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भारत-विश्व

भारत-चीन अनौपचारिक शिखर सम्मेलन

  • 03 May 2018
  • 18 min read

संदर्भ
भले ही प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का चीन दौरा खत्म हो गया हो, लेकिन चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग के साथ उनकी दोस्ती को दूरगामी दृष्टिकोण से मापा जा रहा है। चीनी राष्ट्रपति ने जिस तरह से प्रोटोकॉल तोड़कर भारतीय प्रधानमंत्री से अनौपचारिक बातचीत की, उससे तो यही लगता है कि चीन भारत के साथ अपने संबंधों को पहले की अपेक्षा अधिक मज़बूत आधार प्रदान करना चाहता है। प्रधानमंत्री मोदी की इस यात्रा के महत्त्व का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि ऐसा पहली बार हुआ है जब चीन के राष्ट्रपति ने किसी प्रधानमंत्री से अनौपचारिक भेंट की हो। इसका कारण यह है कि इससे पहले प्रधानमंत्री की आधिकारिक मुलाकात चीनी प्रधानमंत्री ली केकियांग से होती थी, इसके बाद ही वह राष्ट्रपति से मिल पाते थे।

मुख्य बिंदु

  • भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने द्विपक्षीय एवं अंतरराष्ट्रीय महत्त्व के महत्त्वपूर्ण विषयों पर विचारों के आदान-प्रदान एवं वर्तमान अंतरराष्ट्रीय परिदृश्य के संदर्भ में अपने-अपने देशों के राष्ट्रीय विकास के लिये उनकी प्राथमिकताओं और दृष्टिकोण पर विस्तार से बातचीत करने के लिये 27-28 अप्रैल, 2018 को वुहान में प्रथम अनौपचारिक शिखर सम्मेलन में भाग लिया। 
  • इस मुलाकात की एक खास वजह यह भी थी कि गत साल भारत और चीन के बीच डोकलाम के मुद्दे पर तनातनी का माहौल रहा। इस गतिरोध के बाद दोनों देशों के प्रमुखों की यह पहली मुलाकात थी। आपको बता दें कि यह एक अनौपचारिक मुलाकात थी, अर्थात् इस यात्रा के दौरान न तो किसी समझौते पर हस्ताक्षर हुए और न ही कोई संयुक्त बयान जारी किया गया।
  • किसी समझौते की घोषणा न होने के बावजूद उसकी अहमियत इसलिये बढ़ जाती है, क्योंकि दोनों देशों ने सीमा पर शांति बनाए रखने के लिये संचार तंत्र को मज़बूत करने और आपसी समझ विकसित करने के लिये अपनी-अपनी सेनाओं को रणनीतिक मार्गदर्शन जारी करने का फैसला किया।

कुछ महत्त्वपूर्ण बिंदुओं जिन पर सहमति बनी

  • भारत और चीन दो विशाल अर्थव्यवस्थाओं एवं महत्त्वपूर्ण शक्तियों के रूप में रणनीतिक और निर्णय लेने की स्वतंत्रता सहित एक साथ उदय, क्षेत्रीय एवं अंतरराष्ट्रीय रूप से महत्त्व रखता है।
  • भारत और चीन के बीच शांतिपूर्ण, स्थिर और संतुलित रिश्ते मौजूदा वैश्विक अनिश्चितता के बीच एक सकारात्मक कारक साबित होंगे। 
  • दोनों देशों के प्रमुखों द्वारा इस बात पर सहमति व्यक्त की गई कि द्विपक्षीय संबंधों के समुचित प्रबंधन क्षेत्रीय विकास एवं स्थिरता के लिये सहयोगकारी रहेगा और एशिया की सदी के निर्माण के लिये अनुकूल परिस्थितियाँ तैयार करेगा।
  • इस संबंध में दोनों राष्ट्रों द्वारा राष्ट्रीय आधुनिकीकरण और अपने लोगों को अधिक समृद्ध बनाने के लिये एक करीबी विकासात्मक साझेदारी को परस्पर लाभकारी और स्थायी तरीके से सशक्त बनाने का निश्चय भी किया गया।

