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शासन व्यवस्था

देशद्रोह कानून

  • 06 Dec 2021
  • 10 min read

प्रिलिम्स के लिये 

IPC की धारा 124A 

मेन्स के लिये 

देशद्रोह कानून और संबंधित मुद्दे

चर्चा में क्यों?

हाल ही में असम पुलिस द्वारा असम के असमिया और बंगाली भाषी लोगों के बीच दुश्मनी को बढ़ावा देने के लिये एक पत्रकार पर देशद्रोह का आरोप लगाया गया था।

प्रमुख बिंदु

  • ऐतिहासिक पृष्ठभूमि 
    • राजद्रोह कानून को 17वीं शताब्दी में इंग्लैंड में अधिनियमित किया गया था, उस समय विधि निर्माताओं का मानना था कि सरकार के प्रति अच्छी राय रखने वाले विचारों को ही केवल अस्तित्व में या सार्वजनिक रूप से उपलब्ध होना चाहिये, क्योंकि गलत राय सरकार और राजशाही दोनों के लिये नकारात्मक प्रभाव उत्पन्न कर सकती थी।
    • इस कानून का मसौदा मूल रूप से वर्ष 1837 में ब्रिटिश इतिहासकार और राजनीतिज्ञ थॉमस मैकाले द्वारा तैयार किया गया था, लेकिन वर्ष 1860 में भारतीय दंड सहिता (IPC) लागू करने के दौरान इस कानून को IPC में शामिल नहीं किया गया।
    • वर्तमान में राजद्रोह कानून की स्थिति: भारतीय दंड संहिता (IPC) की धारा 124A के तहत राजद्रोह एक अपराध है।
  • वर्तमान में राजद्रोह कानून
    • IPC की धारा 124A
      • यह कानून राजद्रोह को एक ऐसे अपराध के रूप में परिभाषित करता है जिसमें ‘किसी व्यक्ति द्वारा भारत में कानूनी तौर पर स्थापित सरकार के प्रति मौखिक, लिखित (शब्दों द्वारा), संकेतों या दृश्य रूप में घृणा या अवमानना या उत्तेजना पैदा करने का प्रयत्न किया जाता है।
      • विद्रोह में वैमनस्य और शत्रुता की सभी भावनाएँ शामिल होती हैं। हालाँकि इस खंड के तहत घृणा या अवमानना फैलाने की कोशिश किये बिना की गई टिप्पणियों को अपराध की श्रेणी में शामिल नहीं किया जाता है।
    • राजद्रोह के अपराध हेतु दंड
      • राजद्रोह गैर-जमानती अपराध है। राजद्रोह के अपराध में तीन वर्ष से लेकर उम्रकैद तक की सज़ा हो सकती है और इसके साथ ज़ुर्माना भी लगाया जा सकता है।
      • इस कानून के तहत आरोपित व्यक्ति को सरकारी नौकरी प्राप्त करने से रोका जा सकता है।
        • आरोपित व्यक्ति को पासपोर्ट के बिना रहना होता है, साथ ही आवश्यकता पड़ने पर उसे न्यायालय में पेश होना ज़रूरी है।
  • राजद्रोह कानून का महत्त्व:
    • उचित प्रतिबंध:: 
      • भारत का संविधान उचित प्रतिबंध (अनुच्छेद 19(2) के तहत) निर्धारित करता है जो अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के अधिकार के प्रति ज़िम्मेदार अभ्यास को सुनिश्चित करता है साथ ही यह भी सुनिश्चित करता है कि यह सभी नागरिकों के लिये समान रूप से उपलब्ध है।
    • एकता और अखंडता बनाए रखना: 
      • राजद्रोह कानून सरकार को राष्ट्र-विरोधी, अलगाववादी और आतंकवादी तत्त्वों का मुकाबला करने में मदद करता है।
    • राज्य की स्थिरता को बनाए रखना: 
      • यह चुनी हुई सरकार को हिंसा और अवैध तरीकों से सरकार को उखाड़ फेंकने के प्रयासों से बचाने में मदद करता है। कानून द्वारा स्थापित सरकार का निरंतर अस्तित्व राज्य की स्थिरता के लिये एक अनिवार्य शर्त है।
  • राजद्रोह कानून से संबंधित मुद्दे:
    • औपनिवेशिक युग का अवशेष: 
      • औपनिवेशिक प्रशासकों ने ब्रिटिश नीतियों की आलोचना करने वाले लोगों को रोकने के लिये राजद्रोह कानून का इस्तेमाल किया।
      • लोकमान्य तिलक, महात्मा गांधी, जवाहरलाल नेहरू, भगत सिंह आदि जैसे स्वतंत्रता आंदोलन के दिग्गजों को ब्रिटिश शासन के तहत उनके "राजद्रोही" भाषणों, लेखन और गतिविधियों के लिये दोषी ठहराया गया था।
      • इस प्रकार राजद्रोह कानून का इतना व्यापक उपयोग औपनिवेशिक युग की याद दिलाता है।
    • संविधान सभा का रूख: 
      • संविधान सभा संविधान में राजद्रोह को शामिल करने के लिये सहमत नहीं थी। सदस्यों का तर्क था कि यह भाषण और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को बाधित करेगा।
      • उन्होंने तर्क दिया कि लोगों के विरोध के वैध और संवैधानिक रूप से गारंटीकृत अधिकार को दबाने के लिये राजद्रोह कानून को एक हथियार के रूप में उपयोग किया जा सकता है
    • सर्वोच्च न्यायालय के निर्णयों की अवहेलना: 
      • सर्वोच्च न्यायालय ने वर्ष 1962 में केदार नाथ सिंह बनाम बिहार राज्य मामले में धारा 124A की संवैधानिकता पर अपना निर्णय दिया। इसने देशद्रोह की संवैधानिकता को बरकरार रखा लेकिन इसे अव्यवस्था पैदा करने का इरादा, कानून और व्यवस्था की गड़बड़ी तथा हिंसा के लिये उकसाने की गतिविधियों तक सीमित कर दिया।
      • इस प्रकार, शिक्षाविदों, वकीलों, सामाजिक-राजनीतिक कार्यकर्त्ताओं और छात्रों के खिलाफ देशद्रोह का आरोप लगाना सर्वोच्च न्यायालय के आदेश की अवहेलना है।
    • लोकतांत्रिक मूल्यों का दमन:
      •  भारत को तेजी उभरते एक निर्वाचित निरंकुश राज्य के रूप में वर्णित किया जा रहा है, मुख्य रूप से राजद्रोह कानून के कठोर और गणनात्मक उपयोग के कारण।
  • हालिया विकास:
    • फरवरी 2021 में सर्वोच्च न्यायालय (Supreme Court) ने एक राजनीतिक नेता और छह वरिष्ठ पत्रकारों को उनके खिलाफ दर्ज राजद्रोह के कई मामलो में गिरफ्तारी से संरक्षण प्रदान किया है।
    • जून 2021 में, सर्वोच्च न्यायालय ने आंध्र प्रदेश सरकार द्वारा दो तेलुगु (भाषा) समाचार चैनलों को जबरदस्ती कार्रवाई से संरक्षण प्रदान करते हुए राजद्रोह की सीमा को परिभाषित करने पर ज़ोर दिया।
    • जुलाई 2021 में, सर्वोच्च न्यायालय में एक याचिका दायर की गई थी, जिसमें देशद्रोह कानून पर फिर से विचार करने की मांग की गई थी।
      • न्यायालय ने कहा, "सरकार के प्रति असंतोष” की असंवैधानिक रूप से अस्पष्ट परिभाषाओं के आधार पर स्वतंत्र अभिव्यक्ति का अपराधीकरण करने वाला कोई भी कानून अनुच्छेद 19 (1) (अ) के तहत गारंटीकृत अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के मौलिक अधिकार पर अनुचित प्रतिबंध है और संवैधानिक रूप से अनुमेय भाषण पर 'द्रुतशीतन प्रभाव' (Chilling Effect) का कारण बनता है।

