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सामाजिक न्याय

आवासीय गरीबी और भारत

  • 08 Jan 2020
  • 10 min read

इस Editorial में The Hindu, The Indian Express, Business Line आदि में प्रकाशित लेखों का विश्लेषण किया गया है। इस लेख में आवासीय गरीबी और पर्याप्त आवास के अधिकार पर चर्चा की गई है। आवश्यकतानुसार, यथास्थान टीम दृष्टि के इनपुट भी शामिल किये गए हैं।

संदर्भ

संयुक्त राष्ट्र तथा उसके विभिन्न घटक निकायों ने पर्याप्त आवास के अधिकार को बुनियादी मानवाधिकार के रूप में स्वीकृति प्रदान की है। आर्थिक, सामाजिक और सांस्कृतिक अधिकारों पर संयुक्त राष्ट्र समिति ने रेखांकित किया है कि पर्याप्त आवास के अधिकार की व्याख्या करते समय संकीर्णता का भाव नहीं होना चाहिये अर्थात् पर्याप्त आवास के अधिकार को मात्र चार दीवारों और एक छत के रूप में नहीं देखा जाना चाहिये। भारत ने पर्याप्त आवास के अधिकार के संदर्भ में विभिन्न अंतर्राष्ट्रीय समझौतों पर हस्ताक्षर किये हैं, किंतु इसके बावजूद देश में सभी नागरिकों को मात्र एक आवास (पर्याप्त आवास नहीं) उपलब्ध कराना भी एक चुनौतीपूर्ण कार्य बन गया है। पर्याप्त आवास के अधिकार की सर्वाधिक उपेक्षा देश के ग्रामीण क्षेत्र में देखी जा सकती है, जहाँ भौतिक इन्फ्रास्ट्रक्चर के साथ-साथ सामाजिक इन्फ्रास्ट्रक्चर जैसे- स्वास्थ्य एवं शिक्षा सुविधाएँ आदि उपलब्ध कराना भी एक चुनौती है।

‘आवासीय गरीबी’ की अवधारणा

  • अंतर्राष्ट्रीय मानकों के अनुसार, गरीबी का आशय ‘बुनियादी मानवीय आवश्यकताओं से वंचित रहने की स्थिति’ से है। आवासीय गरीबी की अवधारणा भी गरीबी की अवधारणा के अनुरूप ही है।
  • हालाँकि आवासीय गरीबी की अवधारणा को समझने से पूर्व यह आवश्यक है कि हम ‘पर्याप्त आवास’ की अवधारणा को समझें, क्योंकि पर्याप्त आवास कि कमी ही आवासीय गरीबी को जन्म देती है।
    • पर्याप्त आवास में चार दीवारों और एक छत के अतिरिक्त बिजली एवं पानी की आपूर्ति और स्वच्छता तथा सीवेज प्रबंधन जैसी बुनियादी सुविधाओं को भी शामिल किया जाता है।
  • विश्लेषकों का मानना है कि आवासीय गरीबी एक व्यक्ति की शारीरिक और मानसिक रूप से स्वास्थ्य रहने तथा आर्थिक एवं शैक्षिक रूप से उत्पादक होने की क्षमता को प्रभावित करती है।

पर्याप्त आवास का अधिकार

  • भारत में सर्वोच्च न्यायालय ने भारतीय संविधान के अनुच्छेद-21 के तहत पर्याप्त आवास के अधिकार को मौलिक अधिकार के रूप में मान्यता दी है।
  • दक्षिण अफ्रीका के संविधान की धारा 26 में भी पर्याप्त आवास के अधिकार का उल्लेख किया गया है। जिसके अनुसार:
    • दक्षिण अफ्रीका के प्रत्येक नागरिक को पर्याप्त आवास तक पहुँच का अधिकार है।
    • राष्ट्र को उपलब्ध संसाधनों के दायरे में पर्याप्त आवास के अधिकार को सुनिश्चित करने के लिये यथासंभव प्रयास करना चाहिये।
  • मानवाधिकारों की सार्वभौमिक घोषणा के अनुच्छेद-25 के अनुसार, ‘प्रत्येक व्यक्ति को अपने तथा अपने परिवार के लिये गरिमामयी जीवन स्तर की प्राप्ति का अधिकार है, जिसमें भोजन, कपड़े, आवास, चिकित्सा तथा अन्य आवश्यक सामाजिक सेवाएँ शामिल हैं।’
  • इसके अतिरिक्त कई अन्य देशों जैसे- नेपाल, बांग्लादेश, नाइजीरिया और युगांडा आदि ने भी अपने-अपने संविधान में पर्याप्त आवास के अधिकार को स्थान दिया है।