भारत-चीन संबंधों में प्रगति की समीक्षा

  • प्रधानमंत्री मोदी और राष्ट्रपति शी ने रणनीतिक और दीर्घकालिक दृष्टिकोण से भारत चीन संबंधों में प्रगति की समीक्षा की। भावी संबंधों के लिये संभव सबसे वृहद मंच के निर्माण के लिये दोनों प्रमुखों ने पहले से स्थापित प्रणालियों के ज़रिये मौजूदा संमिलन को और विकसित करने के लिये अपने प्रयासों को व्यापक रूप से बढ़ाने पर भी सहमति प्रकट की।
  • वे इस बात पर भी सहमत हुए कि एक दूसरे की संवेदनशीलताओं, चिंताओं और आकाँक्षाओं के महत्त्व को दिमाग में रखते हुए दोनों देशों के मतभेदों को शांतिपूर्ण ढंग और समग्र संबंधों के संदर्भ में सुलझाने के लिये दोनों पक्षों में पर्याप्त परिपक्वता और बुद्धिमत्ता है। 

भारत-चीन सीमा क्षेत्र

  • भारत और चीन के बीच सीमा विवाद हमेशा से एक पेचीदा मसला रहा है। डोकलाम में टकराव इसी सीमा विवाद की उपज था। पिछले साल डोकलाम में भूटान के इलाके में सड़क निर्माण की चीन की कोशिश उसके विस्तारवादी रवैये के साथ-साथ भारत की सुरक्षा के लिये खतरे का सूचक थी। इस खतरे को भाँपकर ही भारत ने डोकलाम में अपनी सेना भेजने का निर्णय लिया था।
  • इस बात की महत्ता को समझते हुए दोनों देशों ने संबंध सुधार की जो कोशिश शुरू की उसका ही नतीजा वुहान में अनौपचारिक बैठक के रूप में देखने को मिला। इस बैठक में दोनों नेताओं द्वारा द्विपक्षीय संबंधों के व्यापक हित में भारत-चीन सीमा क्षेत्र के सभी हिस्सों में शांति व्यवस्था को बनाए रखने के महत्त्व पर बल दिया गया।
  • इस उद्देश्य की प्राप्ति के लिये उन्होंने अपनी सेनाओं को आपसी विश्वास एवं समझ विकसित करने और सीमा संबंधी मामलों के प्रबंधन में पूर्वानुमान लगाने तथा उन्हें प्रभावकारी बनाने के लिये रणनीतिक मार्ग-निर्देशन भी दिये, ताकि भविष्य में ऐसी किसी भी स्थिति से बचा जा सके।
  • वुहान में दोनों देशों के नेताओं ने भारत-चीन के प्राचीन संबंधों को याद करते हुए उन्हीं आधार पर एक बेहतर कल के निर्माण की कल्पना भी प्रस्तुत की। जैसा कि हम सभी जानते हैं कि चीन में प्रचलित बौद्ध धर्म का उदय भारत में ही हुआ था, इस आधार पर इन दोनों देशों के बीच एक आध्यात्मिक रिश्ता भी है।
  • हालाँकि, इसके बावजूद इन दोनों के मध्य रिश्ते में वैसी मधुरता नहीं है, जैसी कि होनी चाहिये।

द्विपक्षीय व्यापार एवं निवेश

  • दोनों नेता दोनों देशों के बीच मौजूद लाभकारी व्यवस्थाओं का लाभ उठाते हुए द्विपक्षीय व्यापार एवं निवेश को एक संतुलित और स्थायी तरीके से आगे बढ़ाने पर भी सहमत हुए।
  • उन्होंने लोगों के बीच आपसी संपर्क और घनिष्ठ सांस्कृतिक संपर्कों को प्रोत्साहित करने के तरीकों पर भी चर्चा की और इस दिशा में एक नयी व्यवस्था की स्थापना की संभावना को तलाशने पर भी सहमत हुए। 

क्षेत्रीय और वैश्विक हित

  • दोनों नेताओं द्वारा इस बात पर बल दिया कि दो महत्त्वपूर्ण देशों के तौर पर भारत और चीन के व्यापक और परस्पर जुड़े हुए क्षेत्रीय और वैश्विक हित हैं। स्पष्ट रूप से ऐसा रणनीतिक संवाद आपसी समझ पर एक सकारात्मक प्रभाव तो डालेगा ही, साथ ही क्षेत्रीय और वैश्विक स्थिरता में भी योगदान देगा। 
  • दोनों नेताओं द्वारा इस बात पर भी सहमति जताई गई कि भारत और चीन दोनों ने अपने-अपने विकास और आर्थिक प्रगति के ज़रिये विश्व शांति और समृद्धि में अलग-अलग ढंग से व्यापक योगदान दिया है और दोनों ही देश भविष्य में वैश्विक विकास के लिये एक इंजन की तरह काम करते रहेंगे।
  • एक खुली, बहुध्रुवीय, बहुलवादी एवं भागीदारी पर आधारित वैश्विक आर्थिक व्यवस्था का निर्माण जहाँ एक ओर सभी देशों को उनके विकास के लक्ष्यों को हासिल करने योग्य बनाएगा, वहीं दूसरी ओर विश्व के सभी क्षेत्रों से निर्धनता और असमानता के उन्मूलन में भी सहयोग करेगा।

