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भारतीय राजव्यवस्था

विधि आयोग में सुधार

  • 03 Sep 2019
  • 11 min read

इस Editorial में The Hindu, The Indian Express, Business Line आदि में प्रकाशित लेखों का विश्लेषण किया गया है। इस आलेख में विधि आयोग में सुधार तथा इस आयोग के महत्त्व की चर्चा की गई है। आवश्यकतानुसार यथास्थान टीम दृष्टि के इनपुट भी शामिल किये गए हैं।

संदर्भ

  • अगस्त, 2018 से 21वें विधि आयोग का कार्यकाल समाप्त हो चुका है और अभी तक सरकार ने अगले विधि आयोग के गठन की घोषणा नहीं की है।
  • भारत में विधि आयोग विधि से संबंधित विभिन्न मामलों पर अध्ययन, अनुसंधान तथा रिपोर्ट तैयार करने हेतु महत्त्वपूर्ण सलाहकारी निकाय है।
  • स्वतंत्र भारत में प्रथम विधि आयोग का गठन वर्ष 1955 में भारत के तत्कालीन महान्यायवादी एम.सी. सीतलवाड़ की अध्यक्षता में किया गया था। इसके साथ ही अब तक कुल 21 विधि आयोगों का गठन किया जा चुका है। विधि आयोग का कार्यकाल तीन वर्ष की अवधि के लिये निश्चित होता है।
  • स्वतंत्रता के पश्चात् प्रथम विधि आयोग के गठन से लेकर अब तक 65 वर्ष पूरे हो चुके हैं। किंतु इस आयोग में महत्त्वपूर्ण सुधार किया जाना अभी भी शेष हैं। इस आयोग का गठन, संरचना, सदस्यों एवं अध्यक्ष तथा इसके प्रकार्य निश्चित नहीं हैं। वर्तमान में इस आयोग को लेकर सर्वाधिकार सरकार के पास सुरक्षित है।
  • तीन राष्ट्रीय आयोगों- अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति तथा पिछड़ा वर्ग का विनियमन संविधान के प्रावधानों द्वारा होता है। जबकि मानवाधिकार आयोग, अल्पसंख्यक आयोग, महिला आयोग, बाल आयोग आदि सांविधिक आयोग संसद द्वारा निर्मित विधान से नियंत्रित होते हैं। लेकिन विधि आयोग के लिये ऐसी कोई व्यवस्था नहीं है।

विधि आयोग (Law Commission) की संरचना

21वें विधि आयोग का कार्यकाल तीन वर्ष पश्चात् अथवा 31 अगस्त, 2018 को समाप्त हो गया है, अभी तक नए आयोग का गठन नहीं किया जा सका है।

21वें विधि आयोग में शामिल सदस्य-

  • पूर्णकालिक अध्यक्ष।
  • 4 पूर्णकालिक सदस्य (1 सचिव सहित)।
  • 2 पदेन सदस्य।
  • 3 अंशकालिक सदस्य।

कार्यप्रणाली

  • आयोग की बैठकों को आयोजित करना।
  • प्राथमिकता के आधार पर सदस्य के प्रारंभिक कार्य की पहचान करना है।
  • प्रस्तावित सुधार के बिंदु को ध्यान में रखकर आँकड़ों के संग्रह एवं अनुसंधान हेतु अलग-अलग पद्धतियाँ अपनाई जाती हैं।
  • समस्या के समाधान हेतु क्षेत्र निर्धारण की रूपरेखा।
  • सार्वजनिक, व्यावसायिक निकायों व शैक्षणिक संस्थाओं के साथ परामर्श।
  • प्रतिक्रियाओं और रिपोर्ट का मसौदा तैयार करना।
  • चर्चा और रिपोर्ट की जाँच के बाद विधि एवं न्याय मंत्रालय को रिपोर्ट प्रस्तुत करना, रिपोर्ट पर विधि एवं न्याय मंत्रालय द्वारा विचार-विमर्श के पश्चात् इसे संसद में पेश किया जाता है।

वैधानिक सुधारों में विधि आयोग की भूमिका

  • औपनिवेशिक काल के पुराने कानूनों में सुधार तथा नए कानूनों के लिये प्रावधानों की सिफारिश करने में विधि आयोग की महत्त्वपूर्ण भूमिका है।
  • यह कई अंतर्राष्ट्रीय संधियों जिनका भारत हस्ताक्षरकर्त्ता है, के तहत भारत के वैधानिक दायित्वों को सुनिश्चित करने के लिये कार्य करता है।
  • यह आयोग कभी-कभी कुछ मामलों को स्वतः संज्ञान में लेता है। उदाहरण के लिये 20वें विधि आयोग ने कुष्ठ रोग से पीड़ित लोगों तथा उनके इलाज के लिये कार्य किया था, जबकि यह समस्या आमतौर पर मानवाधिकार के कार्यक्षेत्र से संबंधित मानी जाती है।
  • विभिन्न विधि आयोगों ने भारत में विभिन्न कानूनों के संहिताकरण तथा ऐसे कानूनों को प्रगितिशील बनाने में महत्त्वपूर्ण भूमिका का निर्वहन किया है। अभी तक विधि आयोग विभिन्न विषयों पर अपनी 277 रिपोर्टों को प्रस्तुत कर चुका है।

