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क्या आवश्यक है ‘कनफ्लिक्ट ऑफ इंटरेस्ट’ का संहिताकरण?

  • 30 Dec 2017
  • 9 min read

संदर्भ

  • मानव जीवन बहुआयामी दृष्टिकोणों से युक्त है, जहाँ व्यक्ति एक साथ कई ज़िम्मेदारियों का पालन कर रहा होता है। ऐसे में हितों का टकराव कोई अचंभित करने वाली बात नहीं है।
  • हितों का टकराव यानी कनफ्लिक्ट ऑफ इंटरेस्ट (conflict of interest) तब पैदा होता है जब व्यक्ति की कोई प्रमुख निष्ठा दूसरी निष्ठाओं से टकराती है।
  • वैसे तो कनफ्लिक्ट ऑफ इंटरेस्ट किसी भी उद्देश्य की पूर्ति में एक बड़ा रोड़ा है, लेकिन इस लेख में हम नौकरशाही के संदर्भ में कनफ्लिक्ट ऑफ इंटरेस्ट और इसे संहिताबद्ध किये जाने की आवश्यकता के बारे में चर्चा करेंगे।
  • दरअसल, वह नौकरशाही ही है जो देश के विकास में सबसे महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाती है।

कैसे पैदा होता है कनफ्लिक्ट ऑफ इंटरेस्ट?

  • वह व्यवस्था जिसके तहत नौकरशाही कार्य करती है, बहुत हद तक एक आर्गेनाज़ेशन (संस्था) के जैसी ही है। अंग्रेज़ो के ज़माने में कलेक्टर वह था जो टैक्स कलेक्ट (राजस्व संग्रहण का कार्य) करता था।
  • लेकिन, आज़ादी के बाद इसकी भूमिका में व्यापक बदलाव आया और अब इसके दायित्वों में योजनाओं का उचित क्रियान्वयन, ज़िले में कानून व्यवस्था को बनाए रखना आदि भी शामिल हो गया है।
  • यदि व्यवस्था द्वारा तय किसी अधिकारी के उद्देश्यों और उसके व्यक्तिगत लक्ष्यों में समन्वय का अभाव हो तो कनफ्लिक्ट ऑफ इंटरेस्ट की स्थिति सामने आती है।
  • उदाहरण के तौर पर एक घटना का जिक्र करते हैं। नेताजी सुभाष चन्द्र बोस ने वर्ष 1920 में सिविल सेवा की परीक्षा उतीर्ण कर ली थी, किन्तु उन्होंने इससे त्याग-पत्र दे दिया।
  • दरअसल उनका लक्ष्य देश की आज़ादी के लिये संघर्ष करना था, लेकिन अंग्रेज़ी राज्य में यदि वे कलेक्टर बन जाते तो उनके व्यक्तिगत लक्ष्यों एवं व्यवस्था के उद्देश्यों के मध्य कनफ्लिक्ट ऑफ इंटरेस्ट का होना अवश्यंभावी था।

कनफ्लिक्ट ऑफ इंटरेस्ट के कारण

  • व्यक्ति की अंतरात्मा की आवाज़:

⇒ दरअसल कई बार परिस्थितियाँ कुछ ऐसी बनती हैं कि व्यक्ति अपनी अंतरात्मा की आवाज़ सुनता है और व्यवस्था या तंत्र द्वारा तय दायित्वों के पालन से पीछे हटने लगता है।
⇒  उदाहरण के लिये किसी कुख्यात अपराधी से मुठभेड़ के दौरान एनकाउंटर ही अंतिम विकल्प बचा हो, फिर भी संबंद्ध अधिकारी की अंतरात्मा उसे इसकी इज़ाज़त नहीं देती।

  • व्यक्ति की अपनी मान्यताएँ:

⇒  कई बार व्यक्ति की धार्मिक भावनाएँ तथा उसकी पारंपरिक मान्यताएँ भी कनफ्लिक्ट ऑफ इंटरेस्ट का कारण बन जाती हैं।
⇒  उदाहरण के लिये यदि कानून द्वारा समलैंगिकता को वैध ठहरा दिया जाता है और कोई नौकरशाह अपनी धार्मिक मान्यताओं के आधार पर इसका विरोध करता है।

  • व्यक्ति का स्वयं के प्रति स्वार्थी होना:

⇒  व्यक्ति का स्वयं के निजी हितों के प्रति स्वार्थी होना प्रायः उसे उसके दायित्वों से विमुख कर देता है। यह कनफ्लिक्ट ऑफ इंटरेस्ट और भ्रष्टाचार का सबसे बड़ा कारण है।
⇒  उदाहरण के लिये किसी नौकरशाह का पुत्र यदि किसी सरकारी योजना से जुड़ा है और वह अपने पद और ओहदे का अनुचित इस्तेमाल करते हुए उसे फायदा पहुँचाता है।

  • वस्था के प्रति व्यक्ति के मन में अप्रिय भाव:

⇒  कई बार ऐसी परिस्थितियाँ भी सामने आती हैं जब व्यक्ति अपने नैतिक मूल्यों से समझौता नहीं करता और व्यवस्था द्वारा आरोपित अनुचित कार्य को करने से इनकार कर देता है।
⇒  उदाहरण के लिये कोई वरिष्ठ अधिकारी अपने कनिष्ठों से किसी खास व्यक्ति के खिलाफ मामला दर्ज़ करने से मना कर देता है।

 कनफ्लिक्ट ऑफ इंटरेस्ट के संबंध में कानून बनाया जाना आवश्यक क्यों?