विदेशी नीति

  • दोनों नेताओं ने वैश्विक समृद्धि और सुरक्षा को प्राप्त करने के लिये विदेश नीति पर अपने-अपने दृष्टिकोण के बारे में एक दूसरे के साथ अपने विचार साझा किये। इस दौरान कुछ प्रमुख वैश्विक चुनौतियों, जैसे- जलवायु परिवर्तन, स्थायी विकास एवं खाद्य सुरक्षा और अन्य चुनौतियों के स्थायी समाधान के लिये एक सकारात्मक और रचनात्मक तरीके से संयुक्त रूप से योगदान देने पर भी सहमत जताई गई।
  • इसके अतिरिक्त बहुपक्षीय वित्तीय एवं राजनीतिक संस्थाओं के सुधार के महत्त्व पर बल दिया, ताकि इन संस्थाओं को और अधिक प्रतिनिधित्वकारी और विकासशील देशों की आवश्यकताओं के प्रति और संवेदनशील बनाया जा सके। 
  • दोनों देशों के व्यापक विकास संबंधी अनुभवों और राष्ट्रीय क्षमताओं को देखते हुए यह कहना गलत नहीं होगा कि दो महत्त्वपूर्ण देशों और उभरती हुई अर्थव्यवस्थाओं के तौर पर भारत और चीन को 21वीं सदी में मानव जाति द्वारा सामना की जा रही चुनौतियों से निपटने के लिये अनोखे और स्थायी समाधान प्रदान करने में बढ़त लेने के लिये आपस में हाथ मिला लेने चाहिये।

आतंकवाद के मुद्दे पर

  • प्रधानमंत्री मोदी और राष्ट्रपति शी ने आतंकवाद के सम्मिलित खतरे और आतंकवाद के सभी प्रकारों/रूपों के प्रति प्रबल प्रतिरोध व्यक्त करते हुए इसकी भर्त्सना भी की।

अफगानिस्तान में एक संयुक्त आर्थिक परियोजना

  • जैसा कि हम सभी जानते हैं कि भारत और चीन के बीच अफगानिस्तान में एक संयुक्त आर्थिक परियोजना पर सहमति बन गई है। इस परियोजना को चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारे (सीपीइसी) का तोड़ माना जा रहा है।
  • ज्ञात हो कि हमेशा से भारत इस चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारे पर अपना विरोध जताता आया है, इसका सबसे अहम् कारण यह है कि यह गलियारा पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर (पीओके) से होकर गुजरेगी।
  • चीन के वुहान में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और चीनी राष्‍ट्रपति शी जिनपिंग के बीच अफगानिस्‍तान में परियोजना को लेकर संयुक्‍त आर्थिक भागीदारी पर सहमति बन गई है। यदि यह परियोजना प्रभाव में आती है तो यह पाकिस्‍तान के लिये परेशानी का सबब बन सकती है।

अफगानिस्तान में चीन सबसे बड़ा निवेशक

  • आपको बताते चलें कि चीन, अफगानिस्तान का सबसे बड़ा निवेशक राष्ट्र है। एक जानकारी के अनुसार, चीन ने वर्ष 2007 में 3 बिलियन डॉलर की एक डील के तहत, अफगानिस्तान के अयनाक में कॉपर माइन को 30 साल की लीज पर लिया था।
  • इस माइन से कॉपर को चीन पहुँचाने में लगभग 6 महीने का समय लगता था, लेकिन दोनों देशों द्वारा वर्ष 2016 में रेलवे लाइन के निर्माण संबंधी एक समझौता पत्र पर सहमति व्यक्त करने के बाद एक कॉरिडोर तैयार किया गया। इसका प्रभाव यह हुआ कि अब मात्र दो हफ्तों में कॉपर को अफगानिस्तान से चीन पहुँचाया जा रहा है।
  • अब यदि अफगानिस्तान सीपीईसी में शामिल हो जाता है तो अफगानिस्तान में सड़क और रेल नेटवर्क तैयार करने का कार्य शुरू हो जाएगा, जिससे वह अपने कारोबार को और अधिक प्रसारित करने के साथ-साथ सेंट्रल और वेस्टर्न एशिया के कारोबार में भी अपनी जगह बना पाएगा।

