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एडिटोरियल

अंतर्राष्ट्रीय संबंध

भारत - नेपाल संबंध – आगे कैसे बढ़े?

  • 21 Jun 2017
  • 9 min read

संदर्भ 

  • पिछले कुछ समय से नेपाल के आंतरिक मामलों के कारण भारत – नेपाल सीमा कई दिनों तक अवरुद्ध रही, जिसके कारण नेपाल ने अपनी कुछ महत्त्वपूर्ण सीमा चौकियों पर भारत द्वारा आर्थिक नाकेबंदी का आरोप लगाया। यद्दपि भारत ने नेपाल के इस आरोप को खारिज़  कर दिया परन्तु  नेपाली मधेसी समुदायों की कुछ चिंताओं के प्रति भारत की सहानुभूति भी किसी से छिपी नहीं है। इन मुद्दों को लेकर दोनों देशों के संबंधों में कड़वाहट देखने को मिली, जिसका लाभ उठाने में चीन भला क्यों पीछे रहता। 
  • इस आलेख में आर्थिक प्रतिबंध को लेकर भारत की क्या नीति रही है एवं आगे क्या होना चाहिये, तथा भारत-नेपाल संबंधों के लिये आगे क्या रास्ता हो, इसकी चर्चा की गई है।

विश्लेषण

  • भारत और नेपाल के बीच रोटी-बेटी का संबंध माना जाता है। बिहार और पूर्वी-उत्तर प्रदेश के साथ नेपाल के मधेसी समुदाय का सांस्कृतिक एवं नृजातीय संबंध रहा है। दोनों देशों की सीमाओं से यातायात पर कभी कोई विशेष प्रतिबंध नहीं रहा। सामाजिक और आर्थिक विनिमय बिना किसी गतिरोध के चलता रहता है।
  • परन्तु पिछले कुछ वर्षों में नेपाल की आंतरिक राजनीतिक उठा-पटक के कारण दोनों देशों के संबंधों में कड़वाहट दिखी है। भारत पर उसके अंदरूनी मामलों में  हस्तक्षेप करने का आरोप लगता रहा है। मधेसी समुदायों ने अपनी कुछ मांगों के न सुने जाने के कारण भारत–नेपाल सीमा पर कई दिनों तक परिवहन अवरुद्ध कर दिया था। नेपाल ने इसे भारत द्वारा आर्थिक नाकेबंदी करार दिया। 
  • नेपाल के पूर्व प्रधानमंत्री खडग प्रसाद शर्मा ओली ने भारत पर नेपाल की सीमा के कुछ महत्त्वपूर्ण रास्तों के नाकाबंदी करने का आरोप लगाया था। भारत ने इस आरोप का खंडन किया है। 
  • हालाँकि यह बात भी विचारणीय है कि मधेसियों के प्रति सहानुभूति रखने तथा नेपाल सरकार को उनकी समस्याओं को दूर करने की सलाह देने वाला भारत इस मुद्दे की अनदेखी कैसे कर सकता है। बिना किसी समर्थन के इतना बड़ा परिवहन गतिरोध तथा वह भी लम्बे समय तक भला कैसे चल सकता है ? नेपाल ने इस विषय को संयुक्त राष्ट्र संघ में भी उठाया था।
  • अंतर्राष्ट्रीय मंचों से पश्चिमी देशों के आर्थिक बल प्रयोग का भारत भले ही विरोध करता हो, परन्तु बीते समय में नई दिल्ली ने अपने राजनीतिक उद्देश्यों की पूर्ति के लिये इस अस्त्र का बखूबी प्रयोग किया है। अपने राजनीतिक उद्देश्यों की पूर्ति के लिये भारत किस तरह आर्थिक दबाव का सामरिक प्रयोग करता है, नेपाल की नाकेबंदी इसका एक उदाहरण है।
  • भारत द्वारा घाटबंधी, आर्थिक नाकेबंदी तथा वित्तीय प्रतिबंध जैसे आर्थिक उपकरणों के उपयोग का यह पहला उदाहरण नहीं है। भारत अपने हितों की पूर्ति के लिये बीते समय में अन्य देशों में भी इनका प्रयोग  कर चुका है। नेपाल, पाकिस्तान तथा दक्षिण अफ्रीका इसके महत्त्वपूर्ण उदाहरण हैं। 
  • हालाँकि कुछ अवसर ऐसे भी आए हैं जब भारत ने न केवल आर्थिक दबाव के उपयोग करने की घोषणा की है बल्कि इस तरह की अंतर्राष्ट्रीय कार्यवाही के लिये पैरवी भी  की है।
  • भारत ने दक्षिण अफ्रीका के विरुद्ध वर्ष1946 से 1993 तक आर्थिक दबाव का उपयोग किया था जब भारत ने पाया कि भारतीय डायस्पोरा के प्रति वहाँ की सरकार का व्यवहार भेदभावपूर्ण एवं हानिकारक है।
  • इसी प्रकार वर्ष 2001 में भारतीय संसद पर आतंकवादी हमले के पश्चात,भारत ने पाकिस्तान से संचालित जैश-ए-मोहम्मद एवं लश्कर-ए-तैएबा को इस हमले के लिये ज़िम्मेवार ठहराते हुए पाकिस्तान पर प्रतिबंध लगा दिया था, जिसका आर्थिक प्रभाव पड़ा था। 

