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एडिटोरियल

भारतीय अर्थव्यवस्था

प्रवासी संकट व मनरेगा

  • 27 May 2020
  • 14 min read

इस Editorial में The Hindu, The Indian Express, Business Line आदि में प्रकाशित लेखों का विश्लेषण किया गया है। इस लेख में प्रवासी संकट व मनरेगा से संबंधित विभिन्न पहलुओं पर चर्चा की गई है। आवश्यकतानुसार, यथास्थान टीम दृष्टि के इनपुट भी शामिल किये गए हैं।

संदर्भ 

वैश्विक महामारी COVID-19 के कारण भारत ही नहीं विश्व के अधिकांश देशों में लॉकडाउन के विकल्प  को अपनाया गया है। इस समय भारत में जारी लॉकडाउन के दौरान श्रमिक वर्ग को पलायन जैसी गंभीर समस्या से दो-चार होना पड़ रहा है। लॉकडाउन के दौरान होने वाला पलायन सामान्य दिनों की अपेक्षा होने वाले पलायन से एकदम उलट है। अमूमन हमने, रोज़गार पाने व बेहतर जीवन जीने की आशा में गाँवों और कस्बों से महानगरों की ओर पलायन होते देखा है परंतु इस समय महानगरों से गाँवों की ओर हो रहा पलायन नि:संदेह चिंताज़नक स्थिति को उत्पन्न कर रहा है।  इस स्थिति को ही जानकारों ने रिवर्स माइग्रेशन (Reverse Migration) की संज्ञा दी है। 

सामान्य शब्दों में रिवर्स माइग्रेशन से तात्पर्य ‘महानगरों और शहरों से गाँव एवं कस्बों की ओर होने वाले पलायन से है’। बड़ी संख्या में प्रवासी श्रमिकों का गाँव की ओर प्रवासन हो रहा है। लॉकडाउन के कुछ दिनों बाद ही काम-धंधा बंद होने की वजह से श्रमिकों का बहुत बड़ा हुजूम हजारों किलोमीटर दूर अपने घर जाने के लिये पैदल ही सड़कों पर उतर पड़ा। इस प्रवासी संकट को दूर करने के लिये, सरकार ने आत्मनिर्भर भारत अभियान के तहत प्रोत्साहन पैकेज के हिस्से के रूप में मनरेगा के लिये 40,000 करोड़ रुपये का अतिरिक्त फंड आवंटित किया है।

इस आलेख में अर्थव्यवस्था में प्रवासी श्रमिकों की भूमिका, प्रवासी संकट व रोज़गारविहीनता से निपटने में मनरेगा की भूमिका, उत्पन्न चुनौतियाँ तथा उनसे निपटने में अल्पकालिक व दीर्घकालिक उपायों पर चर्चा की जाएगी।   

अर्थव्यवस्था में प्रवासी श्रमिकों की भूमिका 

  • भारत में आंतरिक प्रवासन के तहत एक इलाके से दूसरे इलाके में जाने वाले श्रमिकों की आय  देश की जीडीपी की लगभग 6 प्रतिशत है।
  • ये श्रमिक इसका एक तिहाई यानी जीडीपी का लगभग दो प्रतिशत घर भेजते हैं। मौज़ूदा जीडीपी के हिसाब से यह राशि 4 लाख करोड़ रुपए है।
  • यह राशि मुख्य रूप से बिहार, उत्तर प्रदेश, ओडिशा, राजस्थान, मध्य प्रदेश और झारखंड जैसे राज्यों में भेजी जाती है।
  • वर्ष 1991 से 2011 के बीच प्रवासन में 2.4 प्रतिशत की वार्षिक वृद्धि दर्ज की गई थी, तो वहीं वर्ष 2001 से 2011 के बीच इसकी वार्षिक वृद्धि दर 4.5 प्रतिशत रही। इन आँकड़ों से पता चलता है कि प्रवासन से श्रमिकों और उद्योगों दोनों को ही लाभ प्राप्त हुआ।
  • श्रम गहन उद्योगों अर्थात ज्वैलरी, टेक्सटाइल, लेदर और ऑटोपार्ट्स सेक्टर में बड़ी तादाद में श्रमिक काम करते हैं।
  • जब अर्थव्यवस्था में मांग बढ़ती है तो इन श्रमिकों को बोनस, इन्क्रिमेंट, मोबाइल फोन रिचार्ज़, आने-जाने का किराया और कैंटीन जैसी सुविधाएँ देकर कंपनियाँ इन्हें अपने साथ जोड़कर रखना चाहती हैं।

