लखनऊ शाखा पर IAS GS फाउंडेशन का नया बैच 23 दिसंबर से शुरू :   अभी कॉल करें
ध्यान दें:



एडिटोरियल

भारतीय अर्थव्यवस्था

COVID-19 महामारी और डिजिटल शिक्षा

  • 23 Jan 2021
  • 15 min read

इस Editorial में The Hindu, The Indian Express, Business Line आदि में प्रकाशित लेखों का विश्लेषण किया गया है। इस लेख में वर्तमान शिक्षा प्रणाली को पूरी तरह डिजिटल लर्निंग की तरफ स्थानांतरित करने में COVID-19 महामारी की भूमिका व इससे संबंधित विभिन्न पहलुओं पर चर्चा की गई है। आवश्यकतानुसार, यथास्थान टीम दृष्टि के इनपुट भी शामिल किये गए हैं।

संदर्भ:

COVID-19 महामारी ने बच्चों के दैनिक जीवन को बाधित कर दिया है, इस महामारी के कारण सभी  शिक्षण संस्थानों और परीक्षाओं को स्थगित करना पड़ा है तथा इसके कारण बहुत से बच्चे शिक्षा तंत्र से बाहर हो गए हैं। बच्चों की पढ़ाई बाधित न हो यह सुनिश्चित करने के लिये स्कूलों द्वारा पढ़ाई को ऑनलाइन मोड पर स्थानांतरित कर दिया गया।

वर्तमान में जब इस महामारी ने पठन-पाठन की प्रक्रिया को ऑनलाइन मोड में ले जाने के लिये विवश किया है, ऐसे में शिक्षा क्षेत्र को एक अभूतपूर्व चुनौती का सामना करना पड़ रहा है। जहाँ कई छात्र अपना अधिकांश समय मोबाइल या कंप्यूटर स्क्रीन के सामने बिताते हैं, वहीं कई अन्य इंटरनेट या स्मार्टफोन जैसे उपकरणों की अनुपलब्धता या इससे जुड़ी अन्य चुनौतियों के कारण पढ़ाई में पिछड़ रहे हैं। 

हालाँकि वर्ष 2017-18 के राष्ट्रीय प्रतिदर्श सर्वेक्षण (National Sample Survey) के आँकड़ों के अनुसार, देश के मात्र 15% ग्रामीण घरों में इंटरनेट की सुविधा उपलब्ध थी, जबकि शहरी घरों के मामले में यह दर 42% थी। अतः ई-लर्निंग प्रणाली की तरफ हुए इस बदलाव ने एक नई बहस छेड़ दी है कि क्या इस बदलाव से छात्रों को सीखने में मदद मिली है या इससे उनके विकास, सामाजिक और भावनात्मक कल्याण में बाधा उत्पन्न हुई है तथा इससे भी महत्त्वपूर्ण प्रश्न यह है कि क्या यह नया माध्यम वास्तव में शिक्षा के सभी आयामों की पूर्ति करता है या नहीं।

डिजिटल शिक्षा: 

  • डिजिटल शिक्षा, पठन-पाठन के दौरान डिजिटल उपकरणों तथा प्रौद्योगिकियों का अभिनव उपयोग है,  इसे अक्सर ‘प्रौद्योगिकी संवर्द्धित लर्निंग’ (TEL) या ई-लर्निंग के रूप में भी संदर्भित किया जाता है।  
  • डिजिटल प्रौद्योगिकियों का उपयोग शिक्षकों को उनके द्वारा पढ़ाए जाने वाले पाठ्यक्रमों में सीखने की प्रक्रिया को अधिक आकर्षक बनाने का अवसर प्रदान करता है और यह मिश्रित या पूरी तरह से ऑनलाइन पाठ्यक्रमों व कार्यक्रमों का रूप ले सकता है।

ई-लर्निंग के सुचारु संचालन हेतु सरकारी पहल:

  • भारत में ऑनलाइन शिक्षा को सक्षम करने के लिये कई पहलों की शुरुआत की गई है, जिनमें से कुछ निम्नलिखित हैं: 
    • ई-पीजी पाठशाला:  यह केंद्रीय शिक्षा मंत्रालय (पूर्व में मानव संसाधन विकास मंत्रालय) की एक पहल है जिसका उद्देश्य अध्ययन के लिये ई-सामग्री प्रदान करना है।
    • स्वयं (SWAYAM): यह ऑनलाइन पाठ्यक्रमों के लिये एक एकीकृत मंच प्रदान करता है।
    • प्रौद्योगिकी के लिये राष्ट्रीय शैक्षिक गठबंधन (NEAT): इस योजना का उद्देश्य कृत्रिम बुद्धिमत्ता (Artificial Intelligence) की सहायता से छात्र की व्यक्तिगत आवश्यकताओं के अनुरूप सीखने की प्रक्रिया की अधिक अनुकूलित प्रणाली को विकसित करना है।
  • अन्य पहलों में शामिल हैं-‘नेशनल प्रोजेक्ट ऑन टेक्नोलॉजी एनहांसमेंट लर्निंग’ (NPTEL), ‘नेशनल नॉलेज नेटवर्क’ (NKN) और ‘नेशनल एकेडमिक डिपॉजिटरी’ (NAD) आदि।
  • प्रज्ञाता (PRAGYATA):  केंद्रीय मानव संसाधन विकास मंत्रालय (वर्तमान में केंद्रीय शिक्षा मंत्रालय) द्वारा देश में डिजिटल शिक्षा पर प्रज्ञाता (PRAGYATA) शीर्षक के साथ आवश्यक दिशा निर्देश जारी किये गए।
  • प्रज्ञाता दिशा-निर्देश के अनुसार, नर्सरी और प्री-स्कूल स्तर पर माता-पिता के साथ बातचीत करने और उनका मार्गदर्शन करने के लिये तय समय 30 मिनट से अधिक नहीं होना चाहिये।
  • साथ ही स्कूलों के लिये कक्षा 1-8 के लिये प्रतिदिन अधिकतम 1.5 घंटे और कक्षा 9-12 के लिये प्रतिदिन अधिकतम 3 घंटे ऑनलाइन कक्षाओं की सीमा निर्धारित की गई है।   

