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एडिटोरियल

भारतीय अर्थव्यवस्था

लचीली राष्ट्रीय अर्थव्यवस्था के लिये MSMEs

  • 19 Aug 2021
  • 10 min read

यह एडिटोरियल दिनांक 17/08/2021 को ‘द हिंदू बिजनेस लाइन’ में प्रकाशित ‘‘MSMEs are hit by risk-averse banks’’ लेख पर आधारित है। इसमें MSME क्षेत्र से संबद्ध समस्याओं और आगे की राह के संबंध में चर्चा की गई है।

प्रभावी वित्तीय समावेशन और संवहनीय आर्थिक परिणामों के साथ वर्ष 2025 तक 5 ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर की भारतीय अर्थव्यवस्था के निर्माण का प्रधानमंत्री का स्वप्न घरेलू और बाह्य, दोनों ही निवेशकों के निवेश पर निर्भर करता है। सरकारी व्यय केवल एक प्रोत्साहन ही प्रदान कर सकता है, अकेले प्रधानमंत्री के स्वप्न को साकार करने ओर लेकर नहीं जा सकता।    

घरेलू निजी निवेश पाने के लिये समयबद्ध, पर्याप्त और गुणवत्तापूर्ण (कम लागत) क्रेडिट की भूमिका को नकारा नहीं जा सकता, विशेषकर वर्तमान दौर में जब लगभग सभी उद्योगों पर ही कोविड-19 के कारण बना दबाव चरम स्तर पर है।

परिभाषा में हाल ही में लाए गए परिवर्तन के साथ 95 प्रतिशत से अधिक भारतीय कंपनियाँ सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यम (MSMEs) के अंतर्गत शामिल तो कर ली गई हैं लेकिन MSMEs के समक्ष विद्यमान समस्याओं को चिह्नित करने और उन्हें दूर करने की तात्कालिक आवश्यकता है।

MSMEs के समक्ष विद्यमान समस्याएँ 

  • ऋण तक पहुँच की समस्याएँ: अधिकांश MSMEs ग्रामीण और अर्द्ध-शहरी क्षेत्रों में अवस्थित हैं जहाँ ऋण तक पहुँच बेहद सीमित है। 
    • वे शोषक साहूकारों के चंगुल में फँसने को विवश होते हैं और प्रायः ऋण दुष्चक्र में फँस जाते हैं।
    • वित्त तक पहुँच और समयबद्ध ऋण सहायता में कमी इन उद्यमों के लिये एक दीर्घकालिक समस्या बनी रही है।
  • गंभीर ऋणग्रस्तता: बैंकों से ऋण एवं कार्यशील पूँजी प्राप्त करने में होने वाली कठिनाइयों और सरकारी भुगतान एवं टैक्स रिफंड प्राप्त होने में विलंब के कारण अधिकांश MSMEs गंभीर ऋणग्रस्तता के शिकार हैं।  
  • अनौपचारिक स्रोतों पर निर्भरता: एक अध्ययन के अनुसार, MSMEs के लिये समग्र रूप से 69.3 ट्रिलियन रुपए की ऋण माँग है, जिसमें से 84% का वित्तपोषण साहूकार, परिवार, मित्र, चिट फंड जैसे अनौपचारिक स्रोतों द्वारा किया जाता है। 
    • वाणिज्यिक बैंक, NBFCs और सरकारी संस्थानों जैसे औपचारिक स्रोत महज 16% माँग की पूर्ति करते हैं।
  • उद्यमों का लघु आकार: इन MSMEs के 80% से अधिक सूक्ष्म और लघु श्रेणी में शामिल हैं। 
    • सरकार के ‘इमरजेंसी लाइन क्रेडिट’, ‘स्ट्रेस्ड एसेट रिलीफ’, ‘इक्विटी पार्टिसिपेशन’ और ‘फंड ऑफ फंड ऑपरेशन’ का लाभ उन तक नहीं पहुँच पा रहा है।
  • साख मूल्यांकन की समस्या: बैंक व्यक्तियों या फर्मों (MSMEs सहित) की साख या क्रेडिट का बेहतर मूल्यांकन कर जोखिम को सीमित रखने के लिये विभिन्न तरीकों का इस्तेमाल करते हैं। 
    • साख का निर्धारण करते समय दो त्रुटियाँ उभरती हैं, जो सामान्य हैं—एक खराब आवेदक की त्रुटिपूर्ण स्वीकृति (False Acceptance of a bad applicant) और एक अच्छे आवेदक की त्रुटिपूर्ण अस्वीकृति (False Rejection of a good applicant)।  
      • इनमें से पहली त्रुटि बैंकों के लिये हानिकारक है और उनके जोखिम को बढ़ाती है जबकि दूसरी त्रुटि स्वयं वित्तीय समावेशन और आर्थिक विकास को प्रभावित करती है।
    • NPAs को कम रखने के लिये कई क्रेडिट योग्य व्यक्तियों को भी बैंकों द्वारा ऋण से वंचित कर दिया जाता है।  
  • छोटे MSMEs के लिये कागजी कार्रवाई या डिजिटल फुटप्रिंट की कमी एक ऐसा कारक है जो उन्हें औपचारिक अर्थव्यवस्था में एकीकृत होने से अवरुद्ध करता है और MSMEs को औपचारिक क्रेडिट प्रणाली का लाभ लेने से वंचित करता है। 
  • तकनीकी व्यवधान: भारत का MSME क्षेत्र अप्रचलित प्रौद्योगिकी पर आधारित है, जो इसकी उत्पादन क्षमता को बाधित करता है।  
    • आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस, डेटा एनालिटिक्स, रोबोटिक्स और अन्य संबंधित प्रौद्योगिकियों (जिन्हें सामूहिक रूप से उद्योग क्रांति 4.0 के रूप में जाना जाता है) जैसी नई प्रौद्योगिकियों का उद्भव संगठित वृहत विनिर्माण उद्यमों की तुलना में MSMEs के लिये एक बड़ी चुनौती है।