प्रवासन से ऊत्पन्न चुनौतियाँ

  • श्रमिकों के गाँवों की ओर प्रवासन से देश के बड़े औद्योगिक केंद्रों में चिंता व्याप्त है। वर्तमान में भले ही उद्योगों में काम कम हो गया है या रुक गया है परंतु लॉकडाउन समाप्त होते ही श्रमिकों की मांग में तीव्र वृद्धि होगी। श्रमिकों की पूर्ति न हो पाने से उत्पादन नकारात्मक रूप से प्रभावित होगा।
  • पंजाब, हरयाणा तथा पश्चिमी उत्तर प्रदेश में कृषि कार्य हेतु बड़े पैमाने पर श्रमिकों की आवश्यकता पड़ती है, गाँवों की ओर प्रवासन के कारण इन राज्यों की कृषि गतिविधियाँ बुरी तरह से प्रभावित हो गई हैं।
  • श्रमिकों के पलायन से रियल एस्टेट सेक्टर व्यापक रूप से प्रभावित हुआ है। भवनों का निर्माण कार्य रुक जाने से परियोजना की लागत बढ़ने की संभावना है। बड़ी संख्या में श्रमिकों के पलायन से महानगरों को प्राप्त होने वाला राजस्व भी नकारात्मक रूप से प्रभावित हो जाएगा।
  • गाँवों की ओर प्रवासन से अपेक्षाकृत पिछड़े राज्यों पर अत्यधिक आर्थिक दबाव पड़ रहा है। यह सर्वविदित है कि महानगरों में कार्य कर रहे श्रमिक अपने गृह राज्य में एक बड़ी राशि भेजते हैं, जिससे इन राज्यों को बड़ी आर्थिक सहायता प्राप्त होती थी। 
  • बिहार, उत्तर प्रदेश, ओडिशा, राजस्थान, मध्य प्रदेश और झारखंड जैसे राज्य अपेक्षाकृत रूप से औद्योगीकरण में पिछड़े हुए हैं, प्रवासन के परिणामस्वरूप इन राज्यों में रोज़गार का संकट भीषण रूप ले रहा है।
  • रोज़गार के अभाव में इन राज्यों में सामाजिक अपराधों जैसे- लूट, डकैती, भिक्षावृत्ति और देह व्यापार की घटनाओं में वृद्धि हो सकती है, जिससे राज्य की कानून व्यवस्था और छवि दोनों खराब होने की आशंका है। 

प्रवासी संकट से निपटने में मनरेगा की भूमिका 

  • महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोज़गार गारंटी अधिनियम अर्थात् मनरेगा को भारत सरकार द्वारा वर्ष 2005 में राष्ट्रीय ग्रामीण रोज़गार गारंटी अधिनियम, 2005 (NREGA-नरेगा) के रूप में प्रस्तुत किया गया था। वर्ष 2010 में नरेगा (NREGA) का नाम बदलकर मनरेगा (MGNREGA) कर दिया गया।
  • पूर्व की रोज़गार गारंटी योजनाओं के विपरीत मनरेगा के तहत ग्रामीण परिवारों के व्यस्क युवाओं को रोज़गार का कानूनी अधिकार प्रदान किया गया है।
  • प्रावधान के मुताबिक, मनरेगा लाभार्थियों में एक-तिहाई महिलाओं का होना अनिवार्य है। साथ ही विकलांग एवं अकेली महिलाओं की भागीदारी को बढ़ाने का प्रावधान किया गया है।
  • मनरेगा कार्यक्रम के तहत प्रत्येक परिवार के अकुशल श्रम करने के इच्छुक वयस्क सदस्यों के लिये 100 दिन का गारंटीयुक्त रोज़गार, दैनिक बेरोज़गारी भत्ता और परिवहन भत्ता (5 किमी. से अधिक दूरी की दशा में) का प्रावधान किया गया है। सूखाग्रस्त क्षेत्रों और जनजातीय इलाकों में मनरेगा के तहत 150 दिनों के रोज़गार का प्रावधान है।
  • इस कार्यक्रम ने ग्रामीण गरीबी को कम करने के अपने उद्देश्य की पूर्ति करते हुए निश्चित ही  ग्रामीण क्षेत्र के लाखों लोगों को गरीबी से बाहर निकालने में कामयाबी हासिल की है।
  • आजीविका और सामाजिक सुरक्षा की दृष्टि से मनरेगा ग्रामीण गरीब महिलाओं के सशक्तीकरण हेतु एक सशक्त साधन के रूप में सामने आया है। आँकड़ों के अनुसार, वित्तीय वर्ष 2015-16 में मनरेगा के माध्यम से उत्पन्न कुल रोज़गार में से 56 प्रतिशत महिलाओं की भागीदारी थी।
  • मनरेगा में कार्यरत व्यक्तियों के आयु-वार आँकड़ों के विश्लेषण से पता चलता है कि वित्त वर्ष 2017-18 के बाद 18-30 वर्ष के आयु वर्ग के श्रमिकों की संख्या में बढ़ोतरी हुई है।
  • मनरेगा ने आजीविका के अवसरों के सृजन के माध्यम से अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजातियों के उत्थान में भी मदद की है। मनरेगा को 2015 में विश्व बैंक ने दुनिया के सबसे बड़े लोकनिर्माण कार्यक्रम के रूप में मान्यता दी थी।
  • मार्च 2020 में केंद्रीय वित्त मंत्री ने प्रधानमंत्री गरीब कल्याण योजनाराहत पैकेज जारी करते समय मनरेगा की मज़दूरी में 20 रुपए प्रतिदिन की वृद्धि करने की घोषणा की है।