पूर्वोत्तर भारत की सुरक्षा का प्रश्न

  • डोकलाम और तवांग (अरुणाचल प्रदेश) की स्थिति को ध्यान में रखते हुए ही प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा सत्तासीन होने के बाद से पूर्वोत्तर भारत के विकास पर विशेष रूप से ध्यान केंद्रित किया गया है।
  • हमेशा से पूर्वोत्तर भारत न केवल शेष देश से कटा-कटा रहा है, बल्कि अलगाववाद एवं उग्रवाद की समस्या से भी जूझता रहा है। न तो इस क्षेत्र को केंद्रीय योजनाओं से ही कोई विशेष लाभ पहुँचा है और न ही यहाँ की बुनियादी व्यवस्था ही सुदृढ़ है।
  • इन्हीं सब मुद्दों को ध्यान में रखते हुए मोदी सरकार द्वारा इस क्षेत्र के विकास पर सबसे अधिक ध्यान केंद्रित किया गया है।
  • ज़ाहिर सी बात है इसका सरकार को राजनीतिक फायदा भी मिला है। उल्लेखनीय है कि वर्तमान में पूर्वोत्तर भारत के पाँच राज्यों में भाजपा या इसके द्वारा समर्थित सरकार है।

युद्ध किसी समस्या का हल नहीं है

  • आज एक विकास और प्रतिस्पर्द्धा के दौर में यदि कोई भी देश युद्ध का मार्ग अपनाता है तो वह न केवल दुश्मन राष्ट्र की आर्थिक, सामाजिक एवं राजनीतिक स्थिति को नुकसान पहुँचाता है, बल्कि वह अपनी उन्नति के मार्ग में भी बाधा उत्पन्न करता है।
  • आज के युग में सैन्य टकराव का विकल्प बिल्कुल भी प्रभावी नहीं है, इसलिये भारत और चीन को भी सेना के ज़रिये किसी विवाद का समाधान करने की बजाय दूसरे विकल्पों पर विचार करना चाहिये।
  • न तो भारत इस समय पहले जैसी स्थिति (वर्ष 1962 जैसी) में है और न ही चीन एक बड़ी ताकत के तौर पर उभरने के बाद ऐसी गलती करेगा।
  • वर्तमान संदर्भ में यदि ये दोनों देश किसी भी छोटे या बड़े सैन्य टकराव की स्थति में आते हैं तो इसका इनके आर्थिक-व्यापारिक संबंधों पर गहरा असर पड़ेगा।
  • इससे न केवल भारत की तेज़ी से उभरती अर्थव्यवस्था प्रभावित होगी, बल्कि इससे विश्व महाशक्ति बनने के चीन के सपने को भी धक्का पहुँचेगा।

निष्कर्ष
इसमें कोई दो राय नहीं है कि हाल ही में चीन के शहर वुहान में हुई दोनों देशों के नेताओं की इस अहम् मुलाकात में कुछ बहुत महत्त्वपूर्ण मसलों पर सहमति बनी है, जिसके परिणामस्वरूप सीमा विवाद पर टकराव की आशंका कम हो गई है, लेकिन गौर करने वाली बात यह है कि अभी भी यह समस्या पूरी तरीके से दूर नहीं हुई है। ऐसे में यह देखना दिलचस्प होगा कि वुहान शिखर वार्ता के बाद क्या भारत के प्रति चीनी नेतृत्व में कोई बदलाव आता है या नहीं? साथ ही अर्थव्यवस्था में तीव्र गति के साथ-साथ क्या भारत क्षेत्रीय समस्याओं का समाधान करते हुए विकास की गति को जारी रख पाता है? 

प्रश्न: वुहान शिखर वार्ता के संदर्भ में भारत-चीन संबंधों की समीक्षा कीजिये। साथ ही चीन की विस्तारवादी नीति के परिपेक्ष्य में भारत की भूमिका पर भी प्रकाश डालिये।

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