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आर्कटिक क्षेत्र में आग की घटनाओं का बदलता स्वरूप

  • 01 Oct 2020
  • 6 min read

प्रिलिम्स के लिये

टुंड्रा, ज़ॉम्बी फायर, आर्कटिक वृत्त, आर्कटिक पर्माफ्रॉस्ट

मेन्स के लिये

आर्कटिक क्षेत्र में आग की घटनाओं का स्वरूप और इसका प्रभाव

चर्चा में क्यों?

एक हालिया अध्ययन के अनुसार, आर्कटिक में आग की घटनाओं के पैटर्न और स्वरूप में तेज़ी से बदलाव आ रहा है और जमे हुए टुंड्रा (Tundra) में लगने वाली आग की घटनाओं के साथ-साथ ‘ज़ॉम्बी फायर’ (Zombie Fire) की घटनाओं में बढ़ोतरी देखने को मिल रही है।

प्रमुख बिंदु

बदले हुए स्वरूप की विशेषताएँ

  • ज़ॉम्बी फायर की घटनाओं में बढ़ोतरी: प्रायः ‘ज़ॉम्बी फायर’ की शुरुआत बर्फ के नीचे होती है। असल में ‘ज़ॉम्बी फायर’ आग की किसी पिछली घटना का ही हिस्सा होती है जो कि बर्फ के नीचे कार्बन युक्त पीट (Peat) से बनी भूमि पर सक्रिय रहती है।
    • जब उस क्षेत्र में मौसम गर्म होता है, तो वह आग पुनः विकराल रूप ले लेती है।
    • पीट, भू-सतह पर एक प्रकार की कार्बनिक परत होती है जिसमें अधिकांशतः पेड़ पौधों आदि से प्राप्त आंशिक रूप से विघटित कार्बनिक पदार्थ होते हैं।
  • विशेषज्ञों के अनुसार, इससे भी अधिक चिंता का विषय यह है कि अब आग की घटनाएँ आर्कटिक के उन क्षेत्रों में भी फैल रही है, जहाँ पहले आग लगने की संभावना अपेक्षाकृत कम थी, जैसे टुंड्रा पारिस्थितिक तंत्र आदि।
    • टुंड्रा पारिस्थितिक तंत्र आर्कटिक में और पहाड़ों की चोटी पर पाए जाने वाला वह क्षेत्र होता है, जहाँ वृक्ष नहीं पाए जाते हैं, प्रायः यहाँ की जलवायु ठंडी होती है और यहाँ वर्षा भी बहुत कम होती है।
  • आँकड़ों के अनुसार, वर्ष 2019 और वर्ष 2020 में आर्कटिक वृत्त (Arctic Circle) के ऊपर की ओर भी आग का विस्तार हुआ था, जबकि इस क्षेत्र को आमतौर पर वनाग्नि के प्रति अनुकूल नहीं माना जाता है। 

कारण: 

  • आर्कटिक में आग की घटनाओं के पैटर्न और स्वरूप में तेज़ी से बदलाव का कारण है कि वर्ष 2019-20 के दौरान इस क्षेत्र में सर्दियों और वसंत के मौसम में तापमान सामान्य से अधिक गर्म रहा था।
    • ध्यातव्य है कि वर्ष 2020 में साइबेरिया में तापमान में काफी तेज़ी से बढ़ोतरी देखने को मिली है, साथ ही इस क्षेत्र में एक गंभीर ग्रीष्म लहर (Heat Waves) भी दर्ज की गई है।

प्रभाव:

  • लगातार बढ़ती आग की घटनाओं और तापमान में हो रही वृद्धि के कारण आर्कटिक क्षेत्र कार्बन के प्रमुख स्रोत के रूप में बदल सकता है, जिससे वैश्विक तापमान में बढ़ोतरी हो सकती है।
    • ध्यातव्य है कि आर्कटिक क्षेत्र में मौजूदा जल निकाय प्राकृतिक तौर पर कार्बन सिंक (Carbon Sink) के रूप में कार्य करते हैं, और ये प्रति वर्ष औसतन 58 मेगा टन कार्बन डाइऑक्साइड (CO2) को अवशोषित करते हैं। 
    • तापमान में बढ़ोतरी के साथ पानी में कार्बन का अवशोषित होना भी कम हो जाएगा।
  • जैसे-जैसे पीटलैंड में आग लगने से कार्बन का उत्सर्जन होगा और ग्लोबल वार्मिंग में बढ़ोतरी होगी, वैसे ही अधिक-से-अधिक पीट का निर्माण होगा और इस प्रकार वनाग्नि की घटनाओं में और अधिक बढ़ोतरी होगी।
    • पीटलैंड वह आर्द्रभूमि होती है जहाँ पूर्ण और आंशिक रूप से विघटित कार्बनिक पदार्थ होते हैं।
  • इसके अलावा आर्कटिक में लगने वाली आग वैश्विक जलवायु को लंबे समय तक प्रभावित करेगी, इस क्षेत्र में आग के कारण उत्सर्जित कार्बन लंबे समय तक वातावरण में मौजूद रहता है।

आर्कटिक क्षेत्र

  • आर्कटिक क्षेत्र, उत्तरी ध्रुव के चारों ओर फैला एक भौगोलिक क्षेत्र है. जहाँ वर्ष भर मासिक औसत तापमान 10 डिग्री सेल्सियस से नीचे ही रहता है।
  • आर्कटिक में बर्फ के नीचे कार्बन और ग्रीनहाउस गैसों का विशाल भंडार मौजूद है, और यह क्षेत्र कार्बन सिंक के रूप में भी कार्य करता है।

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आर्कटिक पर्माफ्रॉस्ट क्या है?

  • पर्माफ्रॉस्ट (Permafrost) ऐसे स्थान को कहते हैं जो कम-से-कम लगातार दो वर्षों तक  कम तापमान पर होने के कारण जमा हुआ हो।
  • पर्माफ्रॉस्ट में मृदा, चट्टान और हिम एक साथ पाए जाते हैं। 
  • यह मुख्य तौर पर ध्रुवीय क्षेत्रों और ग्रीनलैंड, अलास्का, रूस, उत्तरी कनाडा और साइबेरिया के कुछ हिस्सों के ऊँचे पहाड़ों वाले क्षेत्रों में पाया जाता है।
  • वैश्विक तापमान में वृद्धि का पर्माफ्रॉस्ट पर काफी प्रतिकूल प्रभाव पड़ रहा है और पर्माफ्रॉस्ट पिघलना शुरू हो गए हैं। 

स्रोत: डाउन टू अर्थ

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