मनरेगा से संबंधित चुनौतियाँ

  • अपर्याप्त बजट आवंटन
    • पिछले कुछ वर्षों में मनरेगा के तहत आवंटित बजट काफी कम रहा है, जिसका प्रभाव मनरेगा में कार्यरत कर्मचारियों के वेतन पर देखने को मिलता है। वेतन में कमी का प्रत्यक्ष प्रभाव ग्रामीणों की शक्ति पर पड़ता है और वे अपनी मांग में कमी कर देते हैं।
  • मज़दूरी के भुगतान में देरी
    • एक अध्ययन में पता चला कि मनरेगा के तहत किये जाने वाले 78 प्रतिशत भुगतान समय पर नहीं किये जाते और 45 प्रतिशत भुगतानों में विलंबित भुगतानों के लिये दिशा-निर्देशों के अनुसार मुआवज़ा शामिल नहीं था, जो अर्जित मज़दूरी का 0.05 प्रतिशत प्रतिदिन है। आँकड़ों के अनुसार, वित्त वर्ष 2017-18 में मज़दूरी 11,000 करोड़ रुपए थी। 
  • खराब मज़दूरी दर
    • न्यूनतम मज़दूरी अधिनियम, 1948 के आधार पर मनरेगा की मज़दूरी दर निर्धारित न करने के कारण मज़दूरी दर काफी स्थिर हो गई है। वर्तमान में अधिकांश राज्यों में मनरेगा के तहत मिलने वाली मज़दूरी न्यूनतम मज़दूरी से काफी कम है। यह स्थिति कमज़ोर वर्गों को वैकल्पिक रोज़गार तलाशने को विवश करता है।
  • भ्रष्टाचार
    • वर्ष 2012 में कर्नाटक में मनरेगा को लेकर एक घोटाला सामने आया था जिसमें तकरीबन 10 लाख फर्ज़ी मनरेगा कार्ड बनाए गए थे, जिसके परिणामस्वरूप सरकार को तकरीबन 600 करोड़ रुपए का नुकसान हुआ था। भ्रष्टाचार मनरेगा से संबंधित एक बड़ी चुनौती है जिससे निपटना आवश्यक है। अधिकांशतः यह देखा जाता है कि इसके तहत आवंटित धन का अधिकतर हिस्सा मध्यस्थों के पास चला जाता है।

संभावित उपाय

  • अल्पकालिक उपाय 
    • राज्य सरकारों को यह सुनिश्चित करना चाहिये कि हर गाँव में सार्वजनिक काम शुरू हो। कार्यस्थल पर काम करने वाले श्रमिकों को बिना किसी देरी के तुरंत काम प्रदान किया जाना चाहिये।
    • स्थानीय निकायों को निश्चित रूप से वापस लौटे और प्रवासी श्रमिकों की खोज करनी चाहिये और जॉब कार्ड प्राप्त करने की आवश्यकता वाले लोगों की मदद करनी चाहिये।
    • श्रमिकों के लिये साबुन, पानी, और मास्क जैसी पर्याप्त बुनियादी सुविधाएँ नि:शुल्क प्रदान की जानी चाहिये।
    • इस समय मनरेगा मजदूरों को भुगतान में तेजी लाने की आवश्यकता है। मुख्य रूप से, नकदी को श्रमिकों तक आसानी और कुशलता से पहुँचाने की आवश्यकता है।
  • दीर्घकालिक उपाय 
    • इस वैश्विक महामारी ने विकेंद्रीकृत शासन के महत्व को प्रदर्शित किया है। 
    • ग्राम पंचायतों को कार्य की स्वीकृति देने, मांग पर काम प्रदान करने और भुगतानों में किसी भी प्रकार की देरी से बचने के लिये वेतन भुगतान को अधिकृत करने हेतु पर्याप्त संसाधन, शक्तियाँ और जिम्मेदारियाँ प्रदान करने की आवश्यकता है।
    • मनरेगा को सरकार की अन्य योजनाओं के साथ जोड़ा जाना चाहिये जैसे- ग्रीन इंडिया पहल, स्वच्छ भारत अभियान आदि।
    • सामाजिक अंकेक्षण प्रदर्शन की जवाबदेही बनाता है, विशेष रूप से तत्काल हितधारकों के प्रति। इसलिये ग्रामीण क्षेत्रों में सरकारी नीतियों और उपायों के बारे में जागरूकता पैदा करने की आवश्यकता है।

प्रश्न- एकीकृत संसाधन प्रबंधन और रोज़गार सृजन में मनरेगा की एक महत्त्वपूर्ण भूमिका है। आलोचनात्मक टिप्पणी कीजिये। 

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