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बैंकिंग समस्या के हल में परिसंपत्ति पुनर्गठन कंपनियों की भूमिका

  • 24 Apr 2017
  • 4 min read

समाचारों में क्यों?
देश की बैंकिंग समस्या के हल में परिसंपत्ति पुनर्गठन कंपनियों (asset restructuring companies-ARC) की भूमिका को लेकर काफी रुचि देखने को मिल रही है। लेकिन अहम् सवाल यह है कि आखिर क्यों एक एआरसी फँसे हुए कर्ज यानी एनपीए से निपटने में बैंक से बेहतर है? हम जानते हैं कि  देश के बैंक,  ऋण देने और फँसे हुए कर्ज से निपटने के मामले में खासे पिछड़े हुए हैं पर हमें ऐसा क्यों लगता है कि एआरसी इस दिशा में बेहतर काम करेगी? 

एआरसी की कामयाबी की शर्तें 
एआरसी तभी कामयाब होगी जब उसे एक सामान्य प्राइवेट इक्विटी फंड की तरह इस्तेमाल किया जाए। एआरसी में प्रबंधक और निवेशक दोनों की ही अहम् भूमिका होगी। प्रबंधक, निवेशकों को मनाएंगे कि वे पूंजी निवेश करें। एआरसी फँसे हुए कर्ज को नकदी देकर खरीदेगी। तब फँसे हुए कर्ज को निपटाया जाएगा। उससे होने वाला मुनाफा निवेशकों को जाएगा।

रही बात प्रबंधकों की तो उन्हें  प्रदर्शन के मुताबिक भुगतान किया जाएगा। एआरसी के प्रबंधक वित्तीय परिसंपत्ति के प्रतिभूतिकरण और प्रतिभूति ब्याज पुनर्गठन अधिनियम (एसएआरएफएईएसआई) और इन्सॉल्वेंसी ऐंड बैंकरप्सी कोड (आईबीसी) की मदद लेकर अधिकतम मूल्य हासिल कर सकते हैं। हालाँकि सरकारी क्षेत्र की एआरसी एक भ्रमित प्रावधान है क्योंकि इसमें कोई प्रोत्साहन ढाँचा नहीं होता।

एआरसी से संबंधित समस्याएँ
दुर्भाग्यवश आज हमारे देश में एआरसी को लेकर स्थिति स्पष्ट नहीं है। एआरसी नकद भुगतान नहीं करती। बैंकों की समस्या परिसंपत्ति के बिकने मात्र से नहीं होती। कई ऐसे एआरसी नियमन हैं जो अवधारणा के स्तर पर भ्रम के शिकार हैं। 

जब कोई 100 रुपये सांकेतिक मूल्य की वस्तु 30 रुपये में बिकती है तो बैंक को अपने मुनाफे में 70 रुपये का नुकसान सहना पड़ता है। अगर संपत्ति के 30 रुपये में बिकने पर 70 रुपये का नुकसान होता है तो, इसे बहुत अधिक हानि माना है। बैंक बुरी खबरों को छिपाना चाहते हैं। हर प्रबंधक, हर मुख्य कार्याधिकारी, चाहता है कि बुरी खबर सामने न आए। लेकिन बैंकिंग नियमन के प्रावधानों के तहत उन्हें यह बताना पड़ता है।

क्या हो आगे का रास्ता
बैंक नियमन से संबंधित समस्या के समाधान के लिये आरबीआई को चाहिये कि वह फँसे हुए कर्ज की बिक्री नकदी के साथ ही सुनिश्चित करे। आरबीआई को बैंकों पर यह दबाव बनाना चाहिए कि जैसे ही कोई परिसंपत्ति फँसे हुए कर्ज में तब्दील हो जाये वे तत्काल उसका मूल्यांकन कम कर दें। बैंक के बही खाते में उस संपत्ति की कीमत तत्काल शून्य कर दी जानी चाहिये। बैंक को आंतरिक तौर पर कोशिश करनी चाहिये कि एक बार परिसंपत्ति का मूल्य उसके बही खाते में शून्य होने के बाद उससे अधिकाधिक मूल्य हासिल किया जाए या उसे उचित दर पर नीलाम कर दिया जाए। अगर ऐसा होगा तो बैंक कहीं अधिक तार्किक निर्णय ले पाएंगे।

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