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जैव विविधता और पर्यावरण

पराली जलाने की घटनाओं में कमी

  • 16 Aug 2019
  • 6 min read

चर्चा में क्यों? 

भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद् (Indian Council Of Agricultural Research-ICAR) के अनुसार, वर्ष 2016 की तुलना में वर्ष 2018 में पराली जलाने की घटनाओं में 41% और वर्ष 2017 की तुलना में 15% की कमी हुई है। 

प्रमुख बिंदु  

  • वर्ष 2018 में हरियाणा और पंजाब के 4500 से अधिक गाँव पराली जलाने से मुक्त घोषित कर दिये गए हैं। इसका अर्थ है कि इस दौरान इन गाँवों में पराली जलाने की एक भी घटना नहीं हुई है। 
  • यह कमी कृषि में मशीनीकरण को प्रोत्साहन देने के साथ पंजाब,हरियाणा, उत्तर प्रदेश और राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली में पराली प्रबंधन संबंधी केंद्रीय योजना के क्रियान्वयन के कारण हुई है। 
  • वर्ष 2018-19 और 2019-20 में केंद्र सरकार ने वायु प्रदूषण को कम करने और फसल अवशेषों के स्व-स्थाने (In-situ) प्रबंधन हेतु सब्सिडी आधारित मशीनरी उपलब्ध करवाने के लिये केंद्रीय क्षेत्रक योजना शुरू की। यह योजना पंजाब, हरियाणा, उत्तर प्रदेश और दिल्ली में क्रियान्वयित की जा रही है। 
  • योजना लागू होने के एक वर्ष के भीतर ही 8 लाख हेक्टेयर क्षेत्र पर ही हैप्पी सीडर मशीन तथा  शुन्य जुताई तकनीक को अपनाया जा चुका है।
  •  ICAR कृषि विज्ञान केंद्रों (Krishi Vigyan Kendra-KVK) के माध्यम से इस योजना को लागू कर रहा है और साथ ही सूचना, शिक्षा एवं संचार (IEC) गतिविधियों के माध्यम से पराली जलाने से होने वाली हानियों के प्रति किसानों में जागरूकता पैदा की जा रही है
  • पराली जलाने से वायु प्रदूषण, मृदा निम्नीकरण, स्वास्थ्य से संबंधित समस्याएँ तथा यातायात में बाधा जैसी समस्याएँ उत्पन्न होती हैं। 

फसल अवशेषों के इन-सीटू प्रबंधन के लिये कृषि में यंत्रीकरण को बढ़ावा देने के लिये केंद्रीय  क्षेत्रक योजना

(Agricultural Mechanization for in-situ Management of Crop Residue)

  • इस योजना को वर्ष 2018 में शुरू किया गया।
  • केंद्रीय स्तर पर इस योजना का संचालन कृषि, सहकारिता और किसान कल्याण विभाग द्वारा किया जा रहा है।
  • इस योजना के लाभार्थियों की पहचान संबंधित राज्य सरकारों द्वारा ज़िला स्तरीय कार्यकारी समिति (DLEC) के माध्यम से की जाती है। इस योजना के तहत स्व-स्थाने फसल अवशेष प्रबंधन मशीनरी को किराये पर लेने के लिये कृषि यंत्र बैंकों की स्थापना की गई है।
  • योजना लागू होने के एक वर्ष के भीतर ही 8 लाख हेक्टेयर क्षेत्र पर ही हैप्पी सीडर मशीन तथा शून्य जुताई तकनीक को अपनाया गया।
  • इस योजना के तहत किसानों को स्व-स्थाने (In-situ) फसल अवशेष प्रबंधन हेतु मशीनों को खरीदने के लिये 50% वित्तीय सहायता प्रदान की जाती है और साथ ही स्व-स्थाने (In-situ) फसल अवशेष प्रबंधन हेतु मशीनरी के कस्टम हायरिंग केंद्रों (Custom Hiring Center) की स्थापना के लिये परियोजना लागत का 80% तक वित्तीय सहायता प्रदान की जाती है।

भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद

(Indian Council of Agricultural Research-ICAR)

  • भारत सरकार के कृषि मंत्रालय के अंतर्गत कृषि अनुसंधान एवं शिक्षा हेतु भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद एक स्वायत्तशासी संस्था (Autonomous Institute) है।
  • इसका मुख्यालय नई दिल्ली में है।
  • बागवानी, मात्स्यिकी और पशु विज्ञान सहित कृषि क्षेत्र में समन्वयन, मार्गदर्शन और अनुसंधान प्रबंधन एवं शिक्षा के लिये यह परिषद भारत का एक सर्वोच्च निकाय है।
  • पृष्ठभूमि- कृषि पर रॉयल कमीशन द्वारा प्रस्तुत रिपोर्ट का अनुसरण करते हुए सोसाइटी रजिस्ट्रीकरण अधिनियम, 1860 के तहत इसका पंजीकरण किया गया था जबकि 16 जुलाई, 1929 को इसकी स्थापना की गई।
  • पहले इसका नाम इंपीरियल काउंसिल ऑफ एग्रीकल्चरल रिसर्च (Imperial Council of Agricultural Research) था।

हैप्पी सीडर (Turbo Happy Seeder-THS)

  • हैप्पी सीडर (Turbo Happy Seeder-THS) ट्रैक्टर के साथ लगाई जाने वाली एक प्रकार की मशीन होती है जो फसल के अवशेषों को उनकी जड़ समेत उखाड़ फेंकती है। 

स्रोत: pib

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