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लंबे अंतराल के बाद पिसा में पुनः भाग लेगा भारत

  • 11 Sep 2018
  • 9 min read

संदर्भ

हाल ही में मानव संसाधन विकास (एचआरडी) मंत्रालय ने लगभग 10 वर्षों के अंतराल के बाद, छात्र क्षमता के अंतर्राष्ट्रीय मूल्यांकन ‘पिसा’ (PISA) में भाग लेने का निर्णय लिया है।

उत्पत्ति और उद्देश्य

  • अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर छात्र मूल्यांकन के लिये कार्यक्रम (Program for International Student Assessment– PISA) को पहली बार वर्ष 2000 में प्रबंधित किया गया था। 
  • आर्थिक सहयोग और विकास संगठन (OECD) द्वारा समन्वित यह एक त्रैवार्षिक अंतर्राष्ट्रीय सर्वेक्षण है जिसमें विज्ञान, गणित और पठन संबंधी छात्रों के मूल्यांकन के द्वारा दुनिया भर में शैक्षिक प्रणाली की गुणवत्ता का आकलन किया जाता है ।
  • दो घंटे का कंप्यूटर-आधारित परीक्षण उन 15 वर्षीय छात्रों पर केंद्रित है जो कि अधिकांश देशों में या तो अपनी अनिवार्य शिक्षा को पूरा कर चुके हैं या पूरा करने के करीब हैं। 
  • PISA के लिये परीक्षार्थियों को कम-से-कम छह साल की औपचारिक स्कूली शिक्षा पूरी करनी आवश्यक होती है। वर्ष 2015 में 72 देशों के लगभग 5.5 लाख छात्रों ने इस परीक्षण में भाग लिया।
  • वर्षों से प्राप्त होने वाले PISA के परिणामों ने कई देशों में शैक्षिक प्रथाओं को प्रभावित करना शुरू कर दिया है। हालाँकि, कई गैर-ओईसीडी सदस्य इस परीक्षण से दूरी बनाए हुए हैं। 
  • सभी सार्क राष्ट्र, ग्रीनलैंड, अर्जेंटीना तथा अल्जीरिया और ट्यूनीशिया को छोड़कर पूरे अफ्रीकी महाद्वीप के देश, ऐसे हैं जो नियमित रूप से PISA में भाग नहीं लेते हैं या जिन्होंने भाग नहीं लिया।

पिसा में भारत

  • अब तक भारत ने PISA में केवल एक बार ही भाग लिया है। भारत ने 2009 के परीक्षण के "विस्तारित चक्र" में अपनी शुरुआत की, जिसमें हिमाचल प्रदेश और तमिलनाडु के 400 स्कूलों के 16,000 छात्रों ने भाग लिया। 
  • चीन ने भी इसमें वर्ष 2009 में पहली बार भाग लिया तथा शंघाई के स्कूलों ने गणित और विज्ञान के क्षेत्र में रैंकिंग में शीर्ष स्थान प्राप्त किया, जबकि भारत को भाग लेने वाले 74 देशों में 72वें स्थान पर रखा गया। 
  • तत्कालीन यूपीए सरकार ने इसमें खराब प्रदर्शन के लिये "संदर्भ से बाहर" के प्रश्नों को दोषी ठहराया और इसके 2012 तथा 2015 के चक्रों में भाग नहीं लेने का फैसला किया।
  • एनडीए सरकार के तहत मानव संसाधन विकास मंत्रालय ने पहली बार 2016 में इस फैसले का पुनरीक्षण किया। सरकार के आदेश पर केंद्रीय विद्यालय संगठन द्वारा दिसंबर 2016 में एक रिपोर्ट प्रस्तुत की गई और मामले की समीक्षा करने के लिये एक समिति की स्थापना की गई तथा अनुशंसा की गई कि देश 2018 के परीक्षण चक्र में भाग ले। 
  • प्रधानमंत्री द्वारा गठित शिक्षा पर सचिवों के समूह द्वारा वर्ष 2017 में भी इसी तरह की सिफारिश की गई थी। 
  • हाल ही में मानव संसाधन विकास मंत्रालय ने औपचारिक रूप से PISA 2021 के चक्र में भाग लेने के फैसले को मंज़ूरी दे दी थी। सरकार ओईसीडी से 2021 में चंडीगढ़ के सभी स्कूलों में परीक्षण का प्रबंधन करने का अनुरोध करेगी।

