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डेली न्यूज़

शासन व्यवस्था

जब तक सुप्रीम कोर्ट नियम तय नहीं करती तब तक कार्मिक विभाग दिल्ली लेफ्टिनेंट गवर्नर के पास रहेंगी : केंद्र

  • 07 Jul 2018
  • 3 min read

चर्चा में क्यों?

दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने आरोप लगाया है कि केंद्र सरकार और लेफ्टिनेंट गवर्नर सर्वोच्च न्यायालय के आदेश का उल्लंघन कर रहे हैं क्योंकि केंद्र सरकार कार्मिक विभाग का नियंत्रण उन्हें सौंपने से इनकार कर रही है| केंद्र सरकार ने कहा है कि सेवा संबंधी मामलों पर कोई अंतिम रुख अपनाना कानून के खिलाफ होगा क्योंकि यह मामला अभी भी शीर्ष अदालत के समक्ष लंबित है।

महत्त्वपूर्ण बिंदु 

  • लेफ्टिनेंट गवर्नर अनिल बैजल ने यह भी स्पष्ट कर दिया कि वह कार्मिक विभाग पर तब तक नियंत्रण बनाए रखेंगे जब तक कि सुप्रीम कोर्ट की नियमित खंडपीठ द्वारा गृह मंत्रालय (MoH) की 2015 की अधिसूचना पर नियम नहीं बना लिया जाता जिसके तहत उन्हें दिल्ली सरकार के नौकरशाहों के स्थानांतरण और पोस्टिंग पर निर्णय लेने का अधिकार दिया गया है|
  • गृह मंत्रालय के प्रवक्ता ने केजरीवाल के आरोपों का जवाब देते हुए कहा कि "गृह मंत्रालय ने उपराज्यपाल को दिल्ली सरकार के अधिकारों से जुड़े सुप्रीम कोर्ट के आदेश के किसी भी हिस्से को नज़रअंदाज़ करने की सलाह नहीं दी है। यह बयान गुमराह करने वाला है|”
  • मंत्रालय ने कहा कि उपराज्यपाल को सिर्फ उनकी ओर से संदर्भित मामले पर ही कानून का पालन करने की सलाह दी गई है|
  • गृह मंत्रालय के मुताबिक यह सलाह कानून मंत्रालय की उस राय पर आधारित है जिसमें सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ ने मामला उचित नियमित पीठ के समक्ष पेश करने का आदेश दिया है| साथ ही यह संविधान के अनुच्छेद 145 (3) के प्रावधानों के मुताबिक है|

पृष्ठभूमि 

  • उल्लेखनीय है कि दिल्ली सरकार की शक्तियों के संबंध में सुप्रीम कोर्ट के 4 जुलाई को दिये गए ऐतिहासिक फैसले के कुछ घंटों बाद ही दिल्ली सरकार ने नौकरशाहों की पोस्टिंग-ट्रांसफर की नई व्यवस्था लागू की थी लेकिन कार्मिक विभाग ने इसे मानने से इनकार कर दिया|
  • विभाग का कहना है कि 21 मई, 2015 को जारी अधिसूचना के अनुसार, संविधान के अनुच्छेद 239 और 239AA के अंतर्गत कार्मिक विभाग दिल्ली विधानसभा के दायरे में नहीं आता और तद्नुसार राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली के पास कार्मिक विभाग के संबंध में कोई कार्यकारी शक्ति नहीं होगी| इस अधिसूचना को दिल्ली उच्च न्यायालय द्वारा भी 4 अगस्त, 2016 के निर्णय के माध्यम से कायम रखा गया है|
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