नेशनल प्रोग्राम ऑन टेक्नोलॉजी एनहांस्ड लर्निंग (NPTEL):

  • NPTEL केंद्रीय मानव संसाधन विकास मंत्रालय की एक परियोजना है, जिसे देश के सात ‘भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थानों’ (IIT) द्वारा भारतीय विज्ञान संस्थान बंगलूरू के साथ मिलकर शुरू किया गया है।    
  • इसे वर्ष 2003 में ऑनलाइन शिक्षा की सुविधा प्रदान करने के लिये बनाया गया था। 
  • इसका  उद्देश्य इंजीनियरिंग, विज्ञान और प्रबंधन के क्षेत्र में वेब और वीडियो पाठ्यक्रम उपलब्ध कराना है।   

एक रक्षक के रूप में प्रौद्योगिकी: 

  • लचीलापन: ऑनलाइन शिक्षा, छात्र और शिक्षक दोनों को सीखने की गति निर्धारित करने में सक्षम बनाती है, साथ ही यह सभी की दिनचर्या में समन्वय के अनुरूप पढ़ने का समय निर्धारित करने की सुविधा प्रदान करती है। 
  • पाठ्यक्रमों की एक विस्तृत शृंखला: इंटरनेट की विशाल और विस्तृत दुनिया में अनंत कौशल एवं  विषय सिखाने तथा सीखने का अवसर उपलब्ध होता है। 
    • हाल में ऐसे विश्वविद्यालयों और उच्च शिक्षा से जुड़े स्कूलों की संख्या में वृद्धि हुई है जो विभिन्न स्तरों तथा विषयों के लिये अपने कार्यक्रमों को ऑनलाइन माध्यम पर प्रस्तुत कर रहे हैं।
  • पारंपरिक शिक्षा की तुलना में लागत प्रभावी: ऑनलाइन शिक्षा के लिये अपेक्षाकृत कम मौद्रिक निवेश की आवश्यकता होती है और इसके बेहतर परिणाम भी देखे गए हैं।
    • ऑनलाइन मोड की शिक्षा में अध्ययन सामग्री के साथ परिवहन आदि पर खर्च किया गया  शुल्क काफी कम होता है। 
  • सुविधापूर्ण परिवेश: ऑनलाइन शिक्षण छात्रों को अपनी इच्छा के अनुरूप उपयुक्त स्थान या परिवेश  में पढ़ाई करने की अनुमति देता है।

ऑनलाइन शिक्षा की चुनौतियाँ और इससे संबंधित अन्य मुद्दे:  

