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सामाजिक न्याय

विश्व में भूख की समस्या में लगातार तीसरे वर्ष बढ़ोतरी

  • 12 Sep 2018
  • 4 min read

चर्चा में क्यों?

हाल ही में संयुक्त राष्ट्र ने चेतावनी दी कि 2030 तक भूख की समस्या को खत्म करने के वैश्विक लक्ष्य को बाधित करते हुए संघर्षों एवं जलवायु परिवर्तन के परिणामस्वरूप लगातार तीसरे वर्ष 2017 में वैश्विक भूख की समस्या में वृद्धि हुई।

प्रमुख बिंदु

  • खाद्य सुरक्षा और पोषण स्थिति की विश्व 2018 रिपोर्ट के अनुसार, लगभग पूरे अफ्रीका और दक्षिण अमेरिका में भूख की समस्या बढ़ रही है तथा 2017 में नौ में से एक व्यक्ति या 821 मिलियन लोग भूख से ग्रसित रहे।
  • इस बीच, 2014 के 600 मिलियन की तुलना में मौजूदा समय में 672 मिलियन या आठ में से एक से भी अधिक वयस्क मोटापे से ग्रस्त हैं। सदस्य राष्ट्रों द्वारा वर्ष 2015 में अपनाए गए संयुक्त राष्ट्र सतत् विकास लक्ष्यों के संदर्भ में रिपोर्ट में कहा गया है कि "और अधिक प्रयास किये बिना, 2030 तक भूख उन्मूलन के एसडीजी लक्ष्य को प्राप्त करना अत्यंत मुश्किल है।"
  • यह लगातार तीसरा वर्ष था जब एक दशक तक गिरावट के बाद वैश्विक भूख के स्तर में वृद्धि हुई है। तापमान में बढ़ती विविधता; तीव्र, अनियमित वर्षा और बदलते मौसम आदि ने खाद्य की उपलब्धता और गुणवत्ता को प्रभावित किया है।
  • संयुक्त राष्ट्र ने कहा कि पिछले वर्ष 51 देशों में लगभग 124 मिलियन लोगों ने संघर्ष और जलवायु आपदाओं से प्रेरित भूख के संकट के स्तर का सामना किया था। रिपोर्ट में कहा गया है कि यमन, सोमालिया, दक्षिण सूडान और अफगानिस्तान जैसे कई राष्ट्र जो लंबे समय से संघर्षों से जूझ रहे हैं, सूखे और बाढ़ जैसे एक या अधिक जलवायु खतरों से भी पीड़ित हैं।
  • हाल ही में चैरिटी सेव द चिल्ड्रेन ने चेतावनी दी कि युद्ध प्रभावित क्षेत्रों में वित्तपोषण कम होने और युद्धरत दलों द्वारा खाद्य आपूर्ति रोके जाने से 600,000 बच्चे इस वर्ष के अंत तक चरम भूख की वज़ह से मर सकते हैं।
  • संयुक्त राष्ट्र ने कहा कि दक्षिण अमेरिका में भूख की बदतर स्थिति, क्षेत्र की मुख्य निर्यातक वस्तुओं - विशेष रूप से कच्चे तेल की कम कीमतों के कारण हो सकती है। संयुक्त राष्ट्र ने कहा है कि खाद्य पदार्थों की कमी के कारण अनुमानतः 2.3 मिलियन लोगों ने जून माह में वेनेज़ुएला छोड दिया था।
  • रिपोर्ट में कहा गया है कि भोजन की अनिश्चित या अपर्याप्त उपलब्धता मोटापे में भी योगदान देती है क्योंकि सीमित वित्तीय संसाधन वाले लोग सस्ते, ऊर्जा-सघन प्रसंस्कृत खाद्य पदार्थों का चयन कर सकते हैं जिसमें वसा, नमक और चीनी की उच्च मात्रा शामिल होती है।
  • भोजन की अनुपलब्धता से मनोवैज्ञानिक और उपापचयी परिवर्तन भी हो सकते हैं। भ्रूणावस्था और प्रारंभिक बाल्यावस्था में भोजन की अनुपलब्धता जीवन में आगे चलकर मोटापे को आमंत्रित करता है।
  • भूख की समस्या का हल गरीबी को समाप्त करने से हो सकता है तथा इसके लिये परिवर्तनकारी निवेश की अत्यंत आवश्यकता है। कुछ बड़े एवं विकसित देश इस दिशा में मानवीय सहायता के रूप में बेहतर कार्य कर रहे हैं लेकिन ये प्रयास समस्या के मूल कारणों को लक्षित नहीं करते हैं, अतः भूख की समस्या अभी भी विकट बनी हुई है।
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