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अंतर्राष्ट्रीय संबंध

रोहिंग्याओं का निर्वासन : एक उभरता मुद्दा

  • 14 Oct 2017
  • 5 min read

चर्चा में क्यों?

हाल ही में सर्वोच्च न्यायालय ने केंद्र सरकार को यह आदेश दिया है कि वे रोहिंग्याओं का देश से निर्वासन न करे क्योंकि इसका अंतर्राष्ट्रीय संबंधों पर गहरा असर पड़ेगा। ध्यातव्य है कि हो कि न्यायालय द्वारा यह आदेश 40,000 रोहिंग्या शरणार्थियों के भारत से होने वाले निर्वासन के विरोध में इस समुदाय के लोगों द्वारा दायर की गई याचिका की सुनवाई पर दिया गया।

प्रमुख बिंदु

  • देश के मुख्य न्यायाधीश की अध्यक्षता में बनी तीन सदस्यों की एक खंडपीठ ने मौखिक रूप से तो यह आदेश दिया है कि सरकार को इस समय रोहिंग्याओं को निर्वासित नहीं करना चाहिये, परन्तु न्यायालय ने इस संबंध में कोई भी औपचारिक आदेश जारी नहीं किया है। 
  • हालाँकि न्यायालय ने इस मामले को  21 नवंबर तक स्थगित कर दिया है और अब इस मामले पर विस्तृत सुनवाई 21 नवंबर को की जाएगी। 
  • हालाँकि इससे पूर्व 9 अगस्त को केंद्र सरकार द्वारा एक सर्कुलर जारी किया गया था जिसमें राज्य सरकारों से अवैध आप्रवासियों (जिनमें रोहिंग्या भी शामिल थे) के निर्वासन की प्रक्रिया की शुरुआत करने को कहा गया था।
  • वस्तुतः दिया गया यह आदेश न तो कोई स्थगन आदेश है और न ही अंतरिम आदेश। 9 अगस्त को जारी किया गया सर्कुलर अभी भी कार्य कर रहा है और न्यायालय ने केंद्र सरकार को इसे समाप्त करने का कोई आदेश नहीं दिया है।
  • चूँकि इस सर्कुलर में राज्य सरकारों को रोहिंग्या की पहचान करने और उन्हें निर्वासित करने का आदेश दिया गया था, परन्तु इसके बाद ही इस प्रश्न पर विचार प्रारंभ हो गया था कि जब तक उनकी राष्ट्रीयता का निर्धारण नहीं हो जाता, उन्हें कौन सा देश अपने शिविरों में स्थान देगा । 
  • अतः शीघ्र ही उनकी राष्ट्रीयता का निर्धारण करने के लिये  एक प्राधिकरण का गठन किया जाएगा और पुलिस को यह प्रमाणित करना होगा कि रोहिंग्या ही सबसे पहले गैर-आप्रवासी हैं।
  • पिछले तीन वर्षों में केवल दो बांग्लादेशियों का ही निर्वासन किया गया है।

भारत की चिंता

  • न्यायालय का कहना है कि यदि म्याँमार सरकार ने इन रोहिंग्याओं को अपने देश में शिविर मुहैया कराने से इनकार कर दिया तो इससे दोनों देशों के संबंधों पर गहरा असर पड़ेगा।
  • न्यायालय के अनुसार, इस समुदाय के खातिर मानवीय चिंता,राष्ट्रीय सुरक्षा व आर्थिक हितों के मध्य संतुलन स्थापित किया जाना चाहिये।
  • इस मुद्दे का एक अन्य महत्त्वपूर्ण पहलू यह है कि यदि रोहिंग्याओं को वापस नहीं भेजा जाता और वे यहीं रहते हैं तो उन्हें कितनी सहायता देनी चाहिये तथा क्या उन्हें यहाँ रोज़गार भी मुहैया कराए जाने चाहिये?
  • हालाँकि भारत के विषय में यह कहा गया है कि भारत इन गैर-आप्रवासियों को ऐसे स्थानों पर नहीं भेज सकता, जहाँ उन्हें उत्पीड़न और हिंसा का सामना करना पड़ रहा हो।

क्या है रोहिंग्या शरणार्थी संकट?

  • दरअसल, म्याँमार की बहुसंख्यक आबादी बौद्ध है, जबकि रोहिंग्याओं को मुख्य रूप से अवैध बांग्लादेशी प्रवासी माना जाता है। हालाँकि, लंबे समय से वे म्याँमार के रखाइन प्रांत में रहते आ रहे हैं।
  • रोहिंग्याओं और बौद्धों के बीच होने वाले छिटपुट टकराव तब हिंसा में तब्दील हो गए, जब वर्ष 2012 में रखाइन प्रांत में हुए भीषण दंगों में लगभग 200 लोग मारे गए, जिनमें ज़्यादातर रोहिंग्या मुसलमान थे।
  • म्याँमार के सुरक्षाबलों द्वारा सताए जाने के बाद इनके लिये म्याँमार में रहना कठिन हो रहा है और वे वहाँ से भागकर भारत में प्रवेश कर रहे हैं।
  • किसी तरह सीमा पार कर भारत में बड़ी संख्या में रोहिंग्या आ बसे हैं। गृह मंत्रालय के आकलनों के अनुसार, भारत में लगभग 40,000 रोहिंग्या हैं, जिनमें से लगभग 5,700 जम्मू में हैं। इनमें से केवल 16,000 रोहिंग्या ही संयुन्त्र राष्ट्र निकाय में पंजीकृत है।
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