जबकि तुर्की जो कि वाईपीजी को कुर्दिस्तान वर्कर पार्टी का विस्तार मानती है, ने इस तरह के कदम का ज़ोरदार विरोध किया।
  • इसके साथ ही रूस से एस-400 एंटी-मिसाइल रक्षा प्रणालियों को खरीदने के तुर्की के फैसले ने भी संबंधों में अस्थिरता की स्थिति पैदा की है।
  • वहीं सऊदी अरब के अमरिकी झुकाव ने सऊदी अरब और तुर्की के बीच मौजूदा मतभेदों को और बढ़ा दिया है।
  • वर्ष 2011 में अरब वसंत के दौरान भी विरोध बढे क्योंकि तुर्की ने सत्ताधारी सरकारों को उखाड़ फेंकने का उत्साहपूर्वक स्वागत किया तो वहीं उस दौरान सऊदी शासन, जो खुद को कमजोर महसूस कर रहा था, ने इसका दृढ़ता से विरोध किया था।
  • दूसरी तरफ, सऊदी अरब संवैधानिक और मध्यम इस्लामवाद जैसे राजनीतिक आंदोलनों का उपयोग शक्ति हासिल करने की मुख्य रणनीति के रूप में करता है क्योंकि यह सीधे सऊदी के निरपेक्ष इस्लामवाद को चुनौती देता है।
  • उल्लेखनीय है कि यह सऊदी शत्रुता का आधार है। यही कारण था कि सऊदी ने 2013 में मिस्र के जनरल अब्देल फतेह अल-सिसी का साथ दिया था और तुरंत उसके सैन्य शासन के लिये $ 2 बिलियन मिस्र की अर्थव्यवस्था को प्रदान किया था।
  • उपर्युक्त पश्चिमी विचारधारा से प्रभावित होकर सऊदी अरब के क्राउन प्रिंस, मोहम्मद बिन सलमान का उदय हुआ है, जिन्होंने सशक्त रूप से सऊदी की शक्ति को बढाया है और जिससे तुर्की की चिंता में वृद्धि हुई है, क्योंकि सऊदी न केवल ईरान बल्कि तुर्की का बहिष्कार कर अरब दुनिया पर हावी होने का इरादा रखता है।

कतर दृष्टिकोण

  • पिछले कुछ वर्षों में अन्य अंतर भी सामने आए हैं। सऊदी अरब ने वर्ष 2017 में मुख्य रूप से इसे ईरान के साथ अपने सौहार्द्रपूर्ण संबंधों के लिये दंडित करने हेतु कतर पर नाकाबंदी लगाई, जिसके साथ यह दुनिया का सबसे बड़ा प्राकृतिक गैस क्षेत्र साझा करता है।
  • उल्लेखनीय है कि कतर के तुर्की के साथ घनिष्ठ संबंध हैं और तुर्की सैन्य अड्डों की मेज़बानी भी करता है।
  • कतर के अमीर ने 2016 में असफल सैन्य विद्रोह के दौरान एर्दोगन (तुर्की के राष्ट्रपति) को सुरक्षा प्रदान करने के लिये सैनिकों का एक दल भेजा था।
  • परिणामस्वरूप ईरान और तुर्की ने साथ-साथ कतर का समर्थन किया है जिसमें नाकाबंदी तोड़ने और कतर में तुर्की की सैन्य उपस्थिति को और मज़बूत करने के लिये आवश्यक आपूर्ति हेतु उड़ान भरने के लिये समर्थन शामिल है।
  • तुर्की द्वारा कतर के समर्थन का विचार भी सऊदी अरब और तुर्की की ईरान संबंधी नीतियों के अंतर को दर्शाता है।
  • सीरियाई संघर्ष पर ईरानी महत्त्वाकांक्षाओं और इसके साथ ही प्रमुख बाधाओं से सावधान रहते हुए, तुर्की ईरान के साथ अपने संबंधों को भी बनाए रखने में रुचि रखता है क्योंकि ईरान ऊर्जा का एक प्रमुख आपूर्तिकर्त्ता है। इसके अलावा, तुर्की और ईरान, कुर्द अलगाववाद से संबंधित एक आम खतरे का भी सामना करते हैं।
  • हाल ही में जब तक तुर्की और ईरान सीरियाई संघर्ष में विपरीत पक्षों पर थे, ईरान ने राजनीतिक और सैन्य रूप से असद शासन का समर्थन किया और तुर्की विपक्ष को हथियारों की आपूर्ति कराने की प्रमुख चाल चल रहा था।
  • हालाँकि, तुर्की, रूस और ईरान के बीच एक समझौते की हालिया नीति से संकेत मिलता है कि सीरिया में अपने प्रभाव को परिभाषित करने के लिये ईरान और तुर्की के बीच एक मोडस विवेन्दी यानी एक ऐसा समझौता जो विवादित दलों को शांतिपूर्वक सह-अस्तित्व में रहने की इज़ाज़त देता है, का काम किया गया है।

निष्कर्ष

हालिया घटनाक्रम ने पश्चिमी एशिया में राजनितिक दाँव-पेंच खेलने के लिये द्वार खोल दिये हैं। दरअसल, क्राउन प्रिंस जिससे एर्दोगन घृणा करते हैं, को अब उच्च नैतिक आधार पर सऊदी शासन को बदनाम करने के साथ ही सऊदी अरब और यू.एस. के बीच एक दाँव खेलने का विशेष अवसर प्राप्त हो गया है। हालाँकि, हमें नहीं भूलना चाहिये कि इस राजनितिक खेल का मुख्य किरदार अमेरिका भी हो सकता है। बहरहाल यह कहना उचित होगा कि उपर्युक्त प्रकरण ने सऊदी अरब के तानाशाही चेहरे के साथ ही अमेरिका के अस्थिर रवैये को भी उजागर किया है।

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