  • एक स्वस्थ अध्ययन माहौल का अभाव: शिक्षा केवल कक्षाओं के संचालन तक ही सीमित नहीं है बल्कि इसका उद्देश्य बातचीत, विचारों को व्यापक बनाने और मुक्त विचार-विमर्श आदि को बढ़ावा देना है।
    • छात्र चुनौतीपूर्ण सामूहिक कार्यों और साथ मिलकर समस्याओं के समाधान के दौरान एक- दूसरे से अधिक सीखते हैं।
    • ऑनलाइन शिक्षा के दौरान सीखने योग्य बहुत सी महत्त्वपूर्ण चीजें छूट जाती हैं।
    • मोबाइल या लैपटॉप की स्क्रीन को लंबे समय तक देखते रहने वे अपने मस्तिष्क का उपयोग अधिक स्वतंत्रतापूर्वक नहीं कर पाते हैं और न ही पढ़ाई जा रहे विषयों पर सटीक प्रतिक्रिया दे पाते हैं।
  • प्रौद्योगिकी पहुँच का अभाव: यह अनिवार्य नहीं है कि हर छात्र जो स्कूल जाने का खर्च वहन कर सकता है, वह फोन, कंप्यूटर या यहाँ तक ​​कि ऑनलाइन कक्षाओं में भाग लेने के लिये एक गुणवत्तापूर्ण इंटरनेट कनेक्शन का भी खर्च उठा सकता है।
    • इसके कारण छात्रों को मानसिक तनाव से गुज़रना पड़ता है और हाल में ऐसे मामलों में काफी वृद्धि देखी गई है।
  • शिक्षा के अधिकार के साथ विरोधाभास: प्रौद्योगिकी सभी के लिये वहनीय नहीं होती है, ऐसे में पूरी तरह से ऑनलाइन शिक्षा की ओर स्थानांतरित होना, उन लोगों के शिक्षा के अधिकार को छीनने जैसा है जिनके पास उपयुक्त तकनीकी साधन नहीं हैं या जो इस लागत को वहन नहीं कर सकते हैं।
    • अतः इस दृष्टिकोण से देखा जाए तो शिक्षा के डिजिटलीकरण की बात करने वाली राष्ट्रीय शिक्षा नीति भी शिक्षा के अधिकार के विपरीत प्रतीत होती है।
  • स्वास्थ्य संबंधी मुद्दे:  युवा छात्रों (विशेष रूप से कक्षा 1 से 3) को लंबी अवधि तक कंप्यूटर या मोबाइल स्क्रीन को घूरने के कारण आँखों की समस्याओं का सामना करना पड़ सकता है।
    • इसके अतिरिक्त छात्रों के बैठने की गलत मुद्रा या शारीरिक गतिविधियों की कमी के कारण  उनमें गर्दन और पीठ में दर्द के साथ कई अन्य स्वास्थ्य संबंधी समस्याओं के मामले देखे गए हैं।

आगे की राह:  

  • बहु-पक्षीय दृष्टिकोण:   
    • चरणबद्ध तरीके से वैकल्पिक दिनों में एक कक्षा के कुछ छात्रों (50% से अधिक नहीं) को स्कूल आने की अनुमति देकर छात्र-शिक्षक चर्चा को बढ़ावा देना।
    • वंचित वर्ग और कम सुविधा वाले ऐसे छात्रों को प्राथमिकता देना, जिन तक ई-लर्निंग के लिये आवश्यक संसाधनों की पहुँच नहीं है या वे इसका खर्च वहन नहीं कर सकते हैं।
    • प्रत्येक बच्चे के लिये मौलिक अधिकार के रूप में समान रूप से अच्छी गुणवत्तापूर्ण शिक्षा की उपलब्धता सुनिश्चित करने हेतु वास्तविक प्रयासों को बढ़ावा दिया जाना चाहिये।
  • ऑनलाइन शिक्षा को अधिक प्रभावी बनाना: लंबे, एकतरफा और नीरस संवाद की बजाय छोटे परंतु गुणवत्तापूर्ण विचार-विमर्श को प्राथमिकता दी जानी चाहिये।
    • शिक्षक की भूमिका कक्षा को नियंत्रित करने तक सीमित न रखते हुए ज्ञान के हस्तांतरण की सुविधा प्रदान करने वाले एक मार्गदर्शक के रूप में विस्तारित की जानी चाहिये। 
  • रचनात्मकता विकास पर ध्यान केंद्रित करना: शिक्षा किसी छात्र द्वारा एक पाठ्यक्रम विशेष में अपनी क्षमता का प्रदर्शन करने तक सीमित नहीं है बल्कि इसका उद्देश्य छात्र को आवश्यक ज्ञानार्जन के साथ अपनी रचनात्मक क्षमता को बढ़ाने का अवसर प्रदान करना है। 
    • ऐसे में शिक्षण प्रणाली के तहत गुणवत्तापूर्ण ज्ञानार्जन की परवाह किये बिना छात्रों और शिक्षकों पर केवल पाठ्यक्रम को पूरा करने का दबाव नहीं बनाया जाना चाहिये, बल्कि इसके तहत मात्रा की बजाय गुणवत्ता पर विशेष ज़ोर दिया जाना चाहिये। 

निष्कर्ष:  

‘अवसर की समानता’ भारतीय संविधान के मूल सिद्धांतों में से एक है। समाज के सबसे ज़रूरतमंद लोगों के हितों की परवाह किये बगैर केवल एक वर्ग विशेष के लोगों के लाभ के लिये पूरी प्रणाली के स्थानांतरण का प्रयास संविधान के उक्त कथन की मूल धारणा को नष्ट कर देता है।  

इसके अतिरिक्त डिजिटल शिक्षा एक ऐसा क्षेत्र है जहाँ भारत को अभी अधिक सफलता नहीं प्राप्त हुई है। वर्तमान में इस क्षेत्र में यह सुनिश्चित करने हेतु बहुत अधिक कार्य किया जाना है कि छात्रों के लिये सार्थक शैक्षिक पाठ्यक्रम विकल्प और उनके अधिकारों से  कोई समझौता न किया जा रहा हो।  

अभ्यास प्रश्न: डिजिटल शिक्षा की ओर स्थानांतरण ने इस बहस को जन्म दिया है कि इसने शिक्षा को अधिक समावेशी बनाया है या डिजिटल विभाजन को और गहरा किया है? चर्चा कीजिये।

close
एसएमएस अलर्ट
Share Page
images-2
images-2