लखनऊ शाखा पर IAS GS फाउंडेशन का नया बैच 23 दिसंबर से शुरू :   अभी कॉल करें
ध्यान दें:



डेली न्यूज़

अंतर्राष्ट्रीय संबंध

क्या है जल्लीकट्टू और इससे संबंधित विवाद?

  • 20 Jan 2017
  • 7 min read

सन्दर्भ

तमिलनाडु में जल्लीकट्टू खेल पर लगे प्रतिबंध को लेकर राज्य भर में विरोध-प्रदर्शन जारी है| चेन्नई के मरीना तट पर हज़ारों की तादाद में लोग जमा हुए हैं और मांग कर रहे हैं कि पोंगल के मौके पर होने वाले जल्लीकट्टू खेल पर सुप्रीम कोर्ट ने जो प्रतिबंध लगाया है, उसे हटाया जाए|

क्या है जल्लीकट्टू? 

  • जल्लीकट्टू तमिलनाडु का चार सौ वर्ष से भी पुराना पारंपरिक खेल है, जो फसलों की कटाई के अवसर पर पोंगल के समय आयोजित किया जाता है| इस खेल में बैलों के सींगों में सिक्के या नोट फँसाकर रखे जाते हैं और फिर उन्हें भड़काकर भीड़ में छोड़ दिया जाता है, ताकि लोग सींगों से पकड़कर उन्हें काबू में करें|​
  • कथित तौर पर पराक्रम से जुड़े इस खेल में विजेताओं को नकद इनाम वगैरह भी देने की परंपरा है|विदित हो कि इस खेल के आरंभिक दिनों में एक बैल को नियंत्रण में लेने का प्रयास एक ही व्यक्ति द्वारा किया जाता था, लेकिन आधुनिक जल्लीकट्टू खेल के दौरान बैलों को भड़काने के लिये उन्हें शराब पिलाने से लेकर उनकी आँखों में मिर्च तक डाली जाती है और उनकी पूंछों को मरोड़ा भी  जाता है, ताकि वे तेज़ दौड़ें|

 जल्लीकट्टू पर प्रतिबंध और उसके बाद के घटनाक्रम?

