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अंतर्राष्ट्रीय संबंध

तीस्ता नदी जल विवाद के आलोक में भारत-बांग्लादेश संबंध

  • 06 Apr 2017
  • 11 min read

इस समय बांग्लादेश की प्रधानमंत्री शेख हसीना का आगामी भारत यात्रा कौतुहल का विषय बना हुआ है। पिछले कुछ वर्षों में भारत-बांग्लादेश संबंधों ने नई ऊँचाइयों को छुआ है, लेकिन अभी भी दोनों देशों को लम्बा रास्ता तय करना है। गौरतलब है कि आतंकवाद पर दोनों ही देशों का रुख एक समान है और दक्षिण एशिया के विकास में दोनों ही देश अहम् भूमिका निभा सकते हैं। दरअसल, भारत-बांग्लादेश संबंध, उपमहाद्वीप में शायद सबसे जटिल संबंध है। भारत ने बांग्लादेश को आज़ादी दिलाने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई थी, लेकिन भारत के अहम् योगदान को यह कहकर झुठला दिया जाता है कि वह पाकिस्तान के सन्दर्भ में अपने हितों का पालन कर रहा था। हालाँकि इन सभी बातों के बीच एक महत्त्वपूर्ण बात यह हुई है कि शेख हसीना की भारत यात्रा के दौरान वर्षों से लंबित तीस्ता जल समझौते पर सहमति बनने की सम्भावना भी व्यक्त की जा रही है।लेकिन तीस्ता विवाद पर गौर करने से पहले हम भारत-बांग्लादेश की वर्तमान परिस्थितियों पर विचार करते हैं।

भारत बांग्लादेश संबंधों में तत्कालीन प्रगति 

  • हाल के दिनों में भारत-बांग्लादेश संबंधों में अभूतपूर्व प्रगति देखने को मिली है, जहाँ बांग्लादेश ने सुंदरवन क्षेत्र में पावर प्लांट लगाना आरंभ किया है, वहीं भारत ने बांग्लादेश के कई उपक्रमों में उल्लेखनीय निवेश किया है।
  • विदित हो कि आतंकवाद को पनाह देने वाले देश से दोनों ही देशों ने बराबर दूरी बना रखी है, उरी आतंकवादी हमले के बाद पाकिस्तान को वैश्विक तौर पर अलग-थलग करने के भारत के प्रयासों के मद्देनज़र बांग्लादेश ने भी इस्लामाबाद में होने वाले सार्क सम्मेलन में भाग लेने से मना कर दिया था। 

संबंधों में सुधार का यह उपयुक्त समय क्यों? 

  • विदित हो कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के कार्यकाल में बांग्लादेशी प्रधानमंत्री की भारत की यह पहली आधिकारिक द्विपक्षीय यात्रा होगी। ऐसी सम्भावना व्यक्त की जा रही है कि इस यात्रा के दौरान बांग्लादेश को पाँच अरब डॉलर यानी करीब 32500 करोड़ रुपए के ऋण के साथ 33 से 35 समझौतों पर हस्ताक्षर किये जाने की संभावना है जो अधिकतर कारोबार एवं निवेश से जुड़े होंगे। इसके अलावा परमाणु ऊर्जा सहित ऊर्जा तथा कनेक्टिविटी के संबंध में भी सहयोग के करार किये जा सकते हैं। 
  • उल्लेखनीय है कि जून 2015 में जब भारतीय प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने बांग्लादेश की यात्रा की थी और तब दोनों नेताओं ने एक संयुक्त घोषणापत्र ‘नूतन प्रजन्मो’ (नई दिशा) पर हस्ताक्षर किये थे। शेख हसीना की इस यात्रा के दौरान उस घोषणापत्र में तय किये गए लक्ष्यों को हासिल करने तथा लिये गए निर्णयों को क्रियान्वित करने के प्रयासों की समीक्षा की जाएगी। 
  • इन क्षेत्रों के अलावा विभिन्न क्षेत्रों में होने वाले करीब तीन दर्जन समझौतों में रक्षा क्षेत्र में सहयोग के लिये पाँच साल का समझौता तथा विज्ञान एवं तकनीकी तथा सूचना प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में करार आदि शामिल होंगे।
  • गौरतलब है कि भारत-बांग्लादेश के मज़बूत संबंधों की राह में सीमा विवाद, न्यू मूर द्वीप की समस्या, शरणार्थी समस्या, आतंकवाद जैसी समस्याएँ बाधक हैं लेकिन तीस्ता नदी के पानी के बँटवारे पर प्रस्तावित समझौता दोनों देशों के आपसी रिश्तों की राह में सबसे बड़ा रोड़ा रहा है। 

बांग्लादेश के लिये तीस्ता का महत्त्व 

  • गंगा, ब्रह्मपुत्र और मेघना के बाद तीस्ता भारत व बांग्लादेश से होकर बहने वाली चौथी सबसे बड़ी नदी है। सिक्किम की पहाड़ियों से निकल कर भारत में लगभग तीन सौ किलोमीटर का सफर करने के बाद यह नदी बांग्लादेश पहुँचती है। बांग्लादेश का करीब 14 फीसदी इलाका सिंचाई के लिए इसी नदी के पानी पर निर्भर है और बांग्लादेश की 7.3 फीसदी आबादी को इस नदी के माध्यम से प्रत्यक्ष रोज़गार मिलता है। 

