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डेली न्यूज़

भारतीय इतिहास

तमिल साहित्य: संगम काल

  • 23 Dec 2021
  • 6 min read

प्रिलिम्स के लिये:

संगम काल, कृष्णा और तुंगभद्रा नदियाँ, थिरुमुरुगरुप्पडई, पोरुनाररुप्पडई, सिरुपनारुप्पडई, पेरुम्पनरुप्पडई, मुल्लाईपट्टू, नेदुनलवदाई, मदुरैक्कनजी, कुरिनजीपट्टू, पट्टिनप्पलई और मलाइपदुकदम।

मेन्स के लिये:

संगम साहित्य के विभिन्न पहलू और ऐतिहासिक ग्रंथों के रूप में उनकी प्रासंगिकता, तमिल साहित्य का इतिहास।

चर्चा में क्यों? 

हाल ही में शिक्षा राज्य मंत्री द्वारा तोलकाप्पियम (Tolkāppiyam) के हिंदी अनुवाद और शास्त्रीय तमिल साहित्य की 9 पुस्तकों के कन्नड़ अनुवाद का विमोचन किया गया।

  • तमिल साहित्य संगम युग से जुड़ा हुआ है, जिसका नाम कवियों की सभा (संगम) के नाम पर रखा गया है।

मुख्य बिंदु 

  • संगम काल के बारे में:
    • यह लगभग तीसरी शताब्दी ईसा पूर्व के मध्य की अवधि है। दक्षिण भारत (कृष्णा एवं तुंगभद्रा नदी के दक्षिण में स्थित क्षेत्र) में लगभग तीन सौ ईसा पूर्व से तीन सौ ईस्वी के बीच की अवधि को संगम काल के नाम से जाना जाता है।
    • इसका नाम उस अवधि के दौरान आयोजित संगम अकादमियों/सभाओं के नाम पर रखा गया है जो मदुरै के पांड्य राजाओं के शाही संरक्षण में फली-फूली।
    • संगमों में प्रख्यात विद्वान इकट्ठे हुए और सेंसर बोर्ड के रूप में कार्य किया तथा संकलन के रूप में सबसे अच्छे साहित्य का प्रतिपादन किया गया।
    • ये साहित्यिक कृतियाँ द्रविड़ साहित्य के शुरुआती नमूने थे।
    • संगम युग के दौरान दक्षिण भारत पर तीन राजवंशों- चेरों, चोल और पांड्यों का शासन था।
    • तीन संगम:
      • तमिल किंवदंतियों के अनुसार, प्राचीन दक्षिण भारत में तीन संगमों (तमिल कवियों का समागम) का आयोजन किया गया था, जिसे मुच्चंगम (Muchchangam) कहा जाता था।
        • माना जाता है कि प्रथम संगम मदुरै में आयोजित किया गया था। इस संगम में देवता और महान संत शामिल थे। इस संगम का कोई साहित्यिक ग्रंथ उपलब्ध नहीं है।
        • दूसरा संगम कपाटपुरम् में आयोजित किया गया था, इस संगम का एकमात्र तमिल व्याकरण ग्रंथ तोलकाप्पियम ही उपलब्ध है।
        • तीसरा संगम भी मदुरै में हुआ था। इस संगम के अधिकांश ग्रंथ नष्ट हो गए थे। इनमें से कुछ सामग्री समूह ग्रंथों या महाकाव्यों के रूप में उपलब्ध है।
  • संगम साहित्य
    • संगम साहित्य में तोलकाप्पियम, एट्टुटोगई, पट्टुप्पट्टू, पथिनेंकिलकनक्कु ग्रंथ और शिलप्पादिकारम् और मणिमेखलै नामक दो महाकाव्य शामिल हैं।
      • तोल्काप्पियम: यह तोलकाप्पियार द्वारा लिखा गया था और इसे तमिल साहित्यिक कृति में सबसे पुराना माना जाता है। 
        • यह व्याकरण से संबंधित एक ग्रंथ है, साथ ही यह उस समय की राजनीतिक और सामाजिक-आर्थिक स्थितियों की जानकारी भी प्रदान करता है।
        • यह नौ खंडों के तीन भागों में व्याकरण और काव्य पर एक अनूठा काम है, जिनमें से प्रत्येक एज़ुट्टू (अक्षर), कोल (शब्द) और पोरुल (विषय वस्तु) से संबंधित है।
        • सामान्य बोलचाल से लेकर काव्यात्मकता तक मानव भाषा के लगभग सभी स्तर तोल्काप्पियार के विश्लेषण के दायरे में आते हैं, क्योंकि वे स्वर विज्ञान, आकृति विज्ञान, वाक्य रचना, बयानबाज़ी, छंद और काव्य पर उत्कृष्ट काव्यात्मक एवं एपिग्रामेटिक बयानों में व्यवहार करते हैं।
      • एट्टुटोगई (आठ संकलन): इसमें आठ रचनाएँ शामिल हैं- ऐंगुरुनूरु, नरिनाई, अगनौरु, पुराणनूरु, कुरुंतोगई, कलित्टोगई, परिपादल और पदिरट्टू।
      • पट्टुप्पट्टू (दस रचना): इसमें दस रचनाएँ शामिल हैं- थिरुमुरुगरुप्पडई, पोरुनाररुप्पडई, सिरुपनारुप्पडई, पेरुम्पनरुप्पडई, मुल्लाईपट्टू, नेदुनलवदाई, मदुरैक्कनजी, कुरिनजीपट्टू, पट्टिनप्पलई और मलाइपदुकदम।
      • पाथिनेंकिलकणक्कु (Pathinenkilkanakku): इसमें नैतिकता और नैतिकता संबंधी अठारह कार्य शामिल हैं।
    • इन कार्यों में सबसे महत्त्वपूर्ण महान तमिल कवि और दार्शनिक तिरुवल्लुवर द्वारा लिखित तिरुक्कुरल है।
  • तमिल महाकाव्य: शिलप्पादिकारम् ‘इलांगोआदिगल’ द्वारा और मणिमेखलै ‘सीतलैसत्तनार’ द्वारा लिखे गए महाकाव्य हैं।
    • वे संगम समाज और राज्य व्यवस्था के बारे में बहुमूल्य विवरण भी प्रदान करते हैं।

स्रोत: पीआईबी

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