आगे जी राह

  • केंद्रित नियामक और संरचनात्मक परिवर्तन: यह पहुँच में सुधार करेगा, औपचारिक क्षेत्र की ओर संक्रमण को आसान करेगा और उपभोक्ता शिक्षा एवं सुरक्षा को बढ़ाएगा।  
    • दीर्घावधि में जब इन नियामक समस्याओं को सुलझा लिया जाएगा, तब स्वीकृत ऋणों को अधिक सुगमता से वितरित किया जा सकेगा और निजी निवेश को बढ़ावा मिलेगा, जिससे देश में MSMEs के लिये एक सुदृढ़ चक्र’ (virtuous cycle) का निर्माण होगा।   
  • अच्छे आवेदकों की त्रुटिपूर्ण अस्वीकृति को कम करना: RBI द्वारा यादृच्छिक नमूना आधार पर सभी ऋण आवेदनों का नियमित ऑडिट किया जाना चाहिये और दुर्भावनापूर्ण अकरण या चूक (जिसके परिणामस्वरूप पात्र उद्यमों को भी ऋण देने से अनैतिक रूप से इंकार कर दिया जाता है) के विरुद्ध प्रशासनिक कार्रवाई की जानी चाहिये।   
  • स्वतंत्र नियामक की स्थापना: डेटा अर्थव्यवस्था के बढ़ते महत्त्व को देखते हुए, यह अत्यंत आवश्यक है कि सरकार एक स्वतंत्र निकाय की स्थापना करे जो MSMEs को सलाह एवं परामर्श दे और उन्हें इस नई, डिजिटल दुनिया में विकास करने में सक्षम बनाए। 
  • प्रौद्योगिकी का उपयोग: बैंकों द्वारा प्रयुक्त पारंपरिक बैंक ऋण प्रणाली वित्तीय विवरणों और उधारकर्ता के संपार्श्विक पर आधारित है। GSTN, आयकर, क्रेडिट ब्यूरो आदि सहित कई स्रोतों से डेटा की बढ़ती उपलब्धता के साथ अब यह संभव है कि सतर्क ऑनलाइन जाँच के माध्यम से MSMEs के ऋण प्रस्तावों का शीघ्रता से मूल्यांकन कर लिया जाए। 
  • अवसंरचनात्मक जनोपयोगी सेवाओं को अद्यतन किया जाना: किसी भी उद्यम द्वारा अपने सुचारू कार्यान्वयन के लिये अवसंरचनात्मक जनोपयोगी सेवाओं (जैसे पानी, बिजली आपूर्ति, सड़क/रेल) को अद्यतन करने की तत्काल आवश्यकता है।
    • इसके अलावा, उद्यमियों को संगठनात्मक संस्कृति में अंतर्निहित गुणवत्ता के प्रति जागरूक मानसिकता विकसित करने की आवश्यकता है ।
    • प्रमाणन के विविध और उन्नत स्तरों पर MSMEs का सुग्राहीकरण (Sensitisation) और मार्ग-निर्देशन वर्तमान दौर की आवश्यकता है।

निष्कर्ष

MSMEs एक प्रत्यास्थी राष्ट्रीय अर्थव्यवस्था की रीढ़ हैं। उनके विकास को प्राथमिकता देना देश के भविष्य के लिये महत्त्वपूर्ण है। सरकार पिछले कुछ वर्षों में कई तरह के सक्षमकारी तंत्र लेकर आगे आई है।

भारत को, विशेष रूप से मौजूदा परिदृश्य में ऐसे और उपायों की आवश्यकता है। अगला दशक एक उभरती हुई शक्ति से एक स्थापित आर्थिक महाशक्ति के रूप में भारत के रूपांतरण का दशक होगा और MSMEs की इसमें महत्त्वपूर्ण भूमिका होगी।

अभ्यास प्रश्न: MSMEs एक प्रत्यास्थी राष्ट्रीय अर्थव्यवस्था की रीढ़ हैं। इस कथन के आलोक में MSMEs के समक्ष मौजूद समस्याओं पर विचार कीजिये।  

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