तीस्ता नदी जल विवाद की पृष्ठभूमि 

  • तीस्ता नदी के पानी पर विवाद देश के विभाजन के वक्त से ही चला आ रहा है। तीस्ता के पानी के लिये ही आल इंडिया मुस्लिम लीग ने वर्ष 1947 में सर रेडक्लिफ की अगुवाई में गठित सीमा आयोग से दार्जिलिंग व जलपाईगुड़ी को तत्कालीन पूर्वी पाकिस्तान में शामिल करने की मांग उठाई थी, लेकिन कांग्रेस और हिंदू महासभा ने इसका विरोध किया था। तमाम पहलुओं पर विचार के बाद सीमा आयोग ने तीस्ता का ज़्यादातर हिस्सा भारत को सौंपा था, उसके बाद यह मामला ठंडे बस्ते में रहा। लेकिन वर्ष 1971 में पाकिस्तान से आज़ाद होकर बांग्लादेश के गठन के बाद पानी का मामला दोबारा उभरा। 
  • विदित हो कि वर्ष 1983 में तीस्ता के पानी के बँटवारे पर एक तदर्थ समझौता हुआ था और इस समझौते के तहत बांग्लादेश को 36 फीसदी और भारत को 39 फीसदी पानी के इस्तेमाल का हक मिला, बाकी 25 फीसदी का आवंटन नहीं किया गया था। 
  • गंगा समझौते के बाद दूसरी नदियों के अध्ययन के लिये विशेषज्ञों की एक साझा समिति गठित की गई थी, इस समिति ने तीस्ता को अहमियत देते हुए वर्ष 2000 में इस पर समझौते का एक प्रारूप पेश किया। उल्लेखनीय है कि वर्ष 2010 में दोनों देशों ने समझौते के अंतिम प्रारूप को मंजूरी दे दी थी और इसके एक साल बाद यानी वर्ष 2011 में प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के ढाका दौरे के दौरान दोनों देशों के राजनीतिक नेतृतव के बीच इस नदी के पानी के बंटवारे के एक नए फार्मूले पर सहमति भी बनी थी। लेकिन पश्चिम बंगाल के मुख्यमंत्री ममता बनर्जी के विरोध की वज़ह से इस पर हस्ताक्षर नहीं किया जा सका था। 

क्यों है विवाद ? 

  • भारत-बांग्लादेश समझौते के तहत किस देश को कितना पानी मिलेगा, फिलहाल यह साफ नहीं है। जानकारों का कहना है कि समझौते के प्रारूप के मुताबिक, बांग्लादेश को 48 फीसदी पानी मिलना है, लेकिन पश्चिम बंगाल सरकार की दलील है कि ऐसी स्थिति में उत्तर बंगाल के छह जिलों में सिंचाई व्यवस्था पूरी तरह ठप हो जाएगी।
  • बंगाल सरकार ने एक विशेषज्ञ समिति से अध्ययन कराने के बाद बांग्लादेश को मानसून के दौरान नदी का 35 या 40 फीसदी पानी उपलब्ध कराने और सूखे के दौरान 30 फीसदी पानी देने का प्रस्ताव रखा था, लेकिन बांग्लादेश को यह मंजूर नहीं है। बांग्लादेश ज़्यादा पानी मांग रहा है जो कि तीस्ता पर इसकी निर्भरता को देखते हुए जायज भी है लेकिन बंगाल सरकार इसके लिये तैयार नहीं हैं।  

क्यों हो सकता है अब इस समस्या का समाधान ? 

  • वर्ष 2011 में जहाँ तत्कालीन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने तीस्ता समझौते पर हस्ताक्षर करने से इनकार कर दिया था वहीं इस बार माना जा रहा है कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी बांग्लादेश के अधिकारों को स्वीकार करते हुए तीस्ता समझौते पर हस्ताक्षर कर देंगे और अन्य नदियों के जल को लेकर अपना मज़बूत दावा पेश करेंगे, ध्यातव्य है कि भारत-बांग्लादेश के बीच 53 नदी तंत्र का प्रवाह है। तब प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह को गठबंधन सरकार की मजबूरियों के आगे झुकना पड़ा था लेकिन अब परिस्थितियाँ अलग हैं। सम्भावना इस बात की भी है कि दोनों पक्ष गंगा बैरेज पर समझौते को अंतिम रूप देंगे। 

निष्कर्ष
लेकिन शेख़ हसीना के लिये सबसे बड़ी चुनौती बांग्लादेशी जनता को भरोसा दिलाना है कि बांग्लादेश की नीतियाँ उनके हितों के अनुरूप हैं, क्योंकि वहाँ के मुख्य विपक्षी दल ‘बांग्लादेश नेशनल पार्टी’ ने इस बात का दुष्प्रचार करना शुरू कर दिया है कि बांग्लादेश, भारत के साथ अपनी सम्प्रभुता की कीमत पर द्विपक्षीय संबंधों को आगे बढ़ा रहा है। ऐसे वक्त में तीस्ता समझौते पर हस्ताक्षर करना भारत के साथ-साथ बांग्लादेश के हित में भी है। तीस्ता समझौता दोनों देशों के लिये एक अहम राजनीतिक ज़रूरत है। इससे मिलने वाले सियासी लाभ के जरिये भारत-बांग्लादेश में चीन के बढ़ते प्रभाव पर अंकुश लगाने में सहायता मिलेगी। विरोधी दल शेख़ हसीना पर भारत के हाथों की कठपुतली होने के आरोप लगाते रहे हैं लेकिन तीस्ता के पानी से उनकी छवि पर लगा यह दाग धुल सकता है।

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