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एडिटोरियल

भारतीय अर्थव्यवस्था

भारत का स्टार्टअप पारिस्थितिकी तंत्र

  • 01 Dec 2021
  • 13 min read

यह एडिटोरियल 30/11/2021 को ‘लाइवमिंट’ में प्रकाशित “The Promise and Pitfalls of India’s Startup Boom” पर आधारित है। इसमें भारत के स्टार्टअप क्षेत्र के विकास और इस क्षेत्र के समक्ष विद्यमान प्रमुख समस्याओं के संबंध में चर्चा की गई है।

संदर्भ

यह अभूतपूर्व इनोवेशन और प्रोद्योगिकी हस्तक्षेपों का युग है, जो स्टार्टअप के उभार से लाभान्वित हुआ है और परिवर्तनकारी उत्पादों, व्यापार मॉडल और पूंजी से लैस होकर समाज के समग्र विकास में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाने को तैयार है। 

वर्तमान में भारत वैश्विक स्तर पर तीसरा सबसे बड़ा स्टार्टअप पारितंत्र है (स्टार्टअप की संख्या के अनुसार) जहाँ वर्ष 2010 में 5000 स्टार्टअप्स की तुलना में वर्ष 2020 में 15,000 से अधिक स्टार्टअप्स की स्थापना हुई। इस स्टार्टअप पारितंत्र के अंतर्निहित प्रवर्तकों में स्मार्टफोन और इंटरनेट की पहुँच, क्लाउड कंप्यूटिंग, एप्लिकेशन प्रोग्रामिंग इंटरफेस (APIs) और एक राष्ट्रीय भुगतान स्टैक शामिल हैं।  

इसके अतिरिक्त, कोविड-19 महामारी के बीच भारत में केवल वर्ष 2021 में ही इतनी संख्या में यूनिकॉर्न स्टार्टअप्स (1 बिलियन डॉलर से अधिक मूल्य वाले स्टार्टअप) सामने आए हैं, जितने वर्ष 2011-20 की पूरी दशकीय अवधि में भी नहीं आए थे। 

हालाँकि, अभी भी कई चुनौतियाँ मौजूद हैं जो भारत में स्टार्टअप्स की वास्तविक क्षमता को साकार करने में अवरोध उत्पन्न करती हैं।