आगे की राह: 

  • IPC की धारा 124A की उपयोगिता राष्ट्रविरोधी, अलगाववादी और आतंकवादी तत्त्वों से निपटने में है। हालांँकि, सरकार के निर्णयों से असहमति और आलोचना एक जीवंत लोकतंत्र में मज़बूत सार्वजनिक बहस का आवश्यक तत्त्व हैं। इन्हें देशद्रोह के रूप में नहीं देखा जाना चाहिये।
  • उच्च न्यायपालिका को अपनी पर्यवेक्षी शक्तियों का उपयोग मजिस्ट्रेट और पुलिस को अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की रक्षा करने वाले संवैधानिक प्रावधानों के प्रति संवेदनशील बनाने हेतु करना चाहिये।
  • राजद्रोह की परिभाषा को  केवल भारत की क्षेत्रीय अखंडता के साथ-साथ देश की संप्रभुता से संबंधित मुद्दों को शामिल करने के संदर्भ में संकुचित किया जाना चाहिये।
  • देशद्रोह कानून के मनमाने इस्तेमाल के बारे में जागरूकता बढ़ाने के लिए नागरिक समाज को पहल करनी चाहिये।
  • भारत विश्व का सबसे बड़ा लोकतंत्र है और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का अधिकार लोकतंत्र का एक अनिवार्य घटक है जो अभिव्यक्ति या विचार उस समय की सरकार की नीति के अनुरूप नहीं हो उसे देशद्रोह नहीं माना जाना चाहिये।
  • देशद्रोह' शब्द अत्यंत संवेदनशील है और इसे सावधानी के साथ लागू करने की आवश्यकता है। 

स्रोत: द हिंदू 

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