भारत के ग्रामीण क्षेत्रों में आवासीय गरीबी

  • आधिकारिक आँकड़ों के अनुसार, देश में लगभग 25.85 मिलियन लोग आवासीय गरीबी का सामना कर रहे हैं, जिसमें से लगभग 82 प्रतिशत ग्रामीण क्षेत्रों में हैं और शेष शहरी क्षेत्रों में।
  • ग्रामीण क्षेत्रों और शहरी क्षेत्रों में आवासीय गरीबी के अनुपात का अंतर काफी अधिक है और यह ग्रामीण क्षेत्रों की स्थिति को स्पष्ट रूप से प्रदर्शित करता है।
    • ग्रामीण क्षेत्रों में अकुशल मज़दूर तथा कम आय वाले लोग गरीबी के इस प्रकार से सबसे अधिक प्रभावित होते हैं।
  • आवासीय गरीबी के विभिन्न पक्षों की बात करें तो ग्रामीण क्षेत्रों के लगभग 45 प्रतिशत परिवार बिना बिजली, बायोगैस और LPG के जीवन व्यतीत कर रहे हैं, जबकि 69 प्रतिशत परिवारों के पास खुद का शौचालय नहीं है।
  • इसके परिणामस्वरूप ग्रामीण क्षेत्रों में आवासीय व्यवस्था से असंतोष तथा अन्य जगहों पर बेहतर आवास की संभावना के कारण आंतरिक प्रवास की दर भी काफी उच्च रहती है।

ग्रामीण क्षेत्रों में आवासीय गरीबी के कारण

  • भारत के ग्रामीण क्षेत्र में आवासीय सेक्टर लगातार सार्थक बाज़ार हस्तक्षेप के अभाव का सामना कर रहा है, जिसमें आवास के लिये विकसित भूमि की आपूर्ति और वित्तपोषण शामिल हैं।
  • यह कहना उचित नहीं होगा कि भारत ने कभी गरीबी उन्मूलन के लिये व्यापक प्रयास नहीं किये, किंतु इस प्रकार के सभी प्रयास शहरी-ग्रामीण विभाजन को कम करने में कारगर साबित नहीं हो सके।
  • मांग और पूर्ति के मध्य असामंजस्य के कारण आज भी देश में लाखों लोग आवासीय गरीबी में जीवन व्यतीत कर रहे हैं।
  • नियोजन के आरंभिक चरण के दौरान वित्तपोषण की कमी ने नीति निर्माताओं को विकास के सिद्धांत के अतिव्यापी दर्शन को अपनाने के लिये मजबूर किया है, जिसके तहत यह उम्मीद की जाती है कि शहरी केंद्रित विकास का लाभ ग्रामीण क्षेत्रों को भी मिलेगा।
  • गरीबी और वित्त के किसी भी औपचारिक स्रोत तक पहुँच की कमी के कारण ग्रामीण लोग सुरक्षित एवं स्थायी घर बनाने में असमर्थ होते हैं।

सरकार के प्रयास- प्रधानमंत्री आवास योजना

  • 1 मार्च, 2016 को पूर्ववर्ती इंदिरा आवास योजना (Indira Awaas Yojana-IAY) का पुनर्गठन कर इसे प्रधानमंत्री आवास योजना-ग्राम (PMAY-G) नाम दिया गया था।
  • PMAY-G का उद्देश्य वर्ष 2022 तक सभी आवासहीन गृहस्वामियों और कच्चे तथा जीर्ण-शीर्ण घरों में रहने वाले लोगों को बुनियादी सुविधाओं के साथ पक्के घर उपलब्ध कराना है।
  • इस योजना की कुल लागत का बँटवारा केंद्र सरकार और राज्य सरकारों के बीच 60:40 के अनुपात में किया जाता है, जबकि पूर्वोत्तर तथा हिमालयी राज्यों के लिये यह राशि 90:10 के अनुपात में साझा की जाती है।

आगे की राह

  • यदि देश के ग्रामीण क्षेत्रों में हमें आवास विभाजन या असमानता को कम करना है तो इसके लिये एक ‘एकीकृत आवासीय विकास’ रणनीति की आवश्यकता होगी, जिसे ‘मिशन मोड’ में लागू किया जाएगा।
  • शासन के विभिन्न स्तरों पर सामाजिक अंकेक्षण के साथ-साथ इस तरह के मिशन को लागू करने के संबंध में जवाबदेही तय की जानी चाहिये।
  • पेयजल आपूर्ति, घरेलू शौचालय, ऊर्जा और जल निकासी से संबंधित अन्य लागतों के अलावा नई आवासीय इकाइयों के पुनर्विकास को ध्यान में रखकर संसाधनों के सही आवंटन की आवश्यकता है।
  • इस उद्देश्य की पूर्ति के लिये सार्वजनिक-निजी-साझेदारी परियोजनाओं (PPP Projects) को प्रोत्साहित किये जाने की आवश्यकता है।

प्रश्न: “पर्याप्त आवास का अधिकार एक बुनियादी अधिकार है, बावजूद इसके भारत में कई लोग इस अधिकार से वंचित हैं।” चर्चा कीजिये।

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