भारत में स्टार्टअप क्षेत्र

  • स्टार्टअप क्षेत्र में निवेश बढ़ाना: एक निजी संगठन (VCCircle) के साप्ताहिक स्टार्टअप सर्वेक्षण ने स्टार्टअप क्षेत्र में मज़बूत अंतर्वाह दर्शाया है।  
    • नए उद्यमों से जुड़े निजी इक्विटी और उद्यम पूंजी सौदों के कुल मूल्य में तीन गुना से अधिक की वृद्धि हुई है (42 सौदों के संपन्न होने के साथ लगभग 1.7 बिलियन डॉलर जुटाए गए हैं)।
    • ‘स्लाइस’ (Slice- बंगलूर स्थित फिनटेक) वर्ष 2021 में निवेशकों से 220 मिलियन डॉलर जुटाने के बाद भारत की 41वीं (और नवीनतम) यूनिकॉर्न बन गई थी।   
  • भारत में यूनिकॉर्न: भारत वर्तमान में यूनिकॉर्न का दर्जा प्राप्त कंपनियों की संख्या के मामले में वैश्विक स्तर पर तीसरे स्थान पर है (अमेरिका और चीन से पीछे, लेकिन यू.के. और जर्मनी से आगे।)      
    • जबकि फिनटेक और ई-कॉमर्स कंपनियों के इस परिघटना का नेतृत्व किया है और यूनिकॉर्न पारितंत्र की स्थापना में अग्रणी बने रहे हैं, एडटेक (EdTech), खाद्य वितरण और मोबिलिटी जैसे अन्य क्षेत्रों ने भी महत्त्वपूर्ण योगदान किया है।      
    • वर्ष 2011 से वर्ष 2020 तक 33 यूनिकॉर्न की संचयी संख्या के मुकाबले अकेले वर्ष 2021 में ही 41 स्टार्टअप यूनिकॉर्न का उदय हुआ है। 
  • सरकारी नीतियों की भूमिका और विदेशी मुद्रा अंतर्वाह: स्टार्टअप की दिशा में भारत की बदलती नीतियों एवं सुधारों के साथ विभिन्न सरकारी पहलों ने भारतीय स्टार्टअप के विकास में मदद की है। 
    • भारतीय स्टार्टअप पारितंत्र में विदेशी मुद्रा का अंतर्वाह (विशेष रूप से फेसबुक, गूगल और माइक्रोसॉफ्ट जैसी अग्रणी टेक कंपनियों की ओर से) घरेलू बाज़ार की अपार संभावनाओं का संकेत देता है।  
  • प्रौद्योगिकी की भूमिका: प्रौद्योगिकी ने अग्रणी व्यवसाय मॉडल बनाने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई है। 
    • अधिकांश यूनिकॉर्न ने आंतरिक संगठनात्मक प्रक्रियाओं को परिष्कृत करने से लेकर अपने ग्राहकों के लिये मूल्य प्रस्ताव को बढ़ाने तक, सभी संभावित तरीकों से प्रौद्योगिकी का लाभ उठाया है।  
    • लॉकडाउन और सोशल डिस्टेंसिंग ने कई व्यवसायों को पारंपरिक स्वरूप को छोड़ डिजिटल रूप से संचालित परिचालन में परिवर्तित होने के लिये प्रेरित किया, जिससे बाज़ार की शक्तियों के लिये बेहतर अवसरों का निर्माण हुआ है।  
    • आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस, इंटरनेट ऑफ थिंग्स, डेटा एनालिटिक्स, बिग डेटा, रोबोटिक्स आदि अत्याधुनिक प्रौद्योगिकियों का लाभ उठाते हुए कई स्टार्टअप ने बाज़ार में मौजूद व्यापक अंतराल को पाटने की दिशा में काम किया।   
  • यूनिकॉर्न, रोज़गार और महिला उद्यमी: भारतीय स्टार्टअप पारितंत्र 44 यूनिकॉर्न द्वारा 106 बिलियन डॉलर के मूल्य-सृजन और 1.4 मिलियन प्रत्यक्ष एवं अप्रत्यक्ष रोज़गार अवसर उत्पन्न करने के साथ किसी क्रांति से कम नहीं है।  
    • इसके अलावा, महिला उद्यमियों ने भी स्टार्टअप पारितंत्र में उल्लेखनीय योगदान किया है (उदाहरण के लिये ‘CashKaro’ की स्वाति भार्गव और ‘Nykaa’ की फाल्गुनी नायर)।  

संबद्ध चुनौतियाँ

  • निवेश बढ़ाना स्टार्टअप की सफलता सुनिश्चित नहीं करता: कोविड-19 संकट के बीच जब केंद्रीय बैंकों ने वैश्विक स्तर पर अधिकाधिक मात्रा में तरलता जारी की है, तो पैसा जुटाना कोई कठिन काम नहीं है। 
    • हालाँकि इस प्रकार के निवेशों से इन स्टार्टअप्स के अस्तित्व में बने रहने की सुनिश्चितता बढ़ नहीं जाती, क्योंकि वह लाभ की स्थिति पर निर्भर करता है।  
  • अंतरिक्ष क्षेत्र में भारत अभी भी एक सीमांत खिलाड़ी: जबकि फिनटेक और ई-कॉमर्स क्षेत्र में भारत के स्टार्टअप असाधारण रूप से अच्छा प्रदर्शन कर रहे हैं, अंतरिक्ष क्षेत्र अभी भी स्टार्टअप के लिये एक बाहरी क्षेत्र बना हुआ है। 
    • वर्तमान में वैश्विक अंतरिक्ष अर्थव्यवस्था 440 बिलियन डॉलर की हो चुकी है, जिसमें भारत की हिस्सेदारी 2% से भी कम है। 
      • यह परिदृश्य इस तथ्य के बावजूद है कि भारत एंड-टू-एंड क्षमता के साथ उपग्रह निर्माण, संवर्द्धित प्रक्षेपण यान के विकास और अंतरग्रहीय मिशनों को तैनात करने के मामले में एक अग्रणी अंतरिक्ष-अन्वेषी देश है।
    • अंतरिक्ष क्षेत्र में स्वतंत्र निजी भागीदारी की कमी के कारणों में एक ऐसे ढाँचे का अभाव प्रमुख है जो कानूनों के संबंध में पारदर्शिता और स्पष्टता प्रदान करे।   
  • भारतीय निवेशक जोखिम लेने को तैयार नहीं: भारत के स्टार्टअप क्षेत्र के बड़े निवेशक विदेशों से हैं, जैसे जापान का सॉफ्टबैंक, चीन का अलीबाबा और अमेरिका का सिकोइया (Sequoia)। 
    • ऐसा इसलिये है क्योंकि भारत में एक गंभीर उद्यम पूंजी उद्योग का अभाव है जो जोखिम लेने को तैयार हो।  
    • देश के स्थापित कारोबारी समूह प्रायः पारंपरिक व्यवसायों से जुड़े रहे हैं।

