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डेली न्यूज़

भारतीय समाज

मानव तस्करी से प्रभावित व्यक्ति

  • 12 Feb 2020
  • 7 min read

प्रीलिम्स के लिये:

राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो

मेन्स के लिये:

मानव तस्करों के चंगुल से छुड़ाए गए लोगों से संबंधित मुद्दे

चर्चा में क्यों?

हाल ही में तस्करी और लैंगिक हिंसा के खिलाफ कार्य करने वाले कोलकाता स्थित एक तकनीकी संगठन ‘संजोग’ द्वारा ‘UNCOMPENSATE VICTESS’ नामक रिपोर्ट प्रकाशित की गई है।

मुख्य बिंदु:

  • देश भर में पाँच वकीलों द्वारा दिये गए आवेदनों के आधार पर सूचना के अधिकार (Right to Information-RTI) के तहत तस्करों के चंगुल से बचाए गए लोगों को दिये गए मुआवज़े के बारे में जानकारी प्राप्त की गई।
  • उपर्युक्त रिपोर्ट में RTI के तहत दायर याचिका के जवाब में देश में मानव तस्करों के चंगुल से छुड़ाए गए लोगों को दिये गए मुआवजे की खराब स्थिति पर प्रकाश डाला गया है।
  • ये आँकड़े 25 राज्यों और सात केंद्रशासित प्रदेशों में मानव तस्करी की स्थिति के आधार पर एकत्रित किये गए हैं।

क्या कहती है NCRB की रिपोर्ट?

  • राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो की रिपोर्ट के अनुसार, वर्ष 2011 से 2018 के बीच देश में मानव तस्करी के कुल 35,983 मामले दर्ज किये गए।

‘संजोग’ द्वारा जारी रिपोर्ट से संबंधित मुख्य बिंदु:

  • इस रिपोर्ट के अनुसार, मानव तस्करी से छुड़ाए गए केवल 82 जीवित बचे लोगों को मुआवजा प्रदान करने की घोषणा की गई थी, जिनमें से केवल 77 व्यक्तियों को ही राहत राशि मिली।
  • इसका अर्थ है कि NCRB द्वारा बताए गए मानव तस्करी से बचे लोगों के कुल मामलों में से केवल 0.2% लोगों को पिछले आठ वर्षों में सरकार द्वारा मुआवजा प्रदान किया गया।

राज्यवार आँकड़े:

  • वर्ष 2011 और 2019 के बीच मानव तस्करी से छुड़ाए गए व्यक्तियों को दिये गए मुआवज़े के राज्यवार विवरण के अनुसार, दिल्ली में 47, झारखंड में 17, असम में 8, पश्चिम बंगाल में 3, आंध्र प्रदेश, कर्नाटक और मेघालय में 2-2 और हरियाणा में एक व्यक्ति को मुआवजा प्रदान किया गया था।
  • इस रिपोर्ट में तस्करी से बचे लोगों की संख्या को भी दर्शाया गया है जिन्होंने पीड़ित मुआवज़ा योजना के तहत संबंधित कानूनी सेवा प्राधिकरण में आवेदन किया था।
  • वर्ष 2011 और 2019 के बीच इस योजना के तहत 107 व्यक्तियों ने मुआवज़े के लिये आवेदन किया, जिनमें से 102 मामलों में न्यायालय ने अधिकारियों को मुआवज़ा जारी करने का निर्देश दिया।
  • पीड़ित मुआवज़ा योजना के तहत पश्चिम बंगाल में 28, कर्नाटक और झारखंड में 26 और असम में 14 व्यक्तियों ने मुआवज़े के लिये आवेदन किया, जबकि सात व्यक्तियों ने दिल्ली- राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र में आवेदन किया।
  • दिल्ली का डेटा विसंगतिपूर्ण है क्योंकि यहाँ कुछ व्यक्तियों को घोषित मुआवज़े से अधिक मुआवज़ा मिला है।
  • मणिपुर में वर्ष 2019 की पीड़ित क्षतिपूर्ति योजना में मानव तस्करी के मामले में कोई प्रविष्टि दर्ज नहीं हुई है।

दंड प्रक्रिया संहिता में प्रावधान:

  • दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 357-A में अपराध पीड़ितों को मुआवज़ा देने का प्रावधान है।

अन्य प्रावधान:

  • निर्भया फंड (Nirbhaya Fund):
    • वर्ष 2012 में निर्भया गैंगरेप और हत्या मामले में राष्ट्रीय आक्रोश के बाद सरकार ने 1,000 करोड़ रूपए के फंड की घोषणा की थी जिसका उपयोग व्यक्तियों, बच्चों या वयस्कों के खिलाफ यौन हिंसा से निपटने के लिये किया जाता है।
    • निर्भया फंड के कुछ भाग को विक्टिम कॉम्पेंसेशन स्कीम (Victim Compensation Scheme) में प्रयोग किया जा रहा है जो कि पिछले कुछ वर्षों से बलात्कार, एसिड बर्न और ट्रैफिकिंग तथा अन्य प्रकार की हिंसा से बचे लोगों को मुआवज़ा देने की एक राष्ट्रीय योजना है।
    • मानव तस्करी के पीड़ितों को दी जाने वाली मुआवज़े की राशि अलग-अलग राज्यों में भिन्न होती है।
  • वर्ष 2018 में सर्वोच्च न्यायालय ने नेशनल लीगल सर्विसेज़ अथॉरिटी (National Legal Services Authority-NALSA) को एक मानकीकृत पीड़ित मुआवजा योजना तैयार करने का निर्देश दिया था।

क्या हैं समस्याएँ?

  • पीड़ित लोगों को प्रदान किये जाने वाले मुआवज़े के संदर्भ में जानकारी में कमी और कानूनी सेवा प्राधिकरण की ओर से पहल की कमी के कारण बहुत कम लोगों की मुआवज़ा प्राप्त कर पाते हैं।
  • कानूनी सहायता पर कम सरकारी निवेश के कारण भी बहुत कम लोगों की मुआवज़े तक पहुँच स्थापित हो पाती है।
  • मानव तस्करों से छुड़ाए गए व्यक्ति अपने बचाव से पुनर्वास तक कई एजेंसियों के संपर्क में रहते हैं लेकिन उनमें से कोई भी उन्हें मुआवज़ा दिलवाने में सहायता करने के लिये कदम नहीं उठाता है।
  • राज्यों की लीगल सर्विसेज़ अथॉरिटी की मुआवज़े से संबंधित दावों पर प्रतिक्रिया धीमी रही है, और ये अथॉरिटी पीड़ितों पर ही सबूत एकत्रित करने का बोझ डालती हैं।

स्रोत- द हिंदू

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