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अंतर्राष्ट्रीय संबंध

गुर्दे के विकारों की जाँच हेतु एक नई तकनीक का विकास

  • 30 Aug 2017
  • 4 min read

चर्चा में क्यों?

उल्लेखनीय है कि बम्बई और इंदौर के भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थानों ने मिलकर एक ऐसे जैव संवेदक (biosensor) का विकास किया है जिसकी सहायता से आठ मिनट से भी कम समय में गुर्दे के विकारों (kidney disorders) का पता लगाया जा सकता है|

जैव संवेदक क्या हैं?

  • जैव संवेदक, मूत्र (urine) की एक बूंद से पीएच (pH) और यूरिया के सटीकता से जाँच कर सकते हैं|
  • जिन शोधकर्त्ताओं ने इसे विकसित किया है उनका कहना है कि यह जैव संवेदक गुर्दे की क्रियात्मक स्थिति के निर्धारण हेतु प्रत्येक बिंदु पर इसकी जाँच करेगा|
  • विदित हो कि गुर्दे की क्रियात्मक स्थिति की जाँच के लिये चिकित्सकों को अनुमानित पीएच और यूरिया की आवश्यकता होती है, क्योंकि अधिकांश गुर्दा विकारों के कारण यूरिया के पीएच और उच्च सांद्रण में कमी आ जाती है| 
  • दरअसल, यूरिया की जाँच करने के लिये उपयोग किये जाने वाले अन्य तरीकों में रोगियों को उनकी सटीकता के लिए दो बार जाँच करवानी पड़ती है| इसके अतिरिक्त, इन तकनीकों के बावजूद भी मूत्र में दूषित घटकों जैसे कैल्शियम, क्लोराइड, एस्कॉर्बिक अम्ल, सोडियम और पोटेशियम की उपस्थिति की समस्या बनी रहती है|

यह कैसे कार्य करता है?

  • जैव संवेदक उपरोक्त दोनों प्रकार की समस्याओं का समाधान कर सकता है| इसे अल्जेनेट माइक्रोस्फेयर्स (alginate microspheres) में एंजाइम यूरीस (urease) और एक अणु एफआईटीसी-डेक्सट्रेन(FITC-dextran) को मिलाकर बनाया जाता है|
  • यूरिया के साथ इनकी रासायनिक अभिक्रिया कराने के पश्चात इनका सम्मिश्रण चमकता है,परन्तु जब इसमें मूत्र डाला जाता है तो इसमें परिवर्तन हो जाता है| दरअसल, जब पीएच अम्लीय प्रकृति का होता है तो प्रतिदीप्ति कम हो जाती है जबकि पीएच के क्षारीय प्रकृति का होने पर इसमें वृद्धि हो जाती है|
  •  प्रतिदीप्ति की तीव्रता में होने वाले बदलावों को मापा जाता है जो पीएच और यूरिया की मात्रात्मक गणना करने में सहायता करते हैं|

इसे किस प्रकार सुरक्षित रखा जा सकता है?

  • जैव संवेदकों को एक माह तक रेफ्रीजरेटर में सुरक्षित रखा जा सकता है तथा यह ऐसा परिणाम देता है जो मूत्र में उपस्थित अन्य घटकों  से अप्रभावित रहता हैं| जैव संवेदक गुर्दा विकारों के तीव्र और उचित नैदानिक परीक्षणों में भी सहायक होंगे|

चुनौतियाँ

  • जैव संवेदक मूत्र में यूरिया की जाँच करने के लिये प्रतिदीप्ति आधारित तकनीक (fluorescence-based technique) का उपयोग करते हैं, परन्तु यह उपयोगकर्त्ता के लिये लाभकारी नहीं है और अन्य तकनीकों (जैसे-इलेक्ट्रोकेमिकल) की तुलना में इनकी लागत भी अधिक है|
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