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कावेरी जल प्रबंधन प्राधिकरण सुझाएगा कावेरी विवाद का हल

  • 06 Jul 2018
  • 5 min read

संदर्भ

  • हाल ही में कावेरी जल प्रबंधन प्राधिकरण (CWMA) की पहली बैठक एक सौहार्द्रपूर्ण माहौल में आयोजित की गई जो कि संबंधित राज्यों के बीच रचनात्मक सहयोग के चरणबद्ध विकास के लिये शुभ संकेत है। 
  • अपनी पहली बैठक में CWMA ने  कर्नाटक से जुलाई माह में 31.24 tmcft (हजार मिलियन घन फीट) जल छोड़ने को कहा।

पृष्ठभूमि

  • कावेरी जल विवाद ट्रिब्यूनल जिसे इस वर्ष की शुरुआत में सर्वोच्च न्यायालय द्वारा संशोधित किया गया था, इसके जल-साझाकरण निर्णय को लागू करने के लिये केंद्र द्वारा CWMA का गठन किया गया है।
  • अंतर-राज्यीय नदी जल विवाद अधिनियम, 1956 के प्रावधान यह स्पष्ट करते हैं कि प्राधिकरण के निर्णय को लागू करने हेतु एक योजना को अधिसूचित करना केंद्र का कर्त्तव्य है।

महत्त्वपूर्ण बिंदु

  • जल की यह मात्रा ट्रिब्यूनल द्वारा तैयार मासिक अनुसूची पर आधारित है और जून  माह में तमिलनाडु के पक्ष में प्राप्त अधिशेष को शामिल नहीं करती है।
  • प्राधिकरण को अपनी भूमिका का सफलतापूर्वक निर्वहन करने के लिये वर्षा, अंतर्वाह और बहिर्वाह, फसल प्रारूप तथा जलाशयों से आवधिक निकासी से संबंधित आँकड़े एकत्र करने में राज्यों के सहयोग की आवश्यकता है।
  • मानसून के महीनों के दौरान CWMA द्वारा प्रत्येक 10 दिनों पर एक बार बैठक आयोजित की जाएगी।
  • दक्षिण-पश्चिम मानसून लगभग एक महीने पहले सक्रिय हो चुका है और इस वर्ष इसके सामान्य रहने का अनुमान है। इसलिये CWMA को तमिलनाडु के लिये छोड़े जाने वाले जल का निरीक्षण करने में किसी भी बड़ी समस्या का सामना नहीं करना होगा।

कावेरी जल प्रबंधन प्राधिकरण के समक्ष चुनौतियाँ एवं समाधान

  • जब तक कर्नाटक के प्रमुख जलाशयों में पर्याप्त जल प्रवाह बना रहता है, तब तक बेसिन के निचले तटवर्ती क्षेत्रों में इसके अधिशेष पानी को छोड़े जाने में कोई समस्या नहीं होती है। CWMA को केवल संकटग्रस्त वर्षों में चुनौती का सामना करना पड़ेगा, क्योंकि जल संकट की सीमा निर्धारित करने और जल की कमी के आनुपातिक आधार पर राज्यों के बीच जल को विभाजित करना अत्यंत कठिन कार्य हो सकता है।
  • कर्नाटक सर्वोच्च न्यायालय में प्राधिकरण के गठन के संदर्भ में केंद्र की अधिसूचना को चुनौती देने की योजना बना रहा है। यदि यह विवाद पुनः अदालती कार्यवाहियों में उलझता है तो यह अत्यंत दुर्भाग्यपूर्ण होगा।
  • बाद में आगे चलकर  सुप्रीम कोर्ट ने न्यायालय द्वारा संशोधित निर्णय के कथन और निर्देशों के अनुसार तथा अंतर-राज्यीय नदी जल विवाद अधिनियम, 1956 की धारा 6ए के अनुरूप होने के बाद ही ड्राफ्ट योजना को मंज़ूरी दी।

आगे की राह

  • संसद के पास इस योजना को संशोधित करने  या यह जिस रूप में जारी है वैसे ही रहने देने की शक्ति है, लेकिन कर्नाटक का दावा संदिग्ध है कि इस योजना को लागू होने से पहले संसदीय मंज़ूरी की आवश्यकता है।
  • अब जब CWMA कार्यात्मक हो गया है, कर्नाटक, तमिलनाडु, केरल और पुद्दुच्चेरी को सहयोग की भावना से अंतर-राज्यीय नदी के जल को साझा करने के मुद्दे पर आपस में  संपर्क करना चाहिये और फैसले को लागू करने में प्राधिकरण की मदद करनी चाहिये।
  • पुराने मुद्दों पर चर्चा के बाद जल उपलब्धता और यदि कोई संकट हो तो उसे साझा करने के मुद्दे पर पेशेवर निर्णय लेने के लिये अब एक गैर-राजनीतिक तंत्र उपलब्ध है।
  • संबंधित पक्षों को मुकदमेबाज़ी छोड़कर कावेरी जल प्रबंधन प्राधिकरण के साथ सहयोग करना चाहिये।

निष्कर्ष: इतने लंबे समय तक कानूनी विवाद में फँसे होने के बाद  संबंधित सभी पक्षों को परस्पर लाभकारी जल-साझाकरण के एक नए युग की शुरुआत करनी चाहिये। किंतु प्राधिकरण के निर्णय से सभी पक्ष कहाँ तक संतुष्ट होते हैं यह अभी भी स्पष्ट नहीं है।

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