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जीन एडिटिंग से संबंधित नैतिक चिंताएँ

  • 30 Nov 2018
  • 11 min read

संदर्भ


हाल ही में एक चीनी शोधकर्त्ता ने दावा किया कि उसने इस महीने पैदा हुई दुनिया के पहले जेनेटिकली एडिटेड बच्चों (जुड़वाँ लड़कियों) को उत्पन्न करने में सफलता हासिल की। शोधकर्त्ता के अनुसार, उसने जुड़वाँ बच्चों के DNA को जीवन के महत्त्वपूर्ण लक्षणों को पुनर्संपादित करने में सक्षम, एक शक्तिशाली नए उपकरण के द्वारा परिवर्तित कर दिया है। हालाँकि, उसका यह दावा अभी भी सत्यापित नहीं है और इस दावे पर तमाम तरह से अनैतिक ठहराया जा रहा है। दरअसल, जीन पूल की विविधता के साथ किसी भी प्रकार के परिवर्तन के विनाशकारी परिणाम हो सकते हैं।

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हालिया शोध के परिणाम

  • शोधकर्त्ता हे जियानकुई के अनुसार, उसने प्रजनन उपचार के दौरान सात जोड़ों के लिये भ्रूण में परिवर्तन किया, इस प्रकार गर्भावस्था का एक परिणाम प्राप्त हुआ।
  • शोधकर्त्ता का लक्ष्य आनुवंशिक बीमारी का इलाज या उसे रोकना नहीं है, बल्कि कुछ लोगों को स्वाभाविक रूप से प्राप्त HIV/AIDS वायरस के भविष्य में संभावित संक्रमण का प्रतिरोध करने की क्षमता की विशेषता को अन्य लोगों को प्रदान करने की कोशिश करना है।
  • उसके दावे की कोई स्वतंत्र पुष्टि नहीं की गई है, और न ही इसे किसी पत्रिका में प्रकाशित किया गया है, जहाँ इसका अन्य विशेषज्ञों द्वारा निरीक्षण किया गया हो।
  • इस तरह की जीन एडिटिंग संयुक्त राज्य अमेरिका में प्रतिबंधित है क्योंकि DNA परिवर्तन भविष्य की पीढ़ियों तक पहुँच सकते हैं और यह अन्य जीनों को नुकसान पहुँचा सकते हैं।
  • हाल के वर्षों में वैज्ञानिकों ने जीन एडिटिंग का अपेक्षाकृत आसान तरीका खोजा है, जिसमें शरीर को नियंत्रित करने वाले DNA स्ट्रैंड की एडिटिंग एक उपकरण के द्वारा की जाती है अर्थात् एक आवश्यक जीन की आपूर्ति करके या समस्या पैदा करने वाले जीन को अक्षम करके जीन एडिटिंग किया जाता है।
  • हाल ही में वयस्कों में घातक बीमारियों का इलाज करने की कोशिश की गई है, और परिवर्तन उस व्यक्ति तक ही सीमित हैं। शुक्राणु, अंडे या भ्रूण की एडिटिंग करना इससे अलग है – ये परिवर्तन आनुवंशिक हो सकते हैं। अमेरिका में प्रयोगशाला अनुसंधान को छोड़कर और कहीं इसकी अनुमति नहीं है। चीन में मानव क्लोनिंग अवैध है लेकिन विशेष रूप से जीन एडिटिंग नहीं।

शोध का कारण

  • इस चीनी वैज्ञानिक ने कहा कि उसने HIV के लिये भ्रूण कि जीन एडिटिंग का प्रयास चुना क्योंकि HIV संक्रमण चीन में एक बड़ी समस्या है। उसने CCR5 नामक एक जीन को अक्षम करने का प्रयास किया जो AIDS वायरस को एक कोशिका में प्रवेश करने की अनुमति देने के लिये प्रोटीन द्वार बनाता है।
  • शोधकर्त्ता ने बताया कि यह जीन एडिटिंग IVF (In vitro fertilization) या प्रयोगशाला में निषेचन के दौरान हुआ था। सबसे पहले, शुक्राणु को वीर्य से अलग करने के लिये "धोया गया" था, ताकि तरल पदार्थ में HIV छिप न सके।
  • एक भ्रूण बनाने के लिये एक शुक्राणु को एक ही अंडे में रखा गया था। फिर जीन एडिटिंग उपकरण का इस्तेमाल किया गया था। जब भ्रूण 3 से 5 दिन पुराने हो गए, तो कुछ कोशिकाओं को हटा दिया गया और एडिटिंग के लिये चेक किया गया।
  • शोध में शामिल पुरुष AIDS से ग्रसित थे जबकि महिलाएँ सुरक्षित थीं। इन जोड़ों के पास यह विकल्प था कि गर्भावस्था के प्रयासों के लिये एडिटिंग या अनियमित भ्रूण का उपयोग करना है या नहीं। उसने कहा कि जुडवाँ गर्भावस्था प्राप्त करने से पहले छह प्रयासों में ग्यारह भ्रूणों का इस्तेमाल किया गया था।
  • इस परीक्षण से पता चलता है कि जुडवाँ बच्चों में से एक में इच्छित जीन की दोनों प्रतियाँ बदल गई थीं और दूसरे में सिर्फ एक प्रति में ही बदलाव आया था, अन्य जीनों को नुकसान पहुँचाने का कोई सबूत नहीं था।
  • कई वैज्ञानिकों ने परीक्षण के बाद चीनी वैज्ञानिक द्वारा उपलब्ध कराई गई उन सामग्रियों की समीक्षा की और कहा कि अब तक किये गए परीक्षण निष्कर्ष निकालने के लिये अपर्याप्त हैं।

