लखनऊ शाखा पर IAS GS फाउंडेशन का नया बैच 23 दिसंबर से शुरू :   अभी कॉल करें
ध्यान दें:



एडिटोरियल

भारतीय अर्थव्यवस्था

अवसंरचना विकास और राजकोषीय नीति

  • 09 Feb 2021
  • 9 min read

इस Editorial में The Hindu, The Indian Express, Business Line आदि में प्रकाशित लेखों का विश्लेषण किया गया है। इस लेख में भारत में अवसंरचना विकास से जुड़ी चिंताओं व इससे संबंधित विभिन्न पहलुओं पर चर्चा की गई है। आवश्यकतानुसार, यथास्थान टीम दृष्टि के इनपुट भी शामिल किये गए हैं।

संदर्भ: 

वर्तमान में भारतीय अर्थव्यवस्था COVID-19 महामारी के कारण एक गंभीर आर्थिक संकट का सामना कर रही है। राष्ट्रीय सांख्यिकी कार्यालय (National Statistical Office- NSO) के अनुमान के अनुसार, देश की अर्थव्यवस्था में 7.7% की गिरावट देखी जा सकती है। इस पृष्ठभूमि में बजट 2021 ने अवसंरचना विकास के लिये एक उचित प्रोत्साहन प्रदान किया है। हालाँकि बढ़ते राजकोषीय घाटे से जुड़े मुद्दों के अलावा भारत में अवसंरचना विकास की अपनी अलग समस्याएँ हैं।  

अतः यदि भारत इस क्षेत्र में अपेक्षित लाभ प्राप्त करने के साथ परिकल्पित राजकोषीय प्रोत्साहन के जोखिमों को कम करना चाहता है, तो ऐसे सुधारों को लागू करने की आवश्यकता है जो अवसंरचना विकास की बाधाओं को कम करते हैं।

प्रस्तावित बजट में शामिल कुछ महत्त्वपूर्ण पहलें:

  • अवसंरचना क्षेत्र में निवेश बढ़ाने के लिये एक उत्प्रेरक के रूप में कार्य करने हेतु 20,000 करोड़ रुपए की प्रारंभिक पूंजी के साथ एक विकास वित्तीय संस्थान (DFI) की स्थापना करना।
  • पूंजी परिव्यय में वृद्धि से ‘राष्ट्रीय अवसंरचना पाइपलाइन' (National Infrastructure Pipeline- NIP) में केंद्र सरकार के योगदान में वृद्धि होगी।
  • राष्ट्रीय मुद्रीकरण पाइपलाइन (National Monetisation Pipeline) की शुरुआत से संबंधित एक महत्त्वपूर्ण पहल की घोषणा।
    • यह परिसंपत्ति मुद्रीकरण की दिशा में पहला व्यावहारिक कदम होगा।
  • सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों की गैर-निष्पादित परिसंपत्तियों (NPA) का प्रबंधन करने हेतु बैड बैंक (Bad Bank) स्थापित करने का प्रस्ताव।

अवसंरचना विकास से संबंधित मुद्दे: 

  • राजस्व गिरावट: नॉमिनल जीडीपी वृद्धि, प्रत्यक्ष कर उछाल और विनिवेश लक्ष्यों में अपेक्षित वृद्धि न होने के कारण राजस्व अनुमानों में गिरावट से इनकार नहीं किया जा सकता है।
  • राज्यों के लिये कम निधि: केंद्र सरकार ने 15वें वित्त आयोग की रिपोर्ट में शामिल सिफारिशों को स्वीकार कर लिया है, जिसके अनुसार केंद्रीय करों में राज्यों के लिये निर्धारित कर विचलन का ऊर्ध्वाधर हिस्सा 42% से घटकर 41% हो गया है।
    • इसके अतिरिक्त हाल में केंद्र सरकार द्वारा विभिन्न उद्देश्यों के लिये धन जुटाने हेतु उपकरों का सहारा लिया गया है, जो राज्यों के साथ साझा किये जाने वाले करों के विभाज्य पूल के आकार को स्थायी रूप से छोटा कर देता है।
  • बढ़ते राजकोषीय घाटे से संबंधित मुद्दे:  भारत में अवसंरचना विकास को राजकोषीय प्रोत्साहन से वित्तपोषित किया जाएगा।  
    • गौरतलब है कि केंद्र सरकार ने वित्तीय वर्ष 2025-26 तक राजकोषीय घाटे की दर को जीडीपी के 4.5% तक ले जाने का संकेत दिया है।
    • हालाँकि बढ़ते राजकोषीय घाटे के कारण उच्च मुद्रास्फीति, क्राउडिंग आउट (Crowding Out), अंतर्राष्ट्रीय रेटिंग में गिरावट आदि जैसी मैक्रो इकोनाॅमिक स्थिरता से जुड़ी चुनौतियाँ पैदा हो सकती हैं।
  • बैड बैंक से जुड़े मुद्दे: एक महामारी-ग्रस्त अर्थव्यवस्था में गैर-निष्पादित संपत्तियों के लिये खरीदारों को ढूँढना एक चुनौती होगी, विशेषकर जब सरकारें राजकोषीय घाटे को नियंत्रित करने की चुनौती का सामना कर रही हैं। 
    • इसके अतिरिक्त बैड बैंक की स्थापना का विचार सही मायनों में ऋण को एक सरकारी जेब (सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों) से दूसरी जेब (बैड बैंक) में स्थानांतरित करने जैसा ही है।
  • संरचनात्मक समस्याएँ: भूमि अधिग्रहण में देरी और मुकदमेबाज़ी के मुद्दों के कारण देश में वैश्विक मानकों की तुलना में परियोजनाओं के कार्यान्वयन की दर बहुत धीमी है।
    • इसके अतिरिक्त भूमि प्रयोग और पर्यावरण मंज़ूरी के मामले में विलंब, अदालत में लंबे समय तक चलने वाले मुकदमे आदि अवसंरचना परियोजनाओं में देरी के कुछ प्रमुख कारण हैं।

