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एडिटोरियल

अंतर्राष्ट्रीय संबंध

एस.सी.ओ. की सदस्यता के पश्चात भारतीय विदेश नीति

  • 09 Jun 2017
  • 10 min read

संदर्भ
एस.सी.ओ. में भारत की पूर्ण सदस्यता के पश्चात होने वाले  परिणाम पूर्णतयः स्पष्ट नहीं हैं| हालाँकि, निकट भविष्य में मिलने वाली कुछ भूराजनीतिक व आर्थिक लाभ स्पष्ट हैं| मूलतः भारतीय विदेश नीति पर भविष्य में  होने वाले संभावित प्रभावों के कारण ये विषय विशेष तौर पर चर्चा का विषय बन चुका है| अब मुख्य प्रश्न यह है कि अमेरिका व यूरोप से नजदीकी रखने वाली भारत, कैसे चीन व रूस के प्रभाव वाले संघटन में अपना अंतर्राष्ट्रीय एजेंडा तय कर पाएगा? इसके अतिरिक्त रूस व चीन के साथ इस संगठन में पाकिस्तान भी भारत के साथ  पूर्ण सदस्य होगा| 

भारत को एस.सी.ओ. की सदस्यता से होने वाले लाभ

  • सीमा विवाद का हल- चीन एवं पाकिस्तान दोनों के साथ भारत का सीमा विवाद है तथा दोनों के साथ बातचीत के लिये एस.सी.ओ. एक उपयुक्त मंच हो सकता है|
  • भारतीय परियोजनाओं को होने वाले लाभ- कुछ रुकी हुई परियोजनाओं को प्रारंभ करने के लिये उपयुक्त वातावरण निर्मित हो सकता है, जैसे ईरान-पाकिस्तान-भारत गैस  पाइपलाइन तथा तापी (TAPI)-तुर्कमेनिस्तान-अफ़गानिस्तान-पाकिस्तान-भारत गैस पाइपलाइन आदि को प्रारंभ करने के लिये बातचीत का अवसर प्राप्त हो सकता है|
  • ऊर्जा सुरक्षा- एस.सी.ओ. की सदस्यता भारत के लिये ऊर्जा सुरक्षा के दृष्टिकोण से भी लाभकारी हो सकती है, क्योंकि संगठन के सभी सदस्य राष्ट्र ऊर्जा संशाधनों से पूर्ण हैं और भारत की, इस सुरक्षा सहयोग संगठन का पूर्ण सदस्य होने के नाते, ऊर्जा संपन्न मध्य एशियाई देशों यथा कज़ाकस्तान, ताजीकिस्तान, किर्गिस्तान एवं उज्बेकिस्तान तक पहुँच सुनिश्चित हो जाएगी|
  • आतंकवाद प्रतिरोध- एस.सी.ओ., एशिया में आतंकवाद का प्रतिरोध करने वाला महत्त्वपूर्ण सहयोग संगठन है| इससे भारत को भी सीमापार से होने वाली विभिन्न गतिविधियों जैसे ड्रग्स तथा नकली नोट की समस्या पर कार्रवाई करने में सहायता प्राप्त होगी| क्योंकि अब भारत को एस.सी.ओ. की आतंकवाद  विरोध के लिये चलाई जा रही पहल, रीजनल एंटी-टेररिस्ट स्ट्रक्चर (RATS) का सहयोग मिलेगा|
  • मध्य एशिया से जुड़ाव- सबसे महत्त्वपूर्ण पक्ष यह है कि भारत का मध्य एशिया से सीधा भौतिक (ज़मीनी स्तर पर ) जुडाव हो जाएगा, जिससे भारत को अफगानिस्तान की समस्या के समाधान में काफी सहयोग मिल सकता है| 
  • भारत-पाक संबंध-इसके अतिरिक्त यह संगठन भारत और पाकिस्तान को भी बातचीत के लिये एक मंच प्रदान कर सकता है| इससे दोनों देशों के  मध्य शांति प्रक्रिया की पहल के लिये एक और अवसर प्राप्त हो सकता है|