जीन एडिटिंग के अनुप्रयोग (Applications of Gene Editing)

  • क्रिस्पर-कैस 9 ((Clustered Regualarly Interspaced Short Palindromic Repeats-9) एक ऐसी तकनीक है जो वैज्ञानिकों को अनिवार्य रूप से DNA काटने और जोड़ने की अनुमति देती है, जिससे रोग के लिये आनुवंशिक सुधार की उम्मीद बढ़ जाती है।
  • वैज्ञानिक अनुसंधान में पहले से ही व्यापक रूप से इसका उपयोग किया जाता है, क्रिस्पर-कैस 9 को HIV, कैंसर या सिकल सेल रोग जैसी बीमारियों के लिये संभावित जीनोम एडिटिंग उपचार हेतु एक आशाजनक तरीके के रूप में भी देखा गया है।
  • इस तरह इसके माध्यम से चिकित्सकीय रूप से बीमारी पैदा करने वाले जीन को निष्क्रिय किया जा सकता है या आनुवंशिक उत्परिवर्तन को सही कर सकते हैं।
  • क्रिस्पर जीन एडिटिंग जेनेटिक हेरफेर के लिये एक टूलबॉक्स प्रदान करती है। उल्लेखनीय है कि क्रिस्पर सिस्टम पहले से ही मौलिक बीमारी अनुसंधान, दवा जाँच और थेरेपी विकास, तेजी से निदान, इन-विवो एडिटिंग (In Vivo Editing) और ज़रूरी स्थितियों में सुधार के लिये बेहतर अनुवांशिक मॉडल प्रदान कर रहा है।
  • वैज्ञानिक इस सिद्धांत पर काम कर रहे हैं कि क्रिस्पर का उपयोग शरीर के टी-कोशिकाओं (T-Cells) के कार्य को बढ़ावा देने में किया जा सके ताकि प्रतिरक्षा प्रणाली कैंसर को पहचानने और नष्ट करने में बेहतर हो तथा रक्त और प्रतिरक्षा प्रणाली के विकार और अन्य संभावित बीमारियों को लक्षित किया जा सके।
  • कैलिफ़ोर्निया में विश्व के पहले जीन-एडिटिंग परीक्षण में HIV के लगभग 80 रोगियों के खून से HIV प्रतिरक्षा कोशिकाओं को (Zinc-finger nucleases) ZFNs नामक एक अलग तकनीक का प्रयोग कर हटाया गया।
  • चीन में शोधकर्ताओं ने मानव भ्रूण के एक दोषपूर्ण जीन को सही करने की कोशिश करने के लिये संपादित किया जो विरासत में रक्त विकार का कारण बनता है।
  • वैज्ञानिकों ने कहा कि उन्होंने मलेरिया को दूर करने के लिये भी जीन एडिटिंग का उपयोग किया था जिससे मलेरिया का प्रतिरोध किया जा सकता है।
  • किसानों द्वारा भी फसलों को रोग प्रतिरोधी बनाने के लिये क्रिस्पर तकनीक का उपयोग किया जा रहा है।
  • चिकित्सकीय क्षेत्र में, जीन एडिटिंग संभावित रूप से आनुवंशिक बीमारियों का इलाज कर सकता है, जैसे हृदय रोग और कैंसर के कुछ रूप या एक दुर्लभ विकार जो दृष्टिबाधा या अंधेपन का कारण बन सकता है, के इलाज़ में ।
  • कृषि क्षेत्र में, यह तकनीक उन पौधों को पैदा कर सकती है जो न केवल उच्च पैदावार में कारगर होंगे, जैसे कि लिप्पमैन के टमाटर, बल्कि यह सूखे और कीटों से बचाव के लिये फसलों में विभिन्न परिवर्तन कर सकते हैं ताकि आने वाले सालों में चरम मौसम के बदलावों में भी फसलों को हानि से बचाया जा सके।
  • क्रिस्पर DNA के हिस्से हैं, जबकि कैस-9 (CRISPR-ASSOCIATED PROTEIN9-Cas9) एक एंजाइम है। हालाँकि, इसके साथ सुरक्षा और नैतिकता से संबंधित चिंताएँ जुड़ी हुई हैं।

नैतिक चिंताएँ (Ethical Concerns)

  • दुनिया भर के वैज्ञानिकों ने इस प्रयोग पर चिंता जताते हुए इसे विज्ञान और नैतिकता के खिलाफ बताया है क्योंकि इससे भविष्य में ‘डिजाइनर बेबी’ के जन्म की अवधारणा को और बल मिलेगा। यानी बच्चे की आँख, बाल और त्वचा का रंग ठीक वैसा ही होगा, जैसा उसके माता-पिता चाहेंगे।
  • इसके अलावा, मानव भ्रूण एडिटिंग अनुसंधान को पर्याप्त रूप से नियंत्रित नहीं किया जा सकता है, जिससे इसे जीन-एडिटेड बच्चों को बनाने के लिये विभिन्न प्रयोगशालाओं को बढ़ावा मिल सकता है।
  • इस क्षेत्र के कुछ प्रमुख वैज्ञानिकों द्वारा आशंका जताई गई है कि इस तकनीक का संभावित दुरुपयोग आनुवंशिक भेदभाव पैदा करने के लिये भी हो सकता है।
  • इसके
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