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देश में एंटी-रैबीज़ वैक्सीन की कमी

  • 05 Sep 2019
  • 4 min read

चर्चा में क्यों?

हाल ही में राष्ट्रीय औषधि मूल्य निर्धारण प्राधिकरण (National Pharmaceutical Pricing Authority-NPPA) ने निर्माताओं और विपणनकर्त्ताओं (Marketers) से एंटी-रैबीज़ वैक्सीन (Anti-Rabies Vaccine) के स्टॉक को बढ़ाने का आग्रह किया है।

प्रमुख बिंदु:

  • हाल ही में देश के कई राज्यों में एंटी-रैबीज़ वैक्सीन की कमी के मामले सामने आए थे। निर्माताओं के अनुसार, एंटी-रैबीज़ वैक्सीन के स्टॉक में कमी का सबसे प्रमुख कारण सरकार द्वारा इनकी खरीद का आदेश (Orders) न देना है। साथ ही पहले से खरीदी गई दवाइयों के भुगतान में होने वाली देरी ने भी इस स्थिति को और गंभीर कर दिया है।
  • स्वास्थ्य मंत्रालय के आँकड़ों के अनुसार, भारत में रैबीज़ के सबसे अधिक मामले दर्ज होते हैं एवं भारत रैबीज़ का सबसे बड़ा केंद्र है।
    • विश्व में रैबीज़ के कारण मरने वाले लोगों की कुल संख्या का एक-तिहाई हिस्सा भारत में है।
    • प्रत्येक वर्ष टीकाकरण के अभाव में रैबीज़ के कारण लगभग 20,000 लोगों की मृत्यु हो जाती है।
    • भारत में लगभग 96 प्रतिशत रैबीज़ आवारा कुत्तों के कारण फैलता है। देश में सड़कों पर रहने वाले कुत्तों की आबादी लगभग 30 मिलियन है।

क्या होता है रैबीज़?

  • रैबीज़ एक रिबोन्यूक्लिक एसिड (Ribonucleic Acid-RNA) वायरस के कारण होता है जो किसी पागल जानवर जैसे कुत्ता, बिल्ली, बंदर, आदि की लार में मौजूद होता है।
  • पागल जानवर के काटने और रैबीज़ के लक्षण दिखाई देने की समयावधि चार दिनों से लेकर दो साल तक या कभी-कभी उससे भी अधिक हो सकती है।
  • इसलिये घाव से वायरस को जल्द-से-जल्द हटाना ज़रूरी होता है। घाव को तुरंत पानी और साबुन से धोना चाहिये और इसके बाद एंटीसेप्टिक्स का उपयोग करना चाहिये ताकि किसी भी प्रकार की संक्रमण संभावना को खत्म किया जा सके।

राष्ट्रीय औषधि मूल्य निर्धारण प्राधिकरण

(National Pharmaceutical Pricing Authority-NPPA)

  • NPPA फार्मास्युटिकल्स विभाग (Department of Pharmaceuticals), रसायन और उर्वरक मंत्रालय के तहत गठित एक संगठन है जिसकी स्थापना वर्ष 1997 में विनियंत्रित थोक औषधियों व फॉर्मूलों के मूल्य निर्धारण तथा संशोधन हेतु की गई थी।
  • इसका अध्यक्ष भारतीय प्रशासनिक सेवा के सचिव स्तर का अधिकारी होता है, जिसका कार्यकाल निश्चित नहीं है। इसके अलावा इसमें स्थायी कर्मचारी भी नहीं होते हैं।
  • राष्ट्रीय औषधि मूल्य निर्धारण प्राधिकरण (NPPA) के कार्य:
    • विनियंत्रित थोक औषधियों व फॉर्मूलों का मूल्य निर्धारित व संशोधित करना।
    • निर्धारित दिशा-निर्देशों के अनुरूप औषधियों के समावेशन व बहिर्वेशन के माध्यम से समय-समय पर मूल्य नियंत्रण सूची को अद्यतन (Updates) करना।
    • दवा कंपनियों के उत्पादन, आयात-निर्यात और बाज़ार हिस्सेदारी से जुड़े डेटा का रखरखाव करना।
    • दवाओं के मूल्य निर्धारण से संबंधित मुद्दों पर संसद को सूचनाएँ प्रेषित करने के साथ-साथ दवाओं की उपलब्धता का अनुपालन व निगरानी करना।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस

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