लखनऊ शाखा पर IAS GS फाउंडेशन का नया बैच 23 दिसंबर से शुरू :   अभी कॉल करें
ध्यान दें:



डेली न्यूज़

भारतीय राजव्यवस्था

आंध्र प्रदेश को विशेष श्रेणी राज्य का दर्जा दिया जाना संभव नहीं

  • 06 Jul 2018
  • 4 min read

चर्चा में क्यों?

केंद्र सरकार ने आंध्र प्रदेश को विशेष श्रेणी राज्य का दर्जा (Special Category Status-SCS) देने में असमर्थता व्यक्त करते हुए सुप्रीम कोर्ट में काउंटर हलफनामा दायर किया और कहा कि इस संबंध में आंध्र प्रदेश पुनर्गठन अधिनियम (APRA), 2014 के तहत सभी प्रतिबद्धताओं को ध्यान में रखा गया था।

प्रमुख बिंदु 

  • केंद्र ने राज्य के विभाजन के बाद आंध्र प्रदेश को दी गई वित्तीय और अन्य प्रकार की सहायता के बारे में एक संलग्नक के साथ विवरण प्रस्तुत किया।
  • अदालत, तेलंगाना के कॉन्ग्रेस नेता पोंग्लेटी सुधाकर रेड्डी द्वारा दायर याचिका पर सुनवाई कर रही थी, जिसने केंद्रीय वित्त मंत्रालय को प्रतिवादी के रूप में चिह्नित किया था और विभाजन से संबंधित कई मुद्दों पर प्रतिक्रिया मांगी थी।
  • रेड्डी ने अपनी याचिका में कहा था कि केंद्र सरकार द्वारा APRA को पूर्णतः लागू किया जाना अपरिहार्य है और इसीलिये उनके द्वारा यह याचिका दाखिल की गई है|
  • केंद्र ने अपने हलफनामे में यह भी कहा कि विभाजन विधेयक पारित होने के समय राज्यसभा में पूर्व प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह द्वारा किये गए वादों को भी लागू नहीं किया जा सकता है।
  • हलफनामे में  केंद्र ने दावा किया कि उसने विभाजन अधिनियम में किये गए लगभग सभी वादों को पूरा किया है। इसलिये अधिनियम के तहत लागू करने के लिये हमारे पास कुछ भी नहीं बचा है|
  • हालाँकि हलफनामे में विशेष पैकेज के तहत धन देने के संबंध में कुछ भी नहीं बताया गया है, सिवाय इसके कि केंद्र ने 2014-15 में राज्य के विभाजन के पहले वर्ष के लिये 4,116 करोड़ रुपए के राजस्व घाटे को समाप्त करने हेतु 3,979 करोड़ रुपए जारी किये थे।
  • केंद्र ने कहा कि पूंजीगत निधियों पर उसने 2,500 करोड़ रुपए जारी किये हैं और उपयोग प्रमाण पत्र जारी किये जाने के बाद 1,000 करोड़ रुपए तीन किश्तों में दिये जाएंगे|हलफनामे में रेलवे क्षेत्र या कडापा इस्पात संयंत्र का कोई उल्लेख नहीं है। दुगरजापत्तनम बंदरगाह को लेकर  यह कहा गया है कि इसकी व्यावहारिकता की जाँच की जा रही है।

विशेष श्रेणी राज्य का दर्जा 

  • विशेष श्रेणी राज्य के मापदंडों में उक्त क्षेत्र का पहाड़ी इलाका और दुर्गम क्षेत्र, आबादी का घनत्व कम होना एवं जनजातीय आबादी का अधिक होना, पड़ोसी देशों से लगे (अंतर्राष्ट्रीय सीमा) सामरिक क्षेत्र में स्थित होना, आर्थिक एवं आधारभूत संरचना में पिछड़ा होना और राज्य की आय की प्रकृति का निधारित नहीं होना आदि शामिल हैं। 
  • पूर्व में राष्ट्रीय विकास परिषद द्वारा निर्धारित प्रावधानों के अनुसार, सामरिक महत्त्व की अंतर्राष्ट्रीय सीमा पर स्थित ऐसे पहाड़ी राज्यों को विशेष श्रेणी राज्य का दर्जा प्रदान किया जाता था जिनके पास स्वयं के संसाधन स्रोत सीमित होते थे।
close
एसएमएस अलर्ट
Share Page
images-2
images-2