21वें विधि आयोग द्वारा निम्नलिखित रिपोर्ट्स प्रस्तुत की गई हैं-

  • अनुचित अभियोजन (न्याय की हत्या): विधिक उपचार।
  • क्रिकेट सहित अन्य खेलों में सट्टेबाज़ी के लिये क़ानूनी ढाँचा।
  • सूचना के अधिकार अधिनियम (RTI Act 2005) के संदर्भ में BCCI.
  • न्यायालय की अवमानना अधिनियम, 1971 की समीक्षा।
  • यातना के विरुद्ध संयुक्त राष्ट्र अभिसमय का क्रियान्वयन।
  • भारत में अधिकरणों के विधिक ढाँचे का मूल्यांकन।
  • मानव डीएनए प्रोफाइलिंग।
  • विवाह का अनिवार्य पंजीकरण।
  • आपराधिक प्रक्रिया संहिता,1973 में जमानत संबंधी प्रावधान।
  • हेट स्पीच पर रिपोर्ट।
  • अधिवक्ता अधिनियम, 1961 (कानूनी पेशे का विनियमन)।
  • आपराधिक कानून (संशोधन) विधेयक, 2017-खाद्य मिलावट से निपटने का प्रावधान।
  • बच्चों की सुरक्षा संबंधी विधेयक, 2016।

विधि आयोग में सुधार

20वें विधि आयोग के अध्यक्ष ए.पी. शाह द्वारा विधि आयोग में कई सुधारों की वकालत की गई है-

  • विधिक हैसियत: इस निकाय को स्वायत्त एवं सक्षम बनाने के लिये यह आवश्यक है कि इसको विधिक आयोग का दर्जा दिया जाए। अधिकांश देशों विशेष रूप से पश्चिमी लोकतांत्रिक देशों में विधि आयोग एक विधिक निकाय है। यदि इस आयोग को विधिक दर्जा दिया जाता है तो यह केवल संसद के प्रति जवाबदेह होगा, न कि कार्यपालिका के प्रति।
  • निरंतरता: किसी भी आयोग की कार्यक्षमता में सुधार हेतु निरंतरता बेहद आवश्यक होती है। विधि आयोग का कार्यकाल तीन वर्ष है, प्रत्येक कार्यकाल की समाप्ति और अगले आयोग की नियुक्ति के मध्य एक अंतर विद्यमान होता है। 21वें विधि आयोग का कार्यकाल 31 अगस्त, 2018 को समाप्त हो गया था, किंतु 22वें विधि आयोग का गठन अभी तक नहीं किया जा सका है।
  • नियुक्ति: विधि आयोग के सदस्यों की नियुक्ति केवल अध्यक्ष से परामर्श के पश्चात् ही की जानी चाहिये। वर्तमान व्यवस्था में सदस्यों की नियुक्ति को लेकर कई बार भेदभाव और पक्षपात के आरोप लगते रहे हैं।
  • स्वायत्तता: वर्तमान व्यवस्था में विधि सचिव तथा विधायी विभाग के सचिव विधि आयोग के पदेन सदस्य होते हैं। इन आधिकारियों की आयोग में उपस्थिति इसकी स्वायत्तता को प्रभावित करती है। उपरोक्त आधिकारियों को इस आयोग का सदस्य नहीं होना चाहिये। हालाँकि यह भी ध्यान देने योग्य है कि ये विधि एवं न्याय मंत्रालय के सचिव होते हैं तथा विधि आयोग इस मंत्रालय के अधीन एवं सहयोग से कार्य करता है।
  • निधिकरण: आयोग को पर्याप्त कोष तथा संसाधनों की आवश्यकता होती है तथा अधिक विशेषज्ञता के लिये अन्य संस्थानों के साथ सहयोग करने की आवश्यकता है।

विधि आयोग में सुधार हेतु हाल ही में किये गए प्रयास

  • वर्ष 2015 में विधि आयोग को स्थायी निकाय बनाने हेतु प्रस्ताव पेश किया गया था, किंतु विभिन्न कारणों से यह सुधार आगे नहीं बढ़ सका।
  • वर्ष 2010 में UPA सरकार ने विधि आयोग को विधिक दर्जा देने के लिये कैबिनेट समिति के माध्यम से प्रस्ताव पेश किया था तथा इसी संदर्भ में कानून मंत्रालय द्वारा भारतीय विधि आयोग विधेयक, 2010 भी लाया गया लेकिन यह विचार कानून में परिवर्तित नहीं हो सका।

निष्कर्ष

भारत में यद्यपि विधि आयोग का दर्जा सलाहकारी है किंतु भारत में विधि सुधारों हेतु यह महत्त्वपूर्ण निकाय है। विधि आयोग न सिर्फ कानून मंत्रालय बल्कि अन्य विधि संस्थानों जिसमें सर्वोच्च न्यायालय भी शामिल है, को विधि से संबंधित विशेषज्ञता प्रदान करने में प्रमुख भूमिका निभाता है। अतीत में सर्वोच्च न्यायालय द्वारा दिये गए विभिन्न निर्णयों में विधि आयोग के कार्यों एवं सिफारिशों का संदर्भ दिया जाता रहा है। अतः विधि आयोग की कार्यशैली और क्षमता में और अधिक सुधार हेतु इसकी संरचना में सुधार करना आवश्यक है। इन सुधारों में आयोग को विधिक दर्जा देना, निधि की उचित व्यवस्था तथा स्वायत्तता प्रदान करने जैसे सुधार अत्यंत उपयोगी सिद्ध हो सकते हैं।

प्रश्न: भारत में विधिक सुधारों में विधि आयोग की भूमिका की चर्चा कीजिये। साथ ही यह भी बताइये कि विधि आयोग में किस प्रकार के सुधारों की आवश्यकता है?

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