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अंतर्राष्ट्रीय संबंध

बैंकों पर व्याप्त दबावयुक्त संपत्तियों का खतरा

  • 09 Jun 2017
  • 8 min read

संदर्भ
पिछले कुछ समय से, भारतीय अर्थव्यवस्था अपनी विशिष्ट संस्थागत व संरचनात्मक समस्याओं से गुजर रही है| विशेषकर अनर्जक अस्तियों (NPA) में बढ़ोतरी एवं उनके  निपटान की समस्या प्रमुख है| साथ ही बैंकों के संदर्भ में एक सटीक व सक्षम ऋण प्रबंधन तंत्र की कमी के कारण दबावयुक्त संपत्ति (Stressed Assets) में लगातार वृद्धि होने की समस्या प्रमुख है| उक्त समस्या की स्पष्ट झलक अंतर्राष्ट्रीय क्रेडिट रेटिंग एजेंसी मूडीज़ तथा उसकी भारतीय सहयोगी संस्थान आई.सी.आर.ए. (ICRA) के द्वारा जारी की गई हाल की रिपोर्टों में दिखती है| जहाँ मूडीज़ ने स्पष्ट शब्दों में कहा है कि 2019 तक भारतीय बैंकों में दबावयुक्त संपत्ति की मात्रा में वृद्धि होगी और पूंजीकरण के मामले में विशेषकर  सरकारी बैंकों (PSU’s) की दशा और बिगड़ सकती, है जिन्हें अपनी ज़रूरतों के लिये अगले दो वर्षों में अतिरिक्त  90 हजार करोड़ की आवश्यकता होगी| 

मुख्य बिंदु

  • मूडीज़ की  रिपोर्ट में कहा गया है कि-“भारतीय बैंकों की पूंजीकरण प्रोफाइल खराब हो चुकी है तथा इनकी परिसंपत्ति गुणवत्ता (Asset Quality) की दशा भी कमज़ोर है| साथ ही रिपोर्ट यह भी कहती है कि सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों (PSU) के पास बाह्य पूंजी जुटाने की सीमित क्षमता है और इसलिये सरकार द्वारा सहयोग दिये जाने वाले वित्त सहयोग  पूंजी आधार निर्मित करने के लिये एकमात्र व्यवहार्य स्रोत बना हुआ है| 
  • मूडीज़ के भारतीय सहयोगी संगठन आई.सी.आर.ए. ने कहा है कि अगले कुछ वर्ष बैंकिंग क्षेत्र के लिये परिसंपत्ति गुणवत्ता के दृष्टिकोण से ठीक नहीं होंगे| संगठन का मानना है कि बैंकों की कुल अनर्जक अस्तियाँ (NPA’s) 2017-18 के अंत तक बढ़कर 8.2 से 8.5 लाख करोड़ हो जाएगी | यह मात्रा मार्च 2017 की कुल NPA’s की तुलना में 9.5% अधिक होगी|
  • साथ ही  रिपोर्ट में यह भी अनुमान लगाया गया है कि  मूडीज़ के द्वारा रेटेड 11 सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों को करीब 70,000 से 95,000 करोड़ रुपए या 10.6-14.6 अरब डॉलर की बाहरी इक्विटी पूंजी की आवश्यकता होगी| स्पष्ट तौर पर ये तय है कि इनकी दबावयुक्त ऋण की मात्रा में वृद्धि होगी|
  • गौरतलब है कि बैंकों की ये आवश्यकता  सरकार के द्वारा बैंकों के लिये मार्च 2019 तक तय की गई बजटीय सहायता राशि से कहीं अधिक है|
  • सरकार, पी.एस.यू. बैंकों में बैंक पुनर्पूंजीकरण के लिये शुरू हुई इंद्रधनुष योजना के तहत 70,000 करोड़  का निवेश करेगी| इसमें से सरकार  पिछले दो वित्तीय वर्षों में 50,000 करोड़ रुपए दे चुकी है और शेष 2018-19 के अंत तक दे दिये जाएंगे|