शंघाई  सहयोग संगठन  (SCO) और भारत

  • शंघाई सहयोग संगठन एक अंतर्राष्ट्रीय संस्था है, जिसका गठन 2001 में शंघाई में किया गया था| 
  • वास्तव में इसकी स्थापना 1996 में गठित शंघाई पांच (SANGHAI FIVE) संगठन से हुई थी, जिसके तत्कालीन  सदस्य  देश-  चीन, कजाकिस्तान, किर्गिस्तान, रूस और ताजिकिस्तान थे|  
  • इसके पश्चात वर्ष 2001 में उज़्बेकिस्तान को भी इसमें शामिल किया गया और संगठन का नाम बदलकर शंघाई सहयोग संगठन रख दिया गया|
  • रूस, कज़ाकिस्तान, उज़्बेकिस्तान, ताज़िकिस्तान, किर्गिस्तान एवं चीन इस संगठन के पूर्ण सदस्य हैं|
  • इसके अलावा   पर्यवेक्षक के रूप में   भारत, पाकिस्तान, ईरान और मंगोलिया भी इसमें शामिल हैं| ये सभी देश जुलाई 2005 में कज़ाकिस्तान के अस्ताना में आयोजित इसकी पांचवीं बैठक में पहली बार शामिल हुए|
  • भारत ने 2014 में पूर्ण सदस्यता के लिये अपील की| 
  • इस संगठन की आधिकारिक भाषा चीनी और रूसी है|  इसका मुख्यालय बीजिंग में है|
  • मूलतः एस.सी.ओ. एक राजनीतिक, आर्थिक एवं सैन्य संगठन है, जिसका मुख्य  कार्य मध्य एशिया में स्थिरता को मज़बूत बनाना है, लेकिन यह आर्थिक और सांस्कृतिक संबंधों को मज़बूत करने की दिशा में भी काम करता है| विपदा के समय सदस्य देशों में सूचनाओं का आदान-प्रदान करना, एक दूसरे को विशेष उपकरण उपलब्ध कराना, नागरिक सुविधाओं में एक-दूसरे की मदद करना, वित्तीय-आर्थिक-रणनीतिक और मानव सहायता देना भी इसके महत्त्वपूर्ण कार्यों में शामिल है|
  • भविष्य के प्रति संशय क्यों है?
  • कुछ विश्लेषकों का यह मानना है कि चीन के वन बेल्ट वन रोड (OBOR) परियोजना के प्रति चिंता एवं एस.सी.ओ. में सदस्यता अपने आप में अंतर्विरोध पैदा करने वाले तत्त्व हैं, क्योंकि भारत,OBOR पर  कठोर शब्दों में अपनी गंभीर चिंता प्रकट करता आया है, वह चिंताएँ कुछ इस प्रकार हैं-

i. चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारा (CPEC)  का निर्माण जो OBOR की  एक महत्त्वपूर्ण परियोजना  है  भारत के लिये संप्रभुता का विषय है|  
II. इसके साथ ही इस परियोजना (OBOR) के प्रति  भारत की  पर्यावरणीय चिंताएँ भी हैं| भारत का मानना है कि  यह परियोजना हिमालयी पारिस्थितिकी को प्रभावित कर सकती है|
III. OBOR आर्थिक रूप से कमज़ोर व छोटे देशों पर गैर- धारणीय (unsustainable) ऋण को निर्मित करेगा, जो बेहद चिंताजनक है|
IV. इसके अतिरिक्त चीन का इस परियोजना (OBOR)  के संदर्भ में  पारदर्शी व्यवहार न करना, परिस्थितियों को और जटिल बनता है|

  • एस.सी.ओ. एक सैन्य संगठन है न कि कोई सांस्कृतिक व भौगोलिक आधार पर निर्मित संगठन तथा इसके चार्टर से भी  स्पष्ट है कि एस.सी.ओ. निम्नलिखित विषयों पर प्रतिबद्ध रहेगा- 

I. संयुक्त स्तर पर क्षेत्र की (मध्य व दक्षिण एशिया) शांति बहाली के लिये प्रयास करना| 
II. क्षेत्रीय सुरक्षा एवं स्थिरता कायम रखना|
III. प्रजातांत्रिक व्यवस्था के निर्माण हेतु प्रयास करना|
IV. अंतर्राष्ट्रीय आर्थिक व राजनीतिक व्यवस्था को नवीन व तार्किक रूप देने हेतु प्रयास करना| 

  • परोक्षतः, ये कहा जा सकता है कि इस संगठन का निर्माण रूस व चीन के द्वारा अमेरिकी नेतृत्त्व वाले नाटो (NATO) को संतुलित करने के लिये किया गया है| इस दशा में दोनों शक्तियों के मध्य भारत के लिये अपना  संतुलन बनाने की चुनौती होगी|
  • चूँकि  भारत वर्तमान में अमेरिका व यूरोपीय संघ दोनों के साथ अपने नजदीकी  सैन्य व आर्थिक संबंध रखता है, इस दशा में भारत को एस.सी.ओ. में अपनी प्राथमिकता तय करने में परेशानी हो सकती है| दक्षिण चीन सागर में अमेरिका की बढती उपस्थिति तथा उत्तर कोरियाई संकट के अतिरिक्त चीन की बढती आक्रामकता के ऊपर रूस एवं अमेरिका के विचार अलग अलग हैं| इस दशा में भारत को अपना पक्ष तय करना होगा कि वो किस व्यवस्था का सहयोगी है अथवा नहीं|

निष्कर्ष
अतः भारत के लिये वर्तमान वैश्विक सन्दर्भों में ये तय करना मुश्किल हो सकता है कि  कौन सा समूह व संगठन उसके हितों की शत- प्रतिशत रक्षा कर सकता है, परन्तु व्यावहारिक सिद्धांत के अनुसार यह तय है कि राष्ट्र की वह विदेश नीति सर्वोत्तम होती है जो राष्ट्र की ज़रूरतों के प्रति अनुक्रियाशील हो| इसलिए भारत को अमेरिका व अपने पश्चिमी सहयोगियों के अतिरिक्त उन हर समीकरणों की तलाश जारी रखनी चाहिये, जिसके द्वारा उसकी क्षेत्रीय स्थिति में सुधार हो|

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