भारत का दृष्टिकोण

  • कई पश्चिमी देशों के नेताओं ने यहाँ तक की ईरान एवं ब्राज़ील जैसी उभरती हुई शक्तियों ने भी आर्थिक बल प्रयोग के प्रति अपने दृष्टिकोण को स्पष्ट कर रखा है। वहीं भारतीय नेताओं ने इस विषय पर प्राय: बच निकलने का प्रयास किया है। हालाँकि विदेश नीति प्रतिष्ठानों में यह किसी से छिपा नहीं है कि भारत इस नीति का उपयोग नहीं करता। इसके अतिरिक्त जब भी पश्चिमी देशों द्वारा इसके लगाए जाने की बात आई है तो भारतीय  अधिकारीगणों ने इसकी केवल चर्चा भर की है। 
  • पिछले कुछ वर्षों से भारत ने व्यक्तिगत तौर पर तथा अंतर्राष्ट्रीय मंचों से ईरान एवं रूस के विरुद्ध एकतरफा आर्थिक प्रतिबंध  लगाए जाने पर कड़ा रूख अपनाया है। नई दिल्ली का मानना है कि एकतरफा आर्थिक प्रतिबंध  से वैश्विक अर्थव्यवस्था प्रभावित होती है। इसलिये भारत ने संयुक्त राष्ट्र संघ द्वारा लगाए गए प्रतिबंधों का समर्थन किया है न कि  एकतरफा प्रतिबंधों का। 
  • चीन की तरह भारत ने भी आर्थिक बल प्रयोग के उपायों को वैधानिक या स्पष्ट विनियमन के माध्यम से औपचारिक नहीं बनाया है, जैसा कि अमेरिका तथा यूरोपीय संघ ने किया है। 

सावधानी

  • अमेरिकी राजदूत रॉबर्ट ब्लैकवील के अनुसार अमेरिका भारत के साथ मिलकर आर्थिक कूटनीति के इस उपकरण को और मज़बूत बनाना चाहता है।
  • भारत को अमेरिकी सलाह पर कार्य करने से पहले सावधान रहना होगा। पश्चिमी देशों द्वारा अब तक लगाए गए आर्थिक बल प्रयोगों की सफलता-असफलता तथा उसकी मानवीय लागत पर विचार करने के बाद ही भारत को इस सलाह को मानना चाहिये या इस पर आगे बढ़ना चाहिये।
  • भारत को आर्थिक दबाव का प्रयोग करने से पहले निम्न तीन कारकों पर विचार करना चाहिये- 

प्रथम- ऐसा करते समय अन्य कोई हानि कम-से-कम हो।
दूसरा- इसके प्रभावी उपयोग के लिये भारत को उस देश के अंतर्राष्ट्रीय संबंधों की जटिलता को समझना चाहिये। जैसे नेपाल पर प्रतिबंध लगाने से वह चीन की ओर झुक सकता है।
तीसरा- इस कार्य की लागत पर विचार कर लेना चाहिये, क्योंकि प्रतिबंध  लगाने वाला राज्य उस देश में मौद्रिक लागत के साथ-साथ अपनी प्रतिष्ठा भी खो सकता है, जैसा कि भारत और नेपाल के मामले में देखा गया है। इस तरह से प्रतिष्ठा की हानि को कूटनीतिक उपाय से जल्दी भरा नहीं जा सकता है।

निष्कर्ष
यद्दपि नेपाल के प्रधानमंत्री शेर बहादुर देउबा का पिछला कार्यकाल दोनों देशों के संबंधों के लिये उत्पादक रहा, फिर भी भारत को नेपाल के प्रति अपनी नीति दूरदर्शी बनानी होगी। जिस तरह से इस क्षेत्र में चीन का प्रभाव बढ़ रहा है, उससे भारत को  अपने पड़ोस में आर्थिक शक्ति के प्रदर्शन से पहले रणनीतिक लाभ–हानि पर विचार अवश्य कर लेना चाहिये।

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