अन्य महत्त्वपूर्ण पक्ष

  • मूडीज को अगले दो वर्षों में बैंकों की मुनाफे प्रोफाइल में कोई  विशेष सुधार होने की उम्मीद नहीं है क्योंकि अभी भी पूंजी जुटाने के लिये बजटीय सहायता ही बैंकों के लिये प्रमुख साधन के रूप में हैं|
  • हालाँकि ए.सी.आर.ए. ने  कहा है कि वर्त्तमान में NPA’s निर्माण की दर धीमी है एवं आगे भी धीमी रहने की संभावना है| वित्तीय वर्ष 2017 में NPA’s निर्माण की दर 5.5% की है जो 2016 में 6.6% थी|
  • रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि भारत सरकार द्वारा 1949 के बैंकिंग विनियमन अधिनियम में संशोधन के लिये जारी किये गए अध्यादेश, बैंकों के लिये एक सकारात्मक कदम होगा, क्योंकि इसके अंतर्गत  बैंकिंग प्रणाली के दबावयुक्त परिसंपत्ति चुनौतियों को हल करने के लिये सरकार की इच्छा  स्पष्ट हो रही है|

अध्यादेश पर एक नज़र

  • इस  अध्यादेश के माध्यम से पुराने बैंकिंग रेगुलेशन अधिनियम 1949 में  कुछ बदलाव किये जाएंगे |
  • राष्ट्रपति का यह  अध्यादेश बैंकों के एन.पी.ए. के शीघ्र समाधान हेतु  भारतीय रिज़र्व बैंक को शक्ति देता है।
  • उक्त अध्यादेश केंद्र सरकार  को एन.पी.ए. समाधान प्रक्रिया शुरू करने हेतु  आरबीआई को निर्देश देने  की शक्ति देता है|  
  • जबकि इस बैंकिंग विनियमन अध्यादेश  के पहले के  प्रावधान  सरकार को आरबीआई को( डिफॉल्ट के मामलों में ) एन.पी.ए. समाधान प्रक्रिया शुरू करने के लिये निर्देश देने  की अनुमति नहीं देते हैं|
  • इस प्रकार यह अध्यादेश  जहाँ एक ओर बैंकों की अधिकारिता में घुसपैठ करेगा वहीं दूसरी तरफ राजनीतिक नेतृत्व को एन.पी.ए. समाधान प्रक्रिया में एक सक्रिय भूमिका निभाने का अवसर भी प्रदान करेगा|
  • संशोधित कानून के तहत एन.पी.ए. संकल्प केंद्रीय सरकार के विशिष्ट निर्देशों की  जगह ले सकता है|
  • यह अध्यादेश  दिवालियापन कोड (BANKRUPTCY CODE) को बैंकिंग विनियमन अधिनियम से  संबद्ध कर देगा|
  • अध्यादेश भी आरबीआई को एन.पी.ए. के साथ बैंकों के लिये  निरीक्षण समितियाँ  स्थापित करने की अनुमति देता है|
  • यह निश्चित रूप से केंद्रीय बैंक को समस्यापरक  ऋणों की दशा में  बैंकों को गहन  पर्यवेक्षण  करने के लिये  सक्षम करेगा|
  • अध्यादेश बैंकों   को खराब खातों को हल करने के लिये  कानूनों में  लचीलापन ला सकता है और भविष्य में कानूनी कार्रवाई करने की दशा में  बैंकरों को प्रतिरक्षा भी प्रदान कर सकता है|

निष्कर्ष
आर्थिक सर्वेक्षण 2015-2016 में इस बात पर ज़ोर दिया गया है कि अनर्जक अस्तियों व अन्य दबावयुक्त परिसंपत्तियों की समस्या का समाधान करने के लिये सुधार, स्वीकृति, पूनर्पूंजीकरण और समाधान जैसे चार तत्त्व आवश्यक होंगे| अतः सरकार को बैंकिंग अधिनियम में संशोधन के साथ-साथ विभिन्न नीतिगत मामलों का समाधान ढूँढना  होगा, जिससे सरकारी बैंकों की दशा में सुधार किया जा सके|

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