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अंतर्राष्ट्रीय संबंध

WTO के मंत्रिस्तरीय सम्मेलन में खाद्य सुरक्षा पर वार्ता असफल

  • 14 Dec 2017
  • 6 min read

चर्चा में क्यों?

अमेरिका के सार्वजनिक खाद्य भंडारण के मुद्दे का स्थायी समाधान तलाशने की अपनी प्रतिबद्धता से पीछे हटने के कारण ब्यूनस आयर्स (अर्जेंटीना) में चल रही WTO की 11वीं मंत्रिस्तरीय बैठक बिना किसी महत्त्वपूर्ण घोषणा के समाप्त हो गई। हालाँकि मत्स्यन और ई-कॉमर्स के क्षेत्र में प्रगति हुई है, क्योंकि इनकी कार्ययोजना पर सहमति बनी है, लेकिन सार्वजनिक खाद्य भंडारण के मुद्दे पर संगठन के सदस्य देशों में गतिरोध का कोई अंत नहीं हो सका, जो कि भारत के अलावा अन्य कई विकासशील देशों के लिये निराशाजनक है। 

अपनी आबादी के लिये खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित करने के उद्देश्य से भारत खाद्य भंडारण के मुद्दे के स्थायी समाधान की मांग लंबे समय से करता आ रहा है।

क्या है मुद्दा?

  • विश्व व्यापार संगठन का कोई भी सदस्य देश हर साल अपनी पैदावार की कीमत का 10% से ज़्यादा खाद्य सब्सिडी नहीं दे सकता है। पैदावार की कीमत के आकलन के लिये 1986-88 को आधार बनाया गया है।
  • भारत ने इस पर आपत्ति ज़ाहिर करते हुए कहा कि देश में खाद्य सुरक्षा कार्यक्रम लागू करने पर सब्सिडी 10% से ज़्यादा हो जाएगी, इसलिये भारत को इस नियम में विशेष छूट दी जानी चाहिये।
  • इसके समाधान के लिये WTO की 2013 में बाली में हुई बैठक में “पीस क्लॉज़’ नाम से एक अस्थायी समाधान निकाला गया। 
  • इस पीस क्लॉज़ के अंतर्गत व्यवस्था दी गई कि कोई भी विकासशील देश यदि 10% से ज़्यादा सब्सिडी देता है तो कोई अन्य देश इस बात पर आपत्ति नहीं करेगा।
  • चूँकि यह एक अस्थायी व्यवस्था के तौर पर ढूँढा गया विकल्प था, अतः भारत इस मुद्दे का स्थायी समाधान देश की खाद्य सुरक्षा के पक्ष में चाहता था।
  • इस मुद्दे को लेकर अमेरिका के साथ भारत का गतिरोध जारी रहा और अमेरिका ने इसके स्थायी समाधान के लिये किये जाने वाले किसी भी प्रयास में शामिल होने से इनकार कर दिया। 

अमेरिका का पक्ष

  • अमेरिका ने ब्यूनस आयर्स में स्पष्ट कह दिया है कि उसे खाद्य सुरक्षा पर कोई भी स्थायी समाधान स्वीकार नहीं है।
  • अमेरिका ने कहा कि WTO में ‘विकास’ की स्थिति को लेकर समझ को स्पष्ट करने की आवश्यकता है।
  • यह स्थिति बिल्कुल अस्वीकार्य है कि संगठन का कोई नियम केवल कुछ ही देशों पर लागू हो और कुछ अन्य देश (इशारा –भारत और चीन की तरफ) विकासशील और कम आय वाले देश के अपने ‘स्वघोषित दर्जे’ के अंतर्गत इन नियमों से मुक्त रहें। 
  • अमेरिका इस बात पर आपत्ति करता है कि विश्व के कुछ संपन्न देश स्वयं के विकासशील होने का दावा करते हैं। 

भारत का पक्ष

  • भारत का मानना है कि विकासशील देशों के लिये विशेष प्रावधान WTO का महत्त्वपूर्ण तत्त्व है।   
  • भारत को इस बात पर आपत्ति है कि विकास की गणना GDP के आँकड़ों के आधार पर की जा रही है, जबकि देश के 60 करोड़ लोग गरीबी की श्रेणी में गिने जाते हैं, जिनकी खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित करना सरकार की जिम्मेदारी है।
  • भारत को अपनी जीडीपी की वृद्धि दर पर गर्व है, लेकिन देश की वास्तविक प्रतिव्यक्ति आय को नज़रंदाज़ नहीं किया जा सकता, जो कि बहुत कम है।
  • कृषि वैज्ञानिक एम.एस.स्वामीनाथन ने कहा है कि भुखमरी को समाप्त करना तथा आम लोगों की खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित करना कृषि संबंधी बातचीत का आधार होना ही चाहिये।
  • WTO द्वारा खाद्य सब्सिडी की गणना के तरीके में संशोधन की मांग भी भारत लगातार करता आ रहा है। 
  • इस मुद्दे पर भारत को विकासशील देशों के समूह जी-33 का भी पूरा समर्थन मिल रहा है।

अब आगे क्या?

विश्व व्यापार संगठन के महानिदेशक रॉबटो एजवेडो ने ब्यूनस आयर्स में वार्ता के बिना समाधान के समाप्त हो जाने को दुर्भाग्यपूर्ण बताया, साथ ही उन्होंने कहा कि यह ‘अंत नहीं है, जीवन ब्यूनस आयर्स के बाद भी है’। खाद्य भंडारण के मुद्दे पर स्थायी समाधान के प्रयास लगातार जारी रहेंगे। 

भारत भी खाद्य सुरक्षा के मसले पर अडिग है, क्योंकि देश के 60 करोड़ से ज़्यादा लोग खाद्य सुरक्षा कार्यक्रम के दायरे में आते हैं। इतनी बड़ी आबादी का पेट भरने के लिये खाद्यान्नों का बड़ा भंडार होने के साथ-साथ सब्सिडी की भी ज़रूरत है, लेकिन इससे WTO के 10% वाले नियम की अनदेखी होती है।

जब तक इस मुद्दे का कोई स्थायी समाधान नहीं हो जाता तब तक भारत ‘पीस क्लॉज़’ के अंतर्गत मिली छूट का लाभ उठाता रहेगा।

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