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डेली न्यूज़

भारतीय राजव्यवस्था

‘विशेष श्रेणी राज्य’ का दर्जा

  • 30 Sep 2021
  • 4 min read

प्रिलिम्स के लिये:

विशेष श्रेणी राज्य, वित्त आयोग

मेन्स के लिये:

गाडगिल फाॅर्मूले के आधार पर SCS के लिये निर्धारित पैरामीटर

चर्चा में क्यों? 

हाल ही में बिहार सरकार ने ज़ोर देकर कहा है कि उसने बिहार को विशेष श्रेणी राज्य का दर्जा (Special Category Status) देने की मांग को वापस नहीं लिया है।

प्रमुख बिंदु 

  • विशेष श्रेणी राज्य का दर्जा:
    • विशेष श्रेणी राज्य का दर्जा उन राज्यों के विकास में सहायता के लिये केंद्र द्वारा दिया गया वर्गीकरण है, जो भौगोलिक और सामाजिक-आर्थिक पिछड़ेपन का सामना कर रहे हैं।
    • यह वर्गीकरण वर्ष 1969 में पांँचवें वित्त आयोग की सिफारिशों पर किया गया था।
    • यह गाडगिल फाॅर्मूले पर आधारित था जिसमें विशेष श्रेणी के राज्य के दर्जे के लिये निम्नलिखित पैरामीटर निर्धारित किये गए थे:
      • पहाड़ी क्षेत्र।
      • कम जनसंख्या घनत्व और/या जनजातीय जनसंख्या का बड़ा हिस्सा।
      • पड़ोसी देशों के साथ सीमाओं की सामरिक स्थिति।
      • आर्थिक और बुनियादी अवसंरचना का पिछड़ापन।
      • राज्य वित्त की अव्यवहार्य प्रकृति।
    • विशेष श्रेणी राज्य का दर्जा पहली बार वर्ष 1969 में जम्मू-कश्मीर, असम और नगालैंड को दिया गया था। तब से लेकर अब तक आठ अन्य राज्यों (अरुणाचल प्रदेश, हिमाचल प्रदेश, मणिपुर, मेघालय, मिज़ोरम, सिक्किम, त्रिपुरा और उत्तराखंड) को यह दर्जा दिया गया है। 
    • संविधान में किसी राज्य को विशेष श्रेणी राज्य का दर्जा (SCS) देने का कोई प्रावधान नहीं है।
    • राष्ट्रीय विकास परिषद द्वारा पूर्व में योजना सहायता के लिये विशेष श्रेणी का दर्जा उन राज्यों को प्रदान किया गया था, जिन्हें विशेष रूप से ध्यान दिये जाने की आवश्यकता है।
      • अब ऐसे राज्यों को केंद्र द्वारा विशेष श्रेणी राज्य का दर्जा दिया जाता है।
    • 14वें वित्त आयोग ने पूर्वोत्तर और तीन पहाड़ी राज्यों को छोड़कर अन्य राज्यों के लिये 'विशेष श्रेणी का दर्जा' समाप्त कर दिया है।
      • इसके बजाय, इसने सुझाव दिया कि प्रत्येक राज्य के संसाधन अंतर को 'कर हस्तांतरण' के माध्यम से भरा जाए, केंद्र से कर राजस्व में राज्यों की हिस्सेदारी को 32% से बढ़ाकर 42% करने का आग्रह किया, जिसे वर्ष 2015 से लागू किया गया है।
  • SCS वाले राज्यों को लाभ:
    • केंद्र सरकार द्वारा विशेष श्रेणी के राज्यों के लिये केंद्र प्रायोजित योजना में आवश्यक धनराशि के 90% हिस्से का भुगतान किया जाता है, जबकि अन्य राज्यों के मामले में केंद्र सरकार केवल 60% या 75% ही भुगतान करती है।
    • खर्च न किया गया धन व्यपगत नहीं होता और उसे भविष्य में उपयोग किया जा सकता है।
    • इन राज्यों को उत्पाद शुल्क एवं सीमा शुल्क, आयकर और कॉर्पोरेट कर में महत्त्वपूर्ण रियायतें प्रदान की जाती हैं।

स्रोत: द हिंदू

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