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राष्ट्रीय राजमार्गों पर शराब की बिक्री बंद करने के मायने

  • 04 Apr 2017
  • 5 min read

समाचारों में क्यों ?

हाल ही में उच्चतम न्यायालय ने आदेश दिया है कि राष्ट्रीय राजमार्गों के 500 मीटर की परिधि में चल रही शराब की दुकानों को बंद किया जाए और इस दायरे में स्थित होटेल्स और रेस्तराँ आदि में भी शराब परोसने की अनुमति न दी जाए।

न्यायालय के निर्णय का आधार

गौरतलब है कि सुप्रीम कोर्ट ने अपने इस निर्णय में कहा है कि शराब का कारोबार करना मौलिक अधिकार नहीं है। ‘रोज़गार की आज़ादी का अधिकार’ शराब के कारोबार पर लागू नहीं होता क्योंकि शराब का कारोबार संवैधानिक सिद्धांत में व्यापार की श्रेणी से बाहर है। साथ ही, सुप्रीम कोर्ट ने इस बात पर भी बल दिया कि रोज़गार का अधिकार जीवन के अधिकार के बाद आता है।

अपने निर्णय की व्याख्या में कोर्ट ने कहा है कि राज्य के आबकारी नियमों में सरकार को शराब की दुकानों का लाइसेंस जारी करने का विशेषाधिकार दिया गया है, अर्थात कोई व्यक्ति लाइसेंस पाने के अधिकार का दावा नहीं कर सकता। शराब का कारोबार चलाना मौलिक अधिकार नहीं है यह संवैधानिक सिद्धांत में व्यापार की श्रेणी से बाहर है। राज्य सरकार के आबकारी नियमों के मुताबिक शराब की दुकानों को कुछ संस्थाओं से निश्चित दूरी रखना तय है। यह तय करना सरकार का अधिकार है कि वह नियमों के तहत लाइसेंस देगी या नहीं। कोई भी व्यक्ति नियमों का हवाला देकर लाइसेंस पाने के अधिकार का दावा नहीं कर सकता। शराब के व्यापार में राज्य को विशेष अधिकार प्राप्त है।

न्यायालय के आदेश को प्रभावहीन बनाने की तैयारी

हमारे यहाँ जब कानून बनता है, तो साथ ही लोग कानून से बचने के रास्ते भी तलाश लेते हैं। सुप्रीम कोर्ट द्वारा हाईवे और इसके आसपास के इलाकों में शराबबंदी के फैसले के साथ भी यही हो रहा है। विदित हो कि कोर्ट के इस आदेश से बचने की जुगत में महाराष्ट्र और पश्चिम बंगाल समेत बहुत से राज्य बड़े शहरों से गुज़रने वाले राष्ट्रीय राजमार्गों से हाईवे का दर्जा वापस लेने की तैयारी कर रहे हैं, कई जगहों पर तो इस योजना को अमल में भी लाया जा चुका है। वस्तुतः अदालत का फैसला हाईवे के 500 मीटर की परिधि में शराब की बिक्री रोकने से जुड़ा हुआ है, ऐसे में राष्ट्रीय राजमार्गों की श्रेणी में बदलाव करने से वहाँ शराब की बिक्री जारी रह सकेगी।

राज्य सरकारों के अलावा बार और रेस्तराँ मालिक भी कई तरह की चालाकियाँ दिखाकर अदालत द्वारा लगाए गए प्रतिबंध से बचने की कोशिश कर रहे हैं। बार और रेस्तराँओं के प्रवेश द्वार का मार्ग बदलकर उन्हें 500 मीटर के दायरे की आवश्यक शर्त से मुक्त करने के प्रयास किये जा रहे हैं। ऐसे में इस बात की पूरी सम्भावना बनती है कि कहीं न्यायालय का आदेश प्रभावहीन न हो जाए।

निष्कर्ष

इसमें कोई दो राय नहीं है कि न्यायालय के इस फैसले से बड़े पैमाने पर रोज़गार खत्म हो जाएंगे और सरकार के खजाने से भी एक बड़ी राशि गायब हो जाएगी, लेकिन इन बातों के मद्देनज़र राष्ट्रीय और राज्य राजमार्गों पर शराब की बिक्री के नुकसानदेह पहलू को नज़रअंदाज़ नहीं किया जा सकता। विदित हो कि सड़क दुर्घटनाओं का सबसे बड़ा कारण शराब पीकर गाड़ी चलाना है। संवैधानिक मूल्यों में जीवन के अधिकार को सबसे महत्त्वपूर्ण माना गया है। लोगों के स्वास्थ्य और सुरक्षा की रक्षा करना संविधान में दिये गए जीवन के संवैधानिक अधिकार को संरक्षित करने का एक ज़रिया है।

साथ ही जीवन के अधिकार और रोज़गार की आज़ादी के मौलिक अधिकार के बीच संतुलन बनाए रखना भी आवश्यक है। एक तरफ लोगों के स्वास्थ्य एवं सुरक्षा की रक्षा करना और सड़क पर चलने वालों को शराब पीकर गाड़ी चलाने वालों से बचाने की ज़रूरत है तो दूसरी ओर शराब कारोबार के व्यापारिक हितों की रक्षा करना भी ज़रूरी है। हालाँकि इसमें जीवन के अधिकार को प्राथमिकता दी जानी चाहिये। जहाँ सर्वोच्च न्यायालय ने इस निणर्य के माध्यम से सराहनीय प्रयास किया है, वहीं वर्तमान परिस्थितियों का अवलोकन करते हुए हमें इस निणर्य को प्रभावहीन बनने से रोकना भी होगा।

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