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भारतीय अर्थव्यवस्था

उच्च विकास अर्थव्यवस्था के समक्ष पूंजी बाज़ार की चुनौतियाँ

  • 24 Sep 2018
  • 11 min read

संदर्भ

वर्ष 2022 में ब्रिटिश शासन से भारत की स्वतंत्रता के 75 साल पूरे हो जाएंगे। यदि मौजूदा विकास दर बरकरार रहती है तो उम्मीद है कि भारत तब तक दुनिया की चौथी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बन जाएगा। दरअसल, हमारी विकास दर बुनियादी ढाँचे के विकास पर निर्भर करती है, जिसके बदले में बैंकों को मज़बूत पूंजी बाज़ार की आवश्यकता होती है। नीति आयोग ने आर्थिक और सामाजिक क्षेत्र में विकास के लिये एक खाका तैयार किया है, जो इन लक्ष्यों को हासिल करने में मील का पत्थर साबित होगा।

बाज़ारों की दिशा को प्रभावित करने वाले कारक/चुनौतियाँ

    • वैश्विक वित्तीय संकट के बाद पूंजी बाज़ार के प्रतिभागी विकासशील विनियमन, परिचालन आवश्यकताओं की वृद्धि और नियामक लागत से जूझ रहे हैं। ऐसी संभावना जताई गई है कि अगले चार से पाँच वर्षों में, बाज़ारों की दिशा मुख्य रूप से निम्नलिखित कारकों पर निर्भर करेगी -
    • मौजूदा पूंजी बाज़ार में प्रतिभागियों के व्यावसायिक मॉडल के लिये समेकन समेत संरचनात्मक परिवर्तन।
    • यथास्थिति को चुनौती देने वाले गैर-परंपरागत प्रतिभागी।
    • प्रतिभागियों को नवाचार सहित प्रमुख डेटा के व्यापक उपयोग, कृत्रिम बुद्धिमत्ता (एआई) और मशीनी कार्य सीखने तथा लागत को कम करने और प्रतिस्पर्द्धी लाभ के सृजन की तलाश होगी।
    • प्रसंस्करण और वितरित खाता तथा ब्लॉकचेन प्रौद्योगिकी का उपयोग।
    • पूंजी के पूल तेज़ी से उपभोक्ताओं तक पहुँचने की तलाश में हैं, जिससे लागत कम हो रही है और समग्र तरलता में वृद्धि हो रही है। क्राउड सोर्सिंग और सहकर्मी, अचल संपत्ति निवेश ट्रस्ट तथा बुनियादी ढाँचे के निवेश ट्रस्ट के माध्यम से गति प्राप्त कर रहे हैं।
    • निवेश प्रबंधन रोबो सलाह, स्मार्ट अनुबंध और इलेक्ट्रॉनिक व्यापार के माध्यम से उत्साहजनक परिणामों को प्राप्त कर रहे हैं। उल्लेखनीय है कि रोबो सलाहकार वित्तीय सलाहकार की एक श्रेणी है जो मध्यम से न्यूनतम मानव हस्तक्षेप के साथ ऑनलाइन वित्तीय सलाह या निवेश प्रबंधन प्रदान करता है।
    • दिवाला और दिवालियापन संहिता (आईबीसी) के तहत दायर आवेदनों का सफल समाधान।
द इन्सॉल्वेंसी एंड बैंकरप्सी कोड 2016’
  • पिछले ही वर्ष केंद्र सरकार ने आर्थिक सुधारों की दिशा में कदम उठाते हुए एक नया दिवालियापन संहिता संबंधी विधेयक पारित किया था।
  • गौरतलब है कि यह नया कानून 1909 के 'प्रेसीडेंसी टाउन इन्सॉल्वेंसी एक्ट’ और 'प्रोवेंशियल इन्सॉल्वेंसी एक्ट 1920 को रद्द करता है और कंपनी एक्ट, लिमिटेड लाइबिलिटी पार्टनरशिप एक्ट और 'सेक्यूटाईजेशन एक्ट' समेत कई कानूनों में संशोधन करता है।
  • दरअसल, कंपनी या साझेदारी फर्म व्यवसाय में नुकसान के चलते कभी भी दिवालिया हो सकते हैं।
  • यदि कोई आर्थिक इकाई दिवालिया होती है तो इसका मतलब यह है कि वह अपने संसाधनों के आधार पर अपने ऋणों को चुका पाने में असमर्थ है।
  • ऐसी स्थिति में कानून में स्पष्टता न होने पर ऋणदाताओं को भी नुकसान होता है और स्वयं उस व्यक्ति या फर्म को भी तरह-तरह की मानसिक एवं अन्य प्रताडऩाओं से गुज़रना पड़ता है।
  •  देश में अभी तक दिवालियापन से संबंधित कम से कम 12 कानून थे जिनमें से कुछ तो 100 साल से भी ज़्यादा पुराने हैं।