आगे की राह:  

  • बहु-हितधारक दृष्टिकोण: अवसंरचना विस्तार योजना की सफलता काफी हद तक इस बात पर भी निर्भर करेगी कि पाइपलाइन से जुड़े अन्य हितधारक अपनी अपेक्षित भूमिका निभाते हुए पर्याप्त योगदान दे रहे हैं या नहीं।
    • इन हितधारकों में राज्य सरकारें और उनके सार्वजनिक क्षेत्र तथा निजी क्षेत्र के उद्यम शामिल हैं।
    • इस संदर्भ में 15वें वित्त आयोग ने केंद्र और राज्यों के राजकोषीय उत्तरदायित्व विधानों की पुनः जाँच करने के लिये एक उच्च अधिकार प्राप्त अंतर-सरकारी समूह के गठन की सिफारिश की है।
  • राष्ट्रीय अवसंरचना पाइपलाइन: राष्ट्रीय अवसंरचना पाइपलाइन देश में अवसंरचना विकास को गति प्रदान करने की दिशा में एक सकारात्मक कदम है।
    • हालाँकि अवसंरचना क्षेत्र में जवाबदेही और पारदर्शिता बढ़ाने के लिये केंद्र तथा राज्य सरकारों, शहरी स्थानीय निकायों, बैंकों एवं वित्तीय संस्थानों, पीई फंड व निजी निवेशकों (स्थानीय और विदेशी दोनों) जैसे सभी हितधारकों से प्राप्त डेटा और जानकारी को एक मंच पर साझा करने की आवश्यकता है।     
  • बैकिंग सुधार:  जब तक सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों का प्रबंधन राजनेताओं और नौकरशाहों के प्रति निष्ठावान रहता है, तब तक उनकी व्यावसायिकता में व्याप्त कमी बनी रहेगी और इसके कारण ऋण वितरण में विवेकपूर्ण मानदंडों का क्रियान्वयन भी प्रभावित होगा।
    • ऐसे में एक बैड बैंक की स्थापना के बारे में चर्चा करने से पहले बैंकिंग क्षेत्र में व्यापक सुधारों के उचित कार्यान्वयन पर ध्यान दिया जाना चाहिये, जैसा कि इंद्रधनुष योजना के तहत परिकल्पित है।

निष्कर्ष: 

केंद्रीय बजट 2021 में सरकार द्वारा प्रदान किया गया उच्च राजकोषीय प्रोत्साहन देश में अवसंरचना क्षेत्र के विकास हेतु सही दिशा में बढ़ाया गया एक कदम है। हालाँकि सरकार को उच्च सार्वजनिक व्यय से उत्पन्न संरचनात्मक और व्यापक आर्थिक स्थिरता चिंताओं को भी संबोधित करने की आवश्यकता है।

अभ्यास प्रश्न:  यदि भारत अवसंरचना क्षेत्र में अपेक्षित लाभ प्राप्त करने के साथ परिकल्पित राजकोषीय प्रोत्साहन के जोखिमों को कम करता है, तो ऐसे सुधारों को लागू करने की आवश्यकता है जो इस क्षेत्र के विकास की बाधाओं को कम करते हैं। विश्लेषण कीजिये।

close
एसएमएस अलर्ट
Share Page
images-2
images-2