आगे की राह

  • अधिक निवेश महत्त्वपूर्ण है: यह उम्मीद नहीं की जा सकती कि सारे यूनिकॉर्न ही वृहत सफलता की ओर आगे बढ़ेंगे। हालाँकि, इस धारणा के आधार पर जोखिम लेने की क्षमता भी कम नहीं होनी चाहिये। 
    • निवेशकों के दाँव सफलता लाते हों या नहीं, लेकिन ऐसी सभी निवेश मूल्य-सृजन के संपोषण के लिये महत्त्वपूर्ण हैं जो आने वाले दशकों में तीव्र विस्तार के लिये भारतीय अर्थव्यवस्था को नए संसाधनों से लैस कर सकते हैं।  
  • नीतिगत हस्तक्षेप: नीतिगत पक्ष-समर्थन ने कुछ वर्षों के लिये स्टार्टअप आय पर कर में छूट देने जैसे उपायों के माध्यम से स्टार्टअप क्षेत्र की उल्लेखनीय रूप से सहायता की है।  
    • हालाँकि, कर्मियों को जारी किये जाते स्टॉक विकल्पों का कराधान अत्यंत जटिल है।
      • आरंभिक चरण के निवेशकों द्वारा किये गए निवेश और पूंजीगत लाभ पर लेवी को भी कुछ अधिक स्पष्टता के साथ कम किया जा सकता है।  
    • जटिल कर नियमों में देयता की ओवरलैपिंग प्रायः अधिकारियों को अपने विवेकाधीन अधिकार का दुरुपयोग करने का अवसर देती है।
      • निवेशकों को हतोत्साहित करने वाले ऐसे परिदृश्यों के दायरे को कम करने की ज़रूरत है और कर सुधार लाकर व्याप्त अस्पष्टता को समाप्त किया जाना चाहिये। इस दिशा में शीर्ष स्तर के हस्तक्षेप से मदद मिलेगी।  
  • अंतरिक्ष स्टार्टअप के लिये विधायी ढाँचा: अंतरिक्ष क्षेत्र में स्टार्टअप पारितंत्र के संबंध में कानूनों में पारदर्शिता और स्पष्टता लाने करने के लिये एक सुदृढ़ ढाँचे की आवश्यकता है। 
    • बाह्य अंतरिक्ष संधि (Outer Space Treaty) के अनुरूप और मूल्य शृंखला के विशिष्ट भागों को संबोधित करने के लिये कानूनों को कई खंडों में विभाजित करने की आवश्यकता है। 
  • पूंजी की उपलब्धता सुनिश्चित करना: देश के नीति निर्माताओं, जोखिम लेने वाली कंपनियों और फंडिंग एजेंसियों को घरेलू पूंजी की आसान उपलब्धता सुनिश्चित करने के लिये अनुकूल माहौल बनाने की ज़रूरत है।  
    • नवाचार को प्रोत्साहित करने और उभरते व्यापार मॉडल को समर्थन देने वाले उपयुक्त नियमों को रूपाकार प्रदान करने में नियामकों अधिक सक्रिय भूमिका निभानी होगी।   
    • स्थानीय वित्तपोषण को बढ़ावा देने के अलावा, सरकार और कॉर्पोरेट संस्थाओं को प्रमुख शैक्षणिक संस्थानों के माध्यम से वृहत स्तर पर निवेश करने की आवश्यकता होगी, ताकि दीर्घावधि में स्टार्टअप निवेशों को जोखिम-मुक्त बनाया जा सके।

अभ्यास प्रश्न: भारत में स्टार्टअप्स की वास्तविक क्षमता को साकार करने में अवरोध के रूप में कार्य करने वाली चुनौतियों की चर्चा कीजिये।

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