  • दरअसल, भारत में कनफ्लिक्ट ऑफ इंटरेस्ट को विशेष रूप से संबोधित करने वाला कोई कानून मौज़ूद नहीं है। पिछले कुछ वर्षों में इस तरह की लगातार बढ़ती घटनाओं के मद्देनज़र यह आवश्यक है कि इस संबंध में विशेष कानूनों का निर्माण किया जाए।
  • दरअसल कई बार देखा गया है कि नौकरशाह सेवानिवृत्त होते ही निजी क्षेत्र में ऊँचे पदों पर आसीन हो जाते हैं। हालाँकि उन्हें ऐसा करने से पहले सरकार की अनुमति लेनी होती है।
  • कई सेवानिवृत्त नौकरशाह अपनी पहुँच और दबदबे का इस्तेमाल कर अनुचित रूप से लाभ कमाते हैं। लेकिन, यह भी उचित जान पड़ता है कि वे अपने लंबे अनुभव का इस्तेमाल कर निजी क्षेत्र के माध्यम से ही सही देश के विकास में योगदान दे सकते हैं।
  • लेकिन सरकार द्वारा उनके आवेदन स्वीकार या अस्वीकार किये जाने के संबंध में न तो कोई प्रावधान है और न ही कोई कानून।
  • इन परिस्थितियों में यह आवश्यक है कि इस संबंध में विशेष कानून बनाए जाएँ।

कनफ्लिक्ट ऑफ इंटरेस्ट के संहिताकरण के पक्ष में तर्क

कनफ्लिक्ट ऑफ इंटरेस्ट के संहिताकरण के विपक्ष में तर्क:

आगे की राह

  • नौकरशाही के संदर्भ में कनफ्लिक्ट ऑफ इंटरेस्ट समस्या के दो आयाम हैं। एक तो नौकरशाहों के सेवा में बने रहने के दौरान कनफ्लिक्ट ऑफ इंटरेस्ट की समस्या और सेवानिवृत्ति के बाद कनफ्लिक्ट ऑफ इंटरेस्ट की समस्या।
  • सेवानिवृत्ति के बाद कनफ्लिक्ट ऑफ इंटरेस्ट की समस्या के संदर्भ में कुछ नियम बनाए जाने चाहिये जैसे: सेवानिवृत्त होने वाले नौकरशाहों की कूलिंग-ऑफ (cooling-off) अवधि कम से कम 5 वर्ष तय की जानी चाहिये।
  • एक ऐसी व्यवस्था बनाई जाए जहाँ सेवानिवृत्त होने वाले नौकरशाह की भविष्य से की सभी योजनाओं के सन्दर्भ में सूचनाएँ मौज़ूद हों।
  • वहीं यही नौकरशाहों के सेवा में बने रहने के दौरान कनफ्लिक्ट ऑफ इंटरेस्ट की समस्या की बात करें तो इसको संहिताबद्ध किये जाने के बजाय अन्य विकल्प आजमाए जा सकते हैं जैसे-

1. कनफ्लिक्ट ऑफ इंटरेस्ट की स्थिति उत्पन्न होते ही संबंधित अधिकारियों के समक्ष नौकरशाहों को अपनी समस्या उचित ढंग से बतानी चाहिये। इससे एक ओर जहाँ हितों के टकराव से बचाव होगा, वहीं दूसरी ओर निर्णयन की प्रक्रिया धीमी भी नहीं होगी।
2. नौकरशाहों को जहाँ तक संभव हो किसी भी ऐसी परियोजना से जुड़ने से बचना चाहिये, जहाँ कनफ्लिक्ट ऑफ इंटरेस्ट के उत्पन्न होने की संभावना हो।

निष्कर्ष

  • आज नौकरशाही एक ऐसे दौर से गुज़र रही जब कार्यालयों में फाइलों का अम्बार लगा हुआ है। भारत के एक प्रमुख वैश्विक शक्ति बनने के सपने को पूरा करने में नौकरशाही की सबसे अहम् भूमिका है।
  • साथ ही संभावना इस बात की भी है कि इस प्रकार के किसी कानून का पहले से ही अनचाहे राजनीतिक हस्तक्षेप से परेशान नौकरशाही के खिलाफ मनमाना इस्तेमाल किया जाएगा।
  • ऐसे में जितने अधिक कानून उतनी ही जटिलता देखने को मिलेगी। हमें ज़रूरत है कुछ ऐसे नियमों की जिनसे कि आवश्यक परिस्थितियों में कनफ्लिक्ट ऑफ इंटरेस्ट को नज़रन्दाज़ भी किया जा सके और नौकरशाही मंद भी न पड़े।
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