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अंतर्राष्ट्रीय संबंध

प्रत्यक्ष विदेशी निवेश के नियमों में सख्ती

  • 20 Apr 2020
  • 8 min read

प्रीलिम्स के लिये

प्रत्यक्ष विदेशी निवेश, COVID-19

मेन्स के लिये

प्रत्यक्ष विदेशी निवेश पर भारत की नीति, COVID-19 से उत्पन्न हुई चुनौतियों से निपटने हेतु सरकार के प्रयास 

चर्चा में क्यों?

हाल ही में COVID-19 के कारण उत्पन्न हुई चुनौतियों को देखते हुए भारत सरकार ने देश के विभिन्न क्षेत्रों से जुड़ी कंपनियों में भारत की थल सीमा (Land Border) से जुड़े पड़ोसी देशों से ‘प्रत्यक्ष विदेशी निवेश’ (Foreign Direct Investment- FDI) के लिये सरकार की अनुमति को अनिवार्य कर दिया है। 

मुख्य बिंदु:

  • उद्योग संवर्द्धन और आतंरिक व्यापार विभाग द्वारा दी गई जानकारी के अनुसार, ऐसे सभी विदेशी निवेश के लिये सरकार की अनुमति की आवश्यकता होगी जिनमें निवेश करने वाली संस्थाएँ या निवेश से लाभ प्राप्त करने वाला व्यक्ति भारत के साथ थल सीमा साझा करने वाले देशों से हो। 
  • हालाँकि इस परिवर्तन के बाद भी अन्य विदेशी संस्थाएँ या नागरिक (इस परिवर्तन के तहत चिन्हित देशों के अतिरिक्त) FDI नियमों के तहत प्रतिबंधित क्षेत्रों/गतिविधियों के अतिरिक्त अन्य क्षेत्रों में पहले की तरह निवेश कर सकेंगे।

  • वर्तमान में भारत 7 देशों पाकिस्तान, अफगानिस्तान, नेपाल, चीन, भूटान, बांग्लादेश और म्यांमार से थल सीमाएँ साझा करता है।
  • इसके अतिरिक्त वर्तमान संशोधन के बाद पाकिस्तान का कोई नागरिक या संस्थान रक्षा, अंतरिक्ष, परमाणु ऊर्जा और  FDI नियमों के तहत प्रतिबंधित क्षेत्रों/गतिविधियों के अतिरिक्त अन्य क्षेत्रों को छोड़कर अन्य क्षेत्रों में सरकार की अनुमति के बाद ही निवेश कर सकेगा। 

विदेशी निवेश पर सख्ती के कारण:  

  • केंद्र सरकार द्वारा यह निर्णय COVID-19 के कारण उत्पन्न हुए आर्थिक दबाव के बीच भारतीय कंपनियों के ‘अवसरवादी अधिग्रहण’ (Opportunistic Takeovers/Acquisitions) को रोकने के लिये लिया गया है।
  • हाल ही में हाऊसिंग फाइनेंस कंपनी एचडीएफसी लिमिटेड (HDFC Ltd.) ने जानकारी दी थी कि वर्तमान में कंपनी में चीन के केंद्रीय बैंक ‘पीपुल्स बैंक ऑफ चाइना’ (People’s Bank of China) की हिस्सेदारी बढ़कर 1.1% तक पहुँच गई।

  • भारत की कंपनियों में चीनी निजी क्षेत्र द्वारा निवेश में वृद्धि भारतीय नियामकों के लिये एक बड़ी चुनौती बन गई है, क्योंकि चीनी सरकार के नियंत्रण की कंपनियों और निजी क्षेत्र में अंतर कर पाना बहुत कठिन है।  
  • चीनी निजी क्षेत्र की कई कंपनियाँ चीनी सरकार की योजनाओं और सेंसरशिप (Censorship) जैसे प्रयासों में प्रमुख भूमिका निभाती हैं।    

भारत में चीनी निवेश: 