संभावित उपाय

  • नियामकों को इन चुनौतियों का जवाब देना होगा, साथ ही सुविधा प्रदाता की भूमिका के रूप में नियामकों को बाज़ार के विकास के लिये संभावित क्षेत्रों के अवलोकन और उन्हें पहचानने के लिये अपने कदम आगे बढ़ाने होंगे।
  • इस संदर्भ में भारतीय रिज़र्व बैंक द्वारा स्थापित एक अंतर-नियामक कार्यकारी समूह ने सिफारिश की है कि परिभाषित क्षेत्र और निर्धारित अवधि के भीतर विनियामक सैंडबॉक्स/नवाचार केंद्र के लिये एक उपयुक्त ढाँचा विकसित करना होगा, जो वित्तीय क्षेत्र के नियामकों को आवश्यक विनियामक समर्थन प्रदान करेंगा।
  • इसकी सहायता से भारतीय नियामक अधिकारियों के समान उपभोक्ताओं के लिये दक्षता में वृद्धि, जोखिमों का प्रबंधन और नए अवसर सृजित किये जा सकेंगे।
  • गौरतलब है कि बाज़ार के विकास के लिये इस तरह के एक ढाँचे का निर्माण महत्त्वपूर्ण होगा।
  • इसके अलावा, नियामक को अपना ध्यान निश्चित आय वाले बाज़ारों के गहन विकास पर केंद्रित करने की भी आवश्यकता होगी।
  • उल्लेखनीय है कि सेबी ने बड़े उधारकर्त्ताओं को उनके बढ़ते उधार के 25% स्रोत को बॉन्ड मार्केट से लेना अनिवार्य किये जाने का प्रस्ताव किया था।
  • यह डिबेंचर रिडेम्प्शन रिज़र्व और तरल निधि को बनाए रखने हेतु आवश्यक संरचनात्मक मुद्दों के कारण कार्यान्वयन में नियामकीय चुनौतियों का सामना कर सकता है।
  • साथ ही कई भारतीय उधारकर्त्ता अपराधी अब आईबीसी के दायरे में हैं और बाज़ार के लिये इसके बहुत दूरगामी परिणाम हो सकते हैं।

नियमों को प्रभावित करने वाले घटनाक्रम

  • नियमों को प्रभावित करने वाले दो घटनाक्रम - उत्पाद उपयुक्तता और डेटा की गोपनीयता है।
  • उत्पाद उपयुक्तता में एक संपूर्ण ढाँचे की आवश्यकता होती है जिसके लिये उत्पादों को उनके अंतर्निहित जोखिम के अनुसार ग्रेडिंग की आवश्यकता होती है और ग्राहकों को उनकी जोखिम लेने की क्षमता के आधार पर वर्गीकृत करने की आवश्यकता होती है।
  • उल्लेखनीय है कि पारंपरिक प्रतिभागी और फिनटेक इकाइयाँ प्रौद्योगिकी पर काफी हद तक निर्भर हैं। ये संस्थाएँ विभिन्न व्यक्तिगत और संवेदनशील जानकारियों को एकत्रित करती हैं और ऐसे डेटा के मालिक/संरक्षक बन जाती हैं।