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पिसा परीक्षण 

  • PISA एक योग्यता-आधारित परीक्षण है जो 15 वर्षीय उम्मीदवारों को वास्तविक जीवन स्थितियों में अपने ज्ञान का उपयोग करने की क्षमता का आकलन करने के लिये डिज़ाइन किया गया है। 
  • भारत में अधिकांश स्कूली परीक्षाओं के विपरीत, यह छात्र की स्मृति और पाठ्यचर्या आधारित ज्ञान का परीक्षण नहीं करता है। उदाहरण के लिये, PISA का विज्ञान परीक्षण तीन दक्षताओं को मापता है - वैज्ञानिक घटनाओं को समझाने की क्षमता, डेटा एवं सबूत की वैज्ञानिक व्याख्या तथा वैज्ञानिक जिज्ञासाओं को डिज़ाइन और मूल्यांकन करने की क्षमता। 
  • इसी तरह पढ़ना आमतौर पर सूचनाओं के मूल डिकोडिंग या ज़ोर से पढ़ने के रूप में समझा जाता है, जबकि PISA इसे कई स्थितियों में लिखित जानकारी को समझने, उपयोग करने और प्रतिबिंबित करने की किसी व्यक्ति की क्षमता के रूप में परिभाषित करता है।
  • पिछले कुछ वर्षों में एशियाई शिक्षा प्रणाली ने इसकी ऊपरी रैंकिंग में स्थान बनाया है। PISA 2015 के परिणामों में गणित के लिये शीर्ष सात स्थानों पर सभी एशियाई देशों का कब्ज़ा था। इसमें सिंगापुर के बाद हॉन्गकॉन्ग, मकाओ, ताइवान, जापान, चीन और दक्षिण कोरिया शामिल थे। 
  • फिनलैंड, एस्टोनिया, कनाडा और आयरलैंड ही PISA द्वारा परीक्षण किये गए तीनों में से किसी भी कौशल- पढ़ने, गणित और विज्ञान की शीर्ष पाँच रैंकिंग में शामिल होने वाले गैर-एशियाई राष्ट्र हैं। 
  • अमेरिका PISA की किसी भी विषय श्रेणी में शीर्ष 10 में कभी नहीं रहा। वर्ष 2015 के परीक्षण में अमेरिकी छात्रों ने गणित में 40वाँ, विज्ञान में 25वाँ और पढ़ने में 24वाँ स्थान प्राप्त किया। दूसरी तरफ, ब्रिटेन  विज्ञान में 15वें,  पढ़ने में 21वें और गणित में 27वें स्थान पर रहा।

आलोचना

  • PISA के नतीजों ने भाग लेने वाले देशों में शिक्षा नीतियों को प्रभावित करना शुरू कर दिया है, शिक्षाविदों ने ऐसी रैंकिंग के प्रभाव पर चिंता व्यक्त की है। आलोचकों का मानना है कि PISA ने मानक परीक्षण के साथ एक स्थिर विचार में योगदान दिया है जो मात्रात्मक उपायों पर अत्यधिक निर्भर करता है। 
  • अमेरिका के 'रेस टू द टॉप' कार्यक्रम को अक्सर इस संदर्भ में एक उदाहरण के रूप में उद्धृत किया जाता है क्योंकि यह छात्रों, शिक्षकों और प्रशासकों का मूल्यांकन करने के लिये मानकीकृत परीक्षण का उपयोग करता है। 
  • इस त्रैवार्षिक सर्वेक्षण की भी कामचलाऊ उपायों को रोकने हेतु दीर्घकालिक और स्थायी समाधानों से ध्यान हटाने के लिये आलोचना की गई है। बाद में आलोचकों ने दावा किया कि देशों द्वारा अपनी रैंकिंग में सुधार के लिये इसे तेज़ी से अपनाया जा रहा है। 
  • ओईसीडी ने इस आलोचना के जवाब में कहा ऐसा कोई साक्ष्य नहीं है कि PISA या किसी अन्य शैक्षिक तुलना ने अल्पकालिक सुधारों में बदलाव किया है। वास्तव में, ओईसीडी के मुताबिक, PISA ने नीति निर्माताओं और हितधारकों के लिये सीमा पार सहयोग किये जाने के अवसर पैदा किये हैं।

निष्कर्ष

पिसा में भाग लेने से भारत को अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर अपने छात्रों की शैक्षणिक क्षमता का पता चलेगा जिससे अपनी शिक्षा नीति को बेहतर बनाने में मदद मिलेगी साथ ही आधुनिक वैज्ञानिक युग में देश को अन्य देशों के साथ मुकाबला करने के लिये नवाचारी कार्यक्रमों के संचालन की प्रेरणा मिलेगी। एशियाई देशों का पिसा रैंकिंग में हमेशा से वर्चस्व रहा है, अतः भले ही भारत का प्रदर्शन 2009 में संतोषजनक न रहा हो लेकिन भविष्य में भारत से बेहतर प्रदर्शन की आशा की जा सकती है।

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