  • हाल ही में जारी एक रिपोर्ट के अनुसार, वर्ष 2014 तक भारतीय कंपनियों में कुछ चीनी निवेश मात्र 1.6 बिलियन अमेरिकी डॉलर का था, जिसमें से अधिकांश चीन की सरकारी कंपनियों द्वारा इंफ्रास्ट्रक्चर (Infrastructure) क्षेत्र में किया गया निवेश था।
  • वर्ष 2017 तक यह निवेश पाँच गुना से अधिक की वृद्धि के साथ 8 बिलियन अमेरिकी डॉलर तक पहुँच गया और मार्च, 2020 में भारतीय कंपनियों में चीनी सरकारी और गैर सरकारी संस्थाओं का निवेश बढ़कर 26 बिलियन अमेरिकी डॉलर तक पहुँच गया था।
  • वर्ष 2017 शंघाई की ‘फोसुन’ (Fosun) नामक कंपनी द्वारा हैदराबाद स्थित ‘ग्लैंड फार्मा’ (Gland Farma) में 1.09 मिलियन अमेरिकी डॉलर के निवेश के साथ कंपनी में उसकी हिस्सेदारी बढ़कर 74% हो गई।
  • पिछले कुछ वर्षों में चीन की निजी क्षेत्र की कंपनियों ने भारत बाज़ार में दूरसंचार, पेट्रोकेमिकल, सॉफ्टवेयर और आईटी (IT) जैसे विभिन्न क्षेत्रों में निवेश में वृद्धि की है।
  • पिछले कुछ वर्षों में भारत के मोबाइल उद्योग में चीन की पहुँच बढ़ी है और भारतीय ऊर्जा क्षेत्र की 4 में से 3 कंपनियाँ चीनी उत्पादों पर निर्भर हैं।
  • फरवरी 2020 में जारी एक रिपोर्ट के अनुसार, चीन की कई बड़ी कंपनियों जैसे-अलीबाबा (Alibaba) और टेंसेंट (Tencent) ने कम-से-कम 92 भारतीय स्टार्टअप में निवेश कर रखा है।
  • इनमें से अधिकांश निवेश निजी क्षेत्र द्वारा किये गए छोटे निवेश (अधिकांश लगभग 100 मिलियन अमेरिकी डॉलर) हैं, जिससे यह निवेश तात्कालिक संदेह से बचे रहते हैं।     

लाभ:

  • इस परिवर्तन के बाद विभिन्न क्षेत्रों में होने वाले विदेशी निवेश की बेहतर निगरानी की जा सकेगी।
  • केंद्र सरकार के इस फैसले के बाद वर्तमान में COVID-19 से प्रभावित भारतीय कंपनियों में चीनी हस्तक्षेप की वृद्धि को नियंत्रित किया जा सकेगा।

हानि और चुनौतियाँ:

  • ‘व्यापार एवं विकास पर संयुक्त राष्ट्र सम्मेलन’ (United Nations Conference on Trade and Development- UNCTAD) की एक रिपोर्ट के अनुसार, वर्ष 2019 में भारत विश्व में सबसे अधिक विदेशी निवेश प्राप्त करने वाले शीर्ष के 10 देशों में शामिल था।
  • नियमों में सख्ती के कारण निश्चित ही भारत में होने वाले विदेशी निवेश में कमी आएगी और इसका सबसे अधिक प्रभाव तकनीकी और इंटरनेट से जुड़ी कंपनियों पर होगा।
  • विशेषज्ञों के अनुसार, भारत में निवेश करने वाली बड़ी संख्या उन कंपनियों की भी है जो अमेरिका या हॉन्गकॉन्ग जैसे देशों में पंजीकृत हैं। 
  • वेंचर कैपिटल फंड (Venture Capital Fund) और कुछ अन्य निवेशों के मामलों में अंतिम लाभार्थियों की राष्ट्रीयता की पहचान करना एक बड़ी चुनौती होगी।

स्त्रोत: द हिंदू

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