  • पिछले कुछ सालों को छोड़ दें तो तमिलनाडु में यह खेल बिना किसी विरोध के आयोजित होता रहा है| तकरीबन 400 साल पुरानी परंपरा वाले इस आयोजन में हर साल लोगों के गंभीर रूप से घायल होने, यहाँ तक कि मरने की खबरें भी आती रही हैं| लेकिन पिछले कुछ सालों से पशु कल्याण कार्यकर्ता इस खेल में बैलों के साथ होने वाली बर्बरता पर सवाल उठा रहे थे|
  • ध्यातव्य है कि वर्ष 2006 में पशु कल्याण कार्यकर्ताओं द्वारा इस खेल पर प्रतिबंध लगवाने के लिये मद्रास हाईकोर्ट की मदुरै बेंच में एक याचिका दायर की गई थी, तद्नुसार 2009 में राज्य सरकार ने जल्लीकट्टू के नियमन के लिये एक कानून पास किया था| जल्लीकट्टू के आयोजन की वीडियोग्राफी, पशुओं और इंसानों के डॉक्टरों की तैनाती और सुरक्षा के विशेष इंतजाम के साथ ही आयोजन के लिये कलेक्टर की अनुमति सहित कई नियम बना दिये गए थे|
  • इस कानून के बाद दुर्घटनाओं में काफी हद तक कमी आई लेकिन पशु कल्याण कार्यकर्ताओं की मांग तब भी जारी रही कि खेल पर पूर्ण प्रतिबंध लगाया जाए| यह मामला मद्रास हाईकोर्ट से सुप्रीम कोर्ट तक पहुँच गया| इसी बीच 2011 में केंद्र सरकार ने एक अधिसूचना जारी करके बैलों को उन पशुओं की श्रेणी से निकाल दिया जिन्हें मनोरंजन के लिये इस्तेमाल किया जा सकता है|
  • फलस्वरूप इसके विरोध में जल्लीकट्टू समर्थकों ने भी सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाखिल कर दी| इन सभी मामलों पर आखिरी फैसला मई 2014 में आया जिसके आधार पर इस खेल पर पूरी तरह से प्रतिबंध लगा दिया गया|
  • सुप्रीम कोर्ट ने जल्लीकट्टू पर यह कहते हुए प्रतिबंध लगा दिया था कि ‘यदि बैलों के साथ बर्बरता हो तो उन्हें, उससे बचाने का अधिकार है|’ सुप्रीम कोर्ट के जजों का कहना था कि इन खेलों की तैयारी के समय बैलों को उनकी नकेल से ज़बर्दस्ती खींचा जाता है, साथ ही, उन्हें आक्रामक करने के लिये कई तरह के हथकंडे अपनाए जाते हैं जो इस निरीह पशु के साथ बर्बरता है|
  • विदित हो कि साल 2014 में सुप्रीम कोर्ट द्वारा जल्लीकट्टू पर प्रतिबंध के बाद पिछले साल केंद्र सरकार ने अध्यादेश जारी करके इस पारंपरिक खेल को इजाज़त दे दी थी, लेकिन सरकार के इस अध्यादेश को पुनः सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई, जिस पर अंतिम फैसला आना बाकी है|
  • गौरतलब है कि जल्लीकट्टू के सबसे ज़्यादा आयोजन पोंगल (मकर संक्रांति) के समय होते हैं| इस प्रतिबंध पर तमिलनाडु में विरोध तो पहले से ही चल रहा था लेकिन इस साल पोंगल के पहले से ही यह और तेज़ हो गया|

 निष्कर्ष

  • शौर्य और पराक्रम के नाम पर पशुओं के साथ क्रूरता और मानव जीवन को दाँव पर लगाने वाले इस खेल को तमिल संस्कृति और परम्परा से जोड़ दिया गया है, विदित हो कि जब सुप्रीम कोर्ट ने जल्लीकट्टू पर प्रतिबंध लगाया था तो निरीह पशुओं के साथ होने वाली क्रूरता के साथ-साथ जान-माल की होने वाली हानि का भी ध्यान रखा गया था| 
  • गौरतलब है कि वर्ष 2013 में, भारत के पशु कल्याण बोर्ड की निगरानी में तमिलनाडु सरकार को यह ज़िम्मेदारी दी गई थी कि वह सुनिश्चित करे कि जल्लीकट्टू के दौरान ‘पशु क्रूरता निवारण अधिनियम’ के प्रावधानों का उल्लंघन नहीं किया जा रहा है| लेकिन तमिलनाडु सरकार, जल्लीकट्टू को पशुओं के खिलाफ क्रूरता रहित बनाने में असफल रही|केंद्र सरकार द्वारा एक और अध्यादेश लाकर जल्लीकट्टू पर सुप्रीम कोर्ट द्वारा लगाए गए प्रतिबंध को बेअसर कर देना न्यायपालिका का तिरस्कार करना होगा| अतः केंद्र और राज्य सरकार को करना यह चाहिये कि वे सुप्रीम कोर्ट को आश्वस्त करें कि जल्लीकट्टू को पशुओं के खिलाफ क्रूरता से मुक्त कराए जाने के सर्वोत्तम प्रयास किये जा रहें हैं| साथ ही साथ इस खेल में भाग लेने वालों और खेल के दर्शकों की सुरक्षा के भी पुख्ता इंतजाम किये जाने चाहियें| यह ठीक है कि लोकप्रिय जनभावनाएँ कानून को प्रभावित कर सकती हैं, लेकिन ये कानून के शासन को कमज़ोर नहीं कर सकती हैं|
close
एसएमएस अलर्ट
Share Page
images-2
images-2