सेबी द्वारा उठाए गये कदम

  • सेबी डेटा गोपनीयता की आवश्यकताओं से संबंधित पहलुओं की जाँच और पूंजी बाज़ारों में नई प्रौद्योगिकियों के उपयोग को प्रोत्साहित करने के लिये आवश्यक पारिस्थितिकी तंत्र की सुविधा प्रदान करने हेतु प्रतिबद्ध है।
  • साइबर सुरक्षा पर भी उन नियामकों को ध्यान रखना होगा, जो नए विनियमन, लेखा परीक्षा और भेद्यता आकलन के रूप में अवसरों और खतरों दोनों के लिये उत्तरदायी होंगे।
  • उपर्युक्त कार्य हेतु उन्हें बाज़ार आधारभूत संरचना संस्थानों (एमआईआई) की भी आवश्यकता होगी और साइबर आक्रमण की स्थिति में इनके समय पर संचालन के लिये व्यावसायिक योजनाओं की निरंतरता को बनाए रखा जा सकेगा।
  • सेबी एमआईआई की पूर्ण साइबर सुरक्षा समीक्षा की योजना बना रही है जिसमें सभी साइबर सुरक्षा परामर्श सहित खतरे के वैक्टरों की पूरी सूची शामिल है।
  • इसके अलावा, साइबर सुरक्षा क्षमता को साइबर सुरक्षा की तैयारी और एमआईआई के लचीलेपन का आकलन करने के लिये विकसित किया जा रहा है।
  • दूसरी प्रमुख चुनौती लागत दबाव और नवाचार आकर्षक बाज़ार के प्रतिभागियों द्वारा आउटसोर्सिंग व्यवस्था का अधिकतम उपयोग करने की है। नियामकों को विशेष रूप से सीमापार आउटसोर्सिंग के सहायक जोखिमों से निपटना होगा।
  • नियामक भी अपने ज्ञान को बढ़ाने के साथ ही निवेशक संरक्षण तथा निवेशक शिक्षा पर निरंतर ध्यान दे रहे हैं जिसमें कॉर्पोरेट शासन और उन्नत प्रस्तुतीकरण उनके प्रयासों में मदद करेगा।
  • इसके अलावा उन्हें एआई आधारित एक व्यापक निगरानी प्रणाली विकसित करनी होगी।
  • नियामकों ने सार्वजनिक मुद्दों के माध्यम से धन उगाहने के लिये समय में कमी लाने हेतु प्रौद्योगिकी चालकों और नए उत्पादों का उपयोग करना शुरू कर दिया है। वे सूचीबद्ध कंपनियों और बाज़ार मध्यस्थों के लिये आवश्यक ज़ुर्माने को भी कठोर बना रहे हैं।
  • इसके साथ ही बाज़ार मध्यस्थों के निरीक्षण के लिये साइट पर आने की बजाय अधिकांशतः ऑफसाइट डेटा का गहन विश्लेषण होगा।
  • इन्हें बढ़ती रिपोर्टिंग आवश्यकताओं, समृद्ध डेटा फ़ीड्स और एक्सचेंजों तथा जमाकर्त्ताओं के डेटा प्रवाह के पर्यवेक्षण के लिये एक एकीकृत दृष्टिकोण के साथ जोड़ा जाएगा।

निष्कर्ष

उद्यम स्तर पर जोखिम और विनियमन को एकीकृत करना एक महत्त्वपूर्ण चुनौती है और पूंजी बाज़ारों तथा उसके प्रतिभागियों की सफलता भी इसी पर निर्भर करेगी। इसलिये आवश्यकता है कि जैसे-जैसे बाज़ार गहन और विकसित हो रहे हैं, नियामक निरीक्षण और पर्यवेक्षण को भी साथ-साथ विकसित होना चाहिये। अतः इसके लिये भारतीय पूंजी बाज़ार को एक उत्प्रेरक के रूप में कार्य करने के लिये महत्त्वपूर्ण भूमिका निभानी होगी।

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