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डेली न्यूज़

अंतर्राष्ट्रीय संबंध

यूनाइटेड किंगडम चुनाव

  • 26 Dec 2019
  • 7 min read

प्रीलिम्स के लिये:

यूनाइटेड किंगडम की भौगोलिक स्थिति, गुड फ्राइडे समझौता

मेन्स के लिये:

भारत के ब्रिटेन और शेष यूरोप के साथ राजनीतिक संबंधों से जुड़े मुद्दे

चर्चा में क्यों?

हाल ही में ब्रेक्ज़िट की पृष्ठभूमि में संपन्न हुए यूनाइटेड किंगडम चुनाव (United Kingdom Election) में बोरिस जॉनसन (Boris Johnson) की कंज़रवेटिव पार्टी ने जीत हासिल की।

प्रमुख बिंदु:

  • बोरिस जॉनसन की इस जीत को कंज़रवेटिव पार्टी के लिये मार्गरेट थैचर की वर्ष 1987 की चुनावी विजय के बाद सबसे बड़ी जीत माना जा रहा है।
  • बोरिस जॉनसन की इस जीत को उनके ब्रेक्ज़िट संपन्न कराने (Get Brexit Done) के चुनावी वादे पर ब्रिटिश जनसमर्थन के रूप में देखा जा रहा है।
  • इन चुनावी परिणामों के बाद ब्रिटेन ने ब्रेक्ज़िट की राह में पहली बाधा पार कर ली है। जैसा कि 20 दिसंबर को ब्रिटिश संसद में ब्रेक्ज़िट मसौदे पर कराए गए मतदान में देखा गया। ब्रिटिश संसद में ब्रेक्ज़िट डील के पारित होने के साथ ही यह लगभग तय है कि ब्रिटेन वर्तमान समय सीमा 31 जनवरी को या उससे पहले यूरोपीय संघ (EU) से बाहर हो जाएगा।

ब्रेक्ज़िट का मुद्दा:

  • ब्रेक्ज़िट (Brexit) दो शब्दों- Britain+Exit से मिलकर बना है, जिसका शाब्दिक अर्थ है ब्रिटेन का बाहर निकलना। दरअसल, यूरोपीय संघ में रहने या न रहने के सवाल पर यूनाइटेड किंगडम में 23 जून, 2016 को जनमत संग्रह कराया गया था, जिसमें लगभग 52 फीसदी वोट यूरोपीय संघ से बाहर होने के पक्ष में पड़े थे।
  • जनमत संग्रह में केवल एक प्रश्न पूछा गया था- क्या यूनाइटेड किंगडम को यूरोपीय संघ का सदस्य बने रहना चाहिये या इसे छोड़ देना चाहिये? इसके पीछे ब्रिटेन की संप्रभुता, संस्कृति और पहचान बनाए रखने का तर्क देते हुए इसे Brexit नाम दिया गया।

ब्रेक्ज़िट के कारण:

  • आप्रवासन
  • संप्रभुता
  • आर्थिक संसाधन
  • कानूनी हस्तक्षेप
  • सुरक्षा

ब्रिटेन पर ब्रेक्ज़िट का प्रभाव

  • ब्रेक्ज़िट अल्पकाल में ब्रिटेन को मंदी की ओर धकेल सकता है, क्योंकि यूरोपीय संघ UK का सबसे बड़ा व्यापारिक साझेदार है और जैसे ही ब्रेक्ज़िट संपन्न होगा उन दोनों के रिश्तों में अनिश्चितता की स्थिति उत्पन्न हो जाएगी।
  • कई अध्ययनों में सामने आया है कि इसके प्रभाव से ब्रिटेन की अर्थव्यवस्था को 1 से 3 फीसदी तक का नुकसान हो सकता है।
  • उल्लेखनीय है कि ब्रेक्ज़िट के कारण पाउंड में करीब 20 फीसदी की गिरावट की आशंका है।
  • ब्रिटेन के लिये सिंगल मार्केट सिस्टम खत्म हो जाएगा।
  • ब्रिटेन की सीमा में बिना रोकटोक आवाजाही पर रोक लगेगी और वहाँ संसाधनों का अनुकूलतम प्रयोग संभव हो पाएगा।
  • ब्रेक्ज़िट के पश्चात् फ्री वीज़ा पॉलिसी के कारण ब्रिटेन को जो नुकसान होता है, उसे कम किया जा सकेगा।

स्कॉटलैंड समस्या:

ब्रेक्ज़िट के बाद स्कॉटलैंड में एक बार फिर आज़ादी को लेकर आवाजें बुलंद होने लगी हैं। स्कॉटलैंड के अधिकतर लोगों का मानना है की UK के साथ जाने की बजाय EU में रहना आर्थिक दृष्टि से अधिक लाभकारी है।

वर्ष 2014 में स्कॉटिश स्वतंत्रता पर कराये गए जनमत संग्रह में स्कॉटलैंड की 55% जनता ने UK में रहने जबकि 45% ने स्वतंत्रता के लिये वोट किया था, SNP की दुसरे जनमत संग्रह की मांग से यह मुद्दा एक बार फिर से उठ गया है।

United-Kingdom

आइरिश बॉर्डर समस्या:

ब्रेक्ज़िट मुद्दे के उठने से आयरलैंड के साथ सीमा समस्या का मुद्दा एक बार पुनः जीवित हो जाएगा। गुड-फ्राइडे समझौते (Good Friday Agreement) के परिणामस्वरूप इस क्षेत्र में जो शांति स्थापित हुई थी, उस पर एक बार फिर संकट मंडराने लगा है।

वर्ष 1922 में आयरिश प्रायद्वीप में 26 काउंटी वाले आयरलैंड गणतंत्र को स्वतंत्रता प्राप्त हुई जबकि 6 काउंटी के साथ उत्तरी आयरलैंड UK का हिस्सा बना रहा। वर्ष 1998 में उत्तरी आयरलैंड में हुए गुड-फ्राइडे या बेलफ़ास्ट समझौते के पश्चात् प्रोटेस्टेंट और कैथोलिक अनुयायियों के बीच वर्षों से चल रहे संघर्ष पर विराम लगाया जा सका था, दोनों देशों (ब्रिटेन और आयरलैंड) के EU में जुड़ जाने से यह समस्या कुछ और कम हुई थी।

ब्रेक्ज़िट का भारत पर प्रभाव:

  • ब्रिटेन उन कुछ गिने-चुने देशों में से है जिनके साथ व्यापार में भारत का निर्यात (ब्रिटेन से होने वाले) आयात से अधिक है।
  • ब्रेक्ज़िट के बाद भारत और ब्रिटेन के बीच सैन्य और व्यापार जैसे कई अन्य महत्त्वपूर्ण मुद्दों पर दोबारा संधियाँ करनी पड़ेगी।
  • साथ ही कई भारतीय कंपनियों को ब्रिटेन और यूरोपीय संघ (EU) में अलग-अलग कार्यालय खोलने पड़ेंगे और दो जगहों पर टैक्स देना पड़ेगा।
  • लेकिन साथ ही यूरोपीय संघ से अलग होने के फलस्वरूप भारत के लिये ब्रिटेन का नया बाज़ार एक नई उम्मीद लेकर आएगा तथा व्यापार में कुछ अच्छे समझौते भारतीय निर्यात को नई दिशा दे सकते है।
  • सैन्य, सेवा (Service Sector), फार्मा और आईटी जैसे क्षेत्रों में व्यापार के कई नए समझौते होने की संभावना है।

